भारतीय यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाले स्टार्टअप) का कुल मूल्यांकन साल 2020 में बढ़कर 128.9 अरब डॉलर हो गया। पिछले साल इस सूची में 11 नए सदस्य शामिल हुए। बोफा ग्लोबल रिसर्च की एक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। मूल्यांकन का यह आंकड़ा काफी आकर्षक है क्योंकि बाजार पूंजीकरण के लिहाज से देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज का मूल्यांकन करीब 181 अरब डॉलर है। इसी प्रकार बाजार पूंजीकरण के लिहाज से देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी टाटा कंसल्टैंसी सर्विसेज का मूल्यांकन 165 अरब डॉलर आंका गया है।
यूनिकॉर्न का तात्पर्य उन कंपनियों से जिनका अंतिम वित्त पोषण दौर के आधार पर मूल्यांकन 1 अरब डॉलर अथवा इससे अधिक हो। दिलचस्प है कि देश के शीर्ष चार यूनिकॉर्न- फ्लिपकार्ट, पेटीएम, बैजूस और ओयो- डेकाकॉर्न (10 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन) भी हैं। इन चारों यूनिकॉर्न का एकीकृत मूल्यांकन 62 अरब डॉलर है। यहां तुलना करने की बात यह है कि प्रमुख आईटी कंपनी इन्फोसिस का बाजार पूंजीकरण करीब 79 अरब डॉलर है।
फिलहाल पेटीएम का मूल्यांकन 16 अरब डॉलर प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो के बाजार पूंजीकरण (35 अरब डॉलर) का लगभग आधा है जबकि ब्याजू और ओयो का मूल्यांकन लगभग एक तिहाई है। यूनिकॉर्न की सूची में तमाम कंपनियों के शामिल होने से भारत ने भी अपने कुछ प्रतिस्पर्धी देशों के मुकाबले बढ़त दर्ज की है। भारत अब यूनिकॉर्न की संख्या के लिहाज से दुनिया में (अमेरिका और चीन के बाद) तीसरे पायदान पर है।
इस मोर्चे पर भारत और ब्रिटेन के बीच अंतर बढ़ा है। भारत में यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या 2019 में 26 थी जो बढ़कर 2020 में 37 हो गई। जबकि इस दौरान ब्रिटेन में यूनिकॉर्न की संख्या 21 से बढ़कर महज 24 हुई। इस दौरान जर्मनी में यूनिकॉर्न की संख्या 11 से बढ़कर 12 ही हो पाई। भारत पिछले साल की रैंकिंग में कई देशों जैसे दक्षिण कोरिया, ब्राजील और इजराइल (प्रत्येक में 8 यूनिकॉर्न), फ्रांस (7 यूनिकॉर्न) और स्विट्जरलैंड (5 यूनिकॉर्न) से काफी आगे है।
यूनिकॉर्न कंपनियों के कुल मूल्यांकन में जिन क्षेत्रों की हिस्सेदारी सर्वाधिक है उनमें ई-कॉमर्स और वित्तीय प्रौद्योगिकी शामिल हैं। यूनिकॉर्न के कुल मूल्यांकन में इनकी हिस्सेदारी लगभग आधा है। देश में पांच ई-कॉमर्स यूनिकॉर्न हैं जिनका यूनिकॉर्न के कुल मूल्यांकन में 25 फीसदी योगदान है। जबकि कुल मूल्यांकन में वित्तीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र की सात यूनिकॉर्न कंपनियों का योगदान करीब 24 फीसदी है।
शिक्षा प्रौद्योगिकी अथवा एडुटेक एक अन्य ऐसा क्षेत्र है जहां आकर्षण बढ़ रहा है, विशेषकर बैजूस के उभने के साथ। दो एडुटेक कंपनियों का कुल यूनिकॉर्न मूल्यांकन में करीब 10 फीसदी योगदान है। इसके बाद सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस और तकनीकी प्लेटफॉर्म का स्थान आता है जिनका कुल यूनिकॉर्न मूल्यांकन में 8 फीसदी योगदान है। इसी प्रकार बीएफएसआई, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में इसे स्वीकार किए जाने के कारण बाजार 30 फीसदी से अधिक वृद्धि दर के साथ करीब 3.5 अरब डॉलर होने का अनुमान है।
अन्य प्रमुख क्षेत्रों में खाद्य प्रौद्योगिकी (6 फीसदी हिस्सेदारी) और परिवहन (6 फीसदी हिस्सेदारी) शामिल हैं। सितंबर 2016 में रिलायंस जियो के लॉन्च होने के बाद जो डेटा क्रांति आई जिससे यूनिकॉर्न की संख्या को जबरदस्त रफ्तार मिली। वर्ष 2011 से 2017 के बीच यूनिकॉर्न कंपनियों कुल संख्या में महज सात की वृद्धि हुई जबकि 2018 से 2020 के दौरान इस सूची में 29 यूनिकॉर्न शामिल हुए।
दिलचस्प है कि सॉफ्टबैंक, आंट ग्रुप, टेनसेंट, प्रोसस, गूगल आदि शीर्ष निवेशकों से रकम हासिल करने के बावजूद अधिकतर कंपनियों की हालत सही नहीं है और उनका कहना है कि मूल्यांकन से उनके वास्तविक मूल्य की झलक नहीं मिलती है। यही कारण है कि कुछ ही कंपनियों ने आईपीओ का रुख किया है। हालांकि सात से आठ यूनिकॉर्न इस साल अथवा अगले साल आईपीओ लाने की तैयारी कर रहे हैं। इनमें फ्लिपकार्ट, नायिका, जोमैटो, पेटीएम, ग्रोफर्स और डेल्हीवरी शामिल हैं।
