मौजूदा वैश्विक महामारी के बावजूद अब बाजार में बड़े आईटी आउटसोर्सिंग अनुबंधों की वापसी दिख रही है और इसकी रफ्तार इस साल तेज होने की संभावना है। विश्लेषकों का मानना है कि भले ही ग्राकों द्वारा डिजिटल प्रौद्योगिकियों में खर्च निश्चित तौर पर बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर बड़े सौदे विक्रेताओं के समेकन के परिणाम या लागत अनुकूलन के लिए ग्राहकों की जरूरत पर केंद्रित हैं। कुछ मामलों में, ग्राहक अपने कार्य को बाहरी सेवा प्रदाताओं को सौंपकर अपनी प्रौद्योगिकी रणनीति में भी बदलाव ला रहे हैं, जिससे इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो या एचसीएल टेक्नोलॉजिज जैसी बड़ी कंपनियों को फायदा मिल रहा है। हालांकि आईटी बजट में पहले जैसे समान स्तर पर खर्च की मात्रा में तेजी नहीं आई है।
पारेख कंसल्टिंग के आईटी आउटसोर्सिंग सलाहकार एवं संस्थापक पारेख जैन ने कहा, ‘हां, बड़े सौदे बाजार में फिर से दिख रहे हैं। इसकी शुरुआत पिछले साल हुई और इस साल इनमें तेजी आई है।’ जैन का कहना है कि पहली बात यह है कि जहां डिजिटल प्रौद्योगिकियों में निवेश बढ़ा है, वहीं ग्राहक अब लागत अनुकूलन कार्यक्रमों में दिलचस्पी बढ़ा रहे हैं और उद्यमों में विलय-अधिग्रहण के संदर्भ में आईटी गतिविधियों के समेकन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘बड़े लागत अनुकूलन कार्यक्रम विक्रेताओं के समेकन, स्वयं के निजी केंद्रों, जगहों के साथ-साथ सेवाओं के समेकन से संबंधित हैं। इसका मतलब हो सकता है कि अन्य विक्रेताओं और आंतरिक टीमों को दिए जाने वाले कार्यों में निजी कार्य भी सेवा प्रदाताओं को मिलेंगे।’
पिछले 10 महीनों में, बड़ी भारतीय आईटी सेवा कंपनियों ने करोड़ों डॉलर की बड़ी आउटसोर्सिंग परियोजनाओं पर हस्ताक्षर किए हैं। उदाहरण के लिए, इन्फोसिस ने पिछले कुछ वर्शों में कई बड़े आउटसोर्सिंग समझौते किए, जिनमें अमेरिकी निवेश फर्म के साथ किया गया सौदा भी शामिल है, जो करीब 1.5 अरब डॉलर का था और हाल में डेमलर सौदा कई वर्षों में पूरा होने की संभावना है। इसी तरह, टीसीएस ने नवंबर में 75 करोड़ डॉलर का अनुबंध डॉयचे बैंक और समान आकार का सौदा प्रूडेंशियल के साथ किया है।
इस महीने के शुरू में, बेंगलूरु स्थित विप्रो ने भी कहा कि कंपनी ने जर्मनी की थोक कारोबार करने वाली कंपनी मेट्रो से सौदा हासिल किया है, जिसके तहत उसे 70 करोड़ डालॅर का आउटसोर्सिंग कार्य मिलेगा। इस सौदे के तहत विप्रो को पूरे जर्मनी, रोमानिया और भारत में मेट्रो के उन 1,300 कर्मचारियों को हासिल करने की भी जरूरत होगी, जो उसकी प्रौद्योगिकी परियोजनाओं पर काम कर रहे थे। एवरेस्ट गु्रप के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी पीटर बेंडर-सैमुअल ने कहा, ‘डिजिटल रूपांतरण अनुबंधों का दूसरा पहला (जो आज हम देख रहे हैं) यह है कि कंपनियां अक्सर अपने पारंपरिक परिवेश से दूर होने की संभावना तलाश रही हैं और उनका मानना है कि उनका रणनीतिक भागीदार इस संदर्भ में नियंत्रण के लिए बेहतर स्थिति में हो। इसके अलावा बड़े सौदों को भी यह जरूरत होती हे कि विक्रेता बड़ा निवेश करें, जिसमें कर्मचारियों, उपकरणों की खरीद से लेकर आईपी और सॉफ्टवेयर मुहैया कराने जैसी गतिविधियां भी शामिल हों। ये निवेश अनुबंधों का आकार और अवधि बढ़ते हैं और इससे सौदे चुनौतीपूर्ण बन गए हैं।’ टियर-1 और बड़े आईटी सेवा आपूर्तिकर्ता छोटी कंपनियों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं। इसके अलावा कई बड़ी भारतीय कंपनियों ने रिमोट वर्किंग जरूरत और यात्राओं पर प्रतिबंध की वजह से पिछली कुछ तिमाहियों में भारी लागत बचत की है।
