दुनिया में आजकल एक ही राग गाया जा रहा है। हर तरफ यही चर्चा आम है कि दुनिया बस खत्म होने वाली है। वजह है, फ्रांस और स्विटजरलैंड की सरहद पर चल रहा एक प्रयोग।
इस प्रयोग की वजह से वैज्ञानिक इस ब्रह्मांड के कई गूढ़ रहस्यों का पता लगने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो कई बड़े -बड़े राजों के बारे में यह हम जान पाएंगे। लेकिन इसके नाकामयाब होने का डर लोगों को ज्यादा सता रहा है।
खबरिया चैनलों की मानें तो इससे दुनिया तबाह हो सकती है। वैज्ञानिकों की मानें तो हम कुछ बडे रहस्यों के बारे में नहीं जान पाएंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह काफी बुरा होगा, लेकिन इससे धरती का नाश नहीं होगा। इस पूरी बहस के बीचोंबीच है लार्ज हैड्रन कोलाइडर यानी एलएचसी नामक एक मशीन।
कई लोगों के मुताबिक अगर इस मशीन में थोड़ी सी भी गड़बड़ी आ गई तो इससे धरती खत्म हो जाएगी। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है, ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है।
क्या है ये एलएचसी?
मुंबई के टाटा इंस्टीटयूट ऑफ फंडामेंटल रिचर्स के हाई एनर्जी फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर सी.एस. उन्नीकृष्णन का कहना है कि, ‘एलएलची यानी लार्ज हैड्रन कोलाइडर एक प्रकार का कोलाइडर है। इसमें काफी तेज रफ्तार के साथ प्रोटॉनों को एक दूसरे के साथ लड़ाया जाता है।
यह इंसानों का बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा और सबसे तेज रफ्तार के साथ काम करने वाला कोलाइडर है। इससे हमें सीखने को काफी कुछ मिल सकता है। यह फिजिक्स के उस हिस्से के बारे में काफी सारी जानकारी दे सकता है, जिसे हम स्टैंडर्ड मॉडल के नाम से जानते हैं।
स्टैंडर्ड मॉडल पर ही पार्टिकल फिजिक्स की पूरी की पूरी अवधारणा निर्भर करती है। इसलिए यह हमारे लिए काफी अहम है।’ वैसे आपको बता दें कि इस मशीन को बनाने में एक या दो नहीं, पूरे 14 साल लगे हैं। इस बनाया है, 85 मुल्कों के 8000 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने। इसमें अपने मुल्क का भी काफी बड़ा योगदान रहा है। इससे बनाने के काम में हमारे मुल्क के कम से कम दो सौ वैज्ञानिकों ने काम किया है।
यह कोलाइडर फ्रांस और स्विटजरलैंड की सरहद के पास जमीन के 50 से 175 मीटर नीचे एक सुरंग में लगाया गया है। इस सुरंग की लंबाई 27 किलोमीटर यानी 17 मील है। इस मशीन में दो आपस में जुड़े पाइप हैं, जिनमें प्रोटॉन बीम होते हैं। ये दोनों बीम एक दूसरे से उल्टी दिशा में घूमते हैं।
इन बीम को तय रास्ते पर रखने के लिए कम से कम 1232 सामान्य चुंबक और उन्हें तय दिशा में रखने के लिए 392 खास तरह के चुंबकों का इस्तेमाल करने लगे। कुल मिलाकर इस मशीन को बनाने में 1600 चुंबकों का इस्तेमाल किया गया है, जिनका कुल वजन करीब 27 टन है।
क्या करेगी यह मशीन?
प्रोफेसर उन्नीकृष्णन का कहना है कि, ‘इस मशीन की मदद से हम ब्रह्मांड के कुछ सबसे बड़े राजों का के बारे में जान सकेंगे। दरअसल, इस मशीन में प्रोटॉन को रोशनी की रफ्तार पर एक दूसरे से टकराया जाएगा। इससे काफी ऊर्जा निकलेगी और साथ ही कुछ अहम तत्वों का भी पता चल पाएगा, जैसे हिग्गस-बोसोन। अब तक यह तत्व के बारे में कोई सबूत नहीं मिल पाए हैं, लेकिन इस प्रयोग से उनके बारे में पता चल पाएगा।
अगर सब कुछ कामयाब तरीके से हो गया तो हम विज्ञान के कुछ बेहद मूलभूत, लेकिन अनसुलझे सवालों का जवाब देने के काबिल हो पाएंगे।’ वैज्ञानिकों के मुताबिक इस मशीन में हिग्गस-बोसोन पार्टिकल्स का पता लेने के लिए खास डिटेक्टर्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। साथ ही, इसमें बिग बैंग के तुरंत बाद पैदा हुए क्वार्क ग्लून प्लाज्मा का पता लगाने की भी कोशिश की जाएगी।
इसके अलावा, यह मशीन एंटी मैटर के बारे में वैज्ञानिकों को अच्छी खासी जानकारी मुहैया करवाएगी। इस मशीन के जरिये मिलने वाली पूरी जानकारी को वैज्ञानिक कंप्यूटर के जरिये विश्लेषित करेंगे। उन्नीकृष्णन के मुताबिक एक कंप्यूटर के जरिये तो ऐसा करना संभव नहीं होगा। इसलिए नई तरह की प्रणाली, जिसे ग्रिड कंप्यूटिंग कहते हैं, पर्दे पर आई। इसके जरिये दुनिया भर के कंप्यूटर जुड़े होंगे।
यह दुनिया खत्म कर देगा?
बकौल उन्नीकृष्णन, ‘इससे बड़ी बकवास और कुछ नहीं हो सकती। लोगों को डर है कि यह मशीन बिग बैंग को पैदा कर देगा। दुनिया के किसी भी लैब में बिग बैंग को बनना मुमकिन नहीं है। यह बस लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने का एक तरीका है।’