जापान की दवा कंपनी दायची सांक्यो ने भारत की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज लिमिटेड का अधिग्रहण कर बड़ा मैदान तो फतह कर लिया, लेकिन यह सौदा अब उसे खासा भारी पड़ रहा है।
तकरीबन 460 करोड़ डॉलर के इस सौदे के लिए कम से कम आधी रकम उसे बाजार से जुटानी पड़ रही है। दायची रैनबैक्सी में नियंत्रण के लिए जरूरी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 600 करोड़ डॉलर जुटाएगी। इसके लिए वह बाँड वगैरह बेचेगी और बाकी रकम बैंकों से कर्ज लेकर इकट्ठा करेगी।
दायची के अध्यक्ष तकाशी शोदा ने इस बारे में योजनाओं का खुलासा करते हुए कहा कि सबसे अच्छे और किफायती रास्ते से रकम जुटाई जाएगी। उन्होंने बताया कि कंपनी अपने रोजमर्रा के कारोबार के लिए लगभग 20,000 करोड़ येन यानी 190 करोड़ डॉलर अपने पास रखेगी। बाकी रकम को विस्तार पर खर्च किया जाएगा।
तकाशी को उम्मीद है कि दायची ने 2012 में 15 खरब येन का राजस्व अर्जित करने का जो लक्ष्य रखा है, उसमें से लगभग एक तिहाई योगदान रैनबैक्सी का ही होगा। रैनबैक्सी जेनरिक बाजार की बड़ी खिलाड़ी है और दायची को उससे काफी आशाएं हैं।
दायची रैनबैक्सी के मुख्य कार्यकारी मालविंदर मोहन सिंह और उनके परिवार से कंपनी में 34.8 फीसद हिस्सेदारी खरीदेगी। चालू वित्त वर्ष में ही यह सौदा पूरा हो जाने की तकाशी को उम्मीद है। जापानी कंपनी को इस साल मुनाफे में 16 फीसद की कमी का झटका झेलना पड़ा है। लेकिन कंपनी को उम्मीद है कि रैनबैक्सी का सहारा मिलने के बाद सब कुछ सही हो जाएगा। तकाशी ने कहा, ‘इस अधिग्रहण से हमारे परिचालन मुनाफे में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो जाएगी। 2010 के वित्त वर्ष से पहले ही हमें इसका नतीजा मिलने लगेगा।’