अकाउंटिंग नियामक ‘इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ (आईसीएआई) पिछले तीन साल में लगभग 750 मामलों में से 120 सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर चुकी है।
आईसीएआई के अध्यक्ष वेद जैन के मुताबिक हालांकि इन मामलों में शायद ही कठोर कार्रवाई की गई है। इन 120 मामलों में से महज 7 मामलों में पांच साल से अधिक के लिए लाइसेंस रद्द किए गए। केवल एक सदस्य पर ही आजीवन प्रतिबंध लगाया गया।
जैन ने कहा, ‘ये सात मामले बैलेंस शीट की दो सेटों पर हस्ताक्षर से जुड़े हुए थे। इनमें से एक कर उद्देश्य के लिए और दूसरे गैर-कर उद्देश्य के लिए था।’ उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले व्यक्तिगत व्यवहार से जुड़े हुए थे। इन में अधिक फीस वसूले जाने जैसे मामले शामिल थे।
हालांकि पूर्ववर्ती वर्षों के तुलनात्मक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। तीन अकाउंटिंग पेशेवरों का कहना है कि 2006 में आईसीएआई एक्ट में संशोधन होने के बाद गैर-कानूनी सीए के खिलाफ की गई कार्रवाई का स्तर काफी ऊंचा था।
2006 तक प्रत्येक अनुशासनात्मक कार्रवाई निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था आईसीएआई काउंसिल के समक्ष की जानी थी, लेकिन इसमें विलंब हुआ। अब कुप्रबंधन की सूचना मिलने के बाद आईसीएआई में अनुशासन के प्रभारी निदेशक कार्रवाई करने के लिए अधिकृत हैं।
इंस्टीटयूट ने अनुशासनात्मक कार्रवाइयों की पिछले वर्षों का सिलसिलेवार ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया है। निदेशक ऑडिटर को यह लिख कर पूछ सकता है कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए।
इस सवाल के जवाब के आधार पर निदेशक मामले में प्रथमदृष्टया राय तैयार कर सकता है और इसे अनुशासन समिति को भेज सकता है।
समिति को प्रत्यक्षदर्शियों को बुलाने और सभी संबद्ध पार्टियों से जानकारी मांगने का अधिकार है जिनमें कर अधिकारी, निदेशक और बैंक शामिल हैं।
सत्यम कम्प्यूटर्स के बहीखाते का ऑडिट करने वाली प्राइस वाटरहाउस के मामले में आईसीएआई ने अब तक जुटाई गई सूचनाओं के आधार पर कारण बताओ नोटिस भेजा है।
जवाब के आधार पर निदेशक (अनुशासन) यह तय करेंगे कि इस मामले में कार्रवाई की जाए या नहीं।