राजस्व में कमी से जूझ रही सरकार ने नकदी के ढेर पर बैठी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को तिमाही आधार पर लाभांश का भुगतान करने के लिए कहा है। इसके साथ ही सभी सार्वजनिक उपक्रमों से मुनाफे में ज्यादा हिस्सा देने को कहा है।
अनुमान योग्य एवं किस्तों में लाभांश भुगतान की व्यवस्था के मकसद से सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों (सीपीएसई) से कहा कि वे नियमों के हिसाब से न्यूनतम लाभांश का भुगतान न करें बल्कि ज्यादा से ज्यादा लाभांश देने का प्रयास करें।
केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए लाभांश नीति के संबंध में 9 नवंबर को जारी परामर्श में कहा गया है, ‘केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों, खास तौर पर जो अपेक्षाकृत ज्यादा लाभांश का भुगतान करती हैं, वे तिमाही आधार पर लाभांश देने पर विचार कर सकती हैं। अन्य सार्वजनिक उपक्रम छमाही आधार पर अंतरिम लाभांश दे सकती हैं।’
निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की ओर से सभी केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के मुख्य कार्याधिकारियों को लिखे पत्र में कहा गया है कि इस कदम से सरकार को बजट अनुमान तय करने से पहले अनुमानित और समय-समय पर लाभांश प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
सभी सार्वजनिक फर्मों को अपने सालाना अनुमानित लाभांश का कम से कम 90 फीसदी भुगतान करना चाहिए। दीपम के अनुसार अंतरिम लाभांश का भुगतान एकमुश्त या किस्तों में की जा सकती है।
वर्तमान में अधिकांश सार्वजनिक कंपनियां फरवरी या मार्च में अंतरिम लाभांश का भुगतान करती हैं। दीपम ने कहा, ‘फरवरी-मार्च में एकमुश्त अंतरिम लाभांश देने से कंपनियों को साल के अंत में आपूर्तिकर्ताओं और अग्रिम कर के भुगतान में नकदी की कमी का सामना करना पड़ता है।’
विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को अंतरिम लाभांश के मामले में निजी क्षेत्र की कंपनियों की तरह नियमों का पालन करने को कह रही है। इसकी वजह यह भी है कि आर्थिक नरमी के कारण सरकार राजस्व में कमी से जूझ रही है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘यह कदम सरकार की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। अगर सार्वजनिक फर्मों से दो या चार किस्तों में लाभांश मिलता रहेगा तो उनके पास नकदी प्रवाह बनी रहेगी और सरकार को उधारी जरूरतों में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता नहीं होगी।’
सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अपने मुनाफे का कम से कम 30 फीसदी या कुल नेटवर्थ का 5 फीसदी, जो भी अधिक हो, का भुगतान करना होगा।
परामर्श में कहा गया है, ‘यह देखा गया है कि सार्वजनिक उपक्रम आम तौर पर नियमों के हिसाब से न्यूनतम लाभांश का भुगतान करती हैं। लेकिन सार्वजनिक उपक्रमों को सलाह दी जाती है कि वे अपने मुनाफे, नकदी और पूंजीगत जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक लाभांश देने का प्रयास करें।’
दीपम ने आगे कहा है कि लाभांश भुगतान की संभावना नहीं जताने वाले सार्वजनिक उपक्रम हर साल अपने अनुमानित शुद्घ मुनाफे के आधार पर अक्टूबर या नवंबर में अंतरिम लाभांश का भुगतान करें और दूसरी छमाही के नतीजों में इसकी घोषणा की जाए।
दीपम ने कहा कि नियमित लाभांश नीति से निवेशकों की रुचि बढ़ाने और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों को लेकर बाजार की धारणा में सुधार लाने में मदद मिलेगी।
पिछले महीने दीपम ने कई सार्वजनिक उपक्रमों को शेयर पुनर्खरीद करने के लिए कहा था ताकि महत्वाकांक्षी विनिवेश का लक्ष्य हासिल किया जा सके। कंपनियों से पूंजीगत व्यय की जरूरतों को पूरा करने, लाभांश भुगतान करने या शेयर पुनर्खरीद करने को कहा गया था।
कोविड और लॉकडाउन की वजह से सरकार का कर संग्रह कम रहा है। चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में 4.6 लाख करोड़ रुपये का कर संग्रह हुआ जो पिछले वित्त वर्ष में समान अवधि के 6.1 लाख करोड़ के कर संग्रह से 32.6 फीसदी कम है। वर्ष 2017-18 में केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने 43,000 करोड़ रुपये का लाभांश दिया था, जिसके 2018-19 में 48,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था। चालू वित्त वर्ष में 66,000 करोड़ रुपये लाभांश मिलने की उम्मीद है।
