वेदांत को प्राइवेट कंपनी बनाने का अनिल अग्रवाल का दांव मुश्किल में फंसता दिख रहा है। बीएसई पर शाम साढ़े सात बजे तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार रिवर्स बुक बिल्डिंग (आरबीबी) पेशकश के लिए केवल 1.25 अरब शेयरों के लिए बोलियां मिलीं, जो गैर-सूचीबद्घता पेशकश की सफलता के लिए जरूरी 1.36 अरब शेयरों से करीब 9 करोड़ कम हैं। बीएसई पर शुरुआत में आरबीबी को 1.36 अरब शेयरों के लिए बोलियों का आंकड़ा दिखाया गया था लेकिन सूत्रों ने कहा कि कई बोलियां खारिज हो गईं।
कंपनी और निवेश बैंक ने बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से आरबीबी के बंद होने की तिथि को सोमवार तक बढ़ाने का अनुरोध किया था। इसके पीछे उन्होंने एक्सचेेंज में तकनीकी समस्या का हवाला दिया है और इसकी वजह से 90 मिनट तक बोली प्रक्रिया नहीं चल सकी। सूत्रों ने कहा कि नियामक ने समयसीमा बढ़ाने से मना कर दिया और शाम 7 बजे तक बोली प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी है। अगर वेदांत के आरबीबी को कम से कम 1.34 अरब शेयरों के लिए बोलियां नहीं मिलीं तो गैर-सूचीबद्घता की योजना मुश्किल में फंस सकती है। हालांकि अगर कंपनी अपेक्षित शेयरों के लिए बोली की सीमा पार कर लेती है तो 1.34 अरब शेयरों के लिए जिस भाव पर बोली लगाई गई है उसे ही शेयर मूल्य निर्धारित (डिस्कवरी प्राइस) किया जाएगा। बीएसई पर 6 बजे तक के आंकड़ों सेे पता चलता है कि करीब 1.36 अरब बोलियां 320 रुपये या उससे कम भाव पर आईं हैं। अगर इन बोलियों की पुष्टि होती है तो शेयर का मूल्य 320 रुपये तय हो सकता है। प्रवर्तक समूह उम्मीद कर रहा था कि पेशकश का मूल्य 160 रुपये से प्रति शेयर से कम रह सकता है, और उसी के हिसाब से उसने पैसे जुटाए हैं। सूत्रों ने कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम और वैनगार्ड जैसे बड़े शेयरधारकों ने 320 रुपये के भाव पर बोली लगाई है।
वेदांत के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने संकेत दिए हैं कि अगर भाव काफी ज्यादा रहता है तो प्रवर्तक काउंटर पेशकश कर सकते हैं। गैर-सूचीबद्घता नियमों के अनुसार काउंटर पेशकश दो दिन के अंदर करनी होती है। काउंटर पेशकश बुक वैल्यू से ज्यादा होती है और वेदांत के मामले में यह 89.3 रुपये है। काउंटर पेशकश को 90 फीसदी आम शेयरधारकों द्वारा स्वीकृत होना चाहिए। हालांकि अगर आरबीबी को 1.34 अरब शेयरों के लिए बोलियां नहीं मिलती हैं तो प्रवर्तक काउंटर पेशकश नहीं ला पाएंगे।
एक विश्लेषक ने कहा, ‘एलआईसी की वेदांत में 6.37 फीसदी हिस्सेदारी है। ऐसे में एलआईसी और अन्य बड़े निवेशकों के रुख से प्रवर्तकों के लिए कम भाव पर काउंटर पेशकश के लिए अपेक्षित शेयरधारकों की मंजूरी मिलना कठिन हो सकता है।’
