सागर सीमेंट्स में विदेशी कंपनी का हिस्सेदारी खरीद लेना 85,000 करोड़ रुपये के घरेलू सीमेंट उद्योग में ऐसे करारों की शुरुआत भर है।
आने वाले समय में ऐसे कई और समझौते हो सकते हैं। सागर सीमेंट्स में हिस्सेदारी खरीदने वाली फ्रांसीसी कं पनी विकात भारतीय सीमेंट उद्योग में आने वाली सातवी विदेशी कंपनी है। पहले से ही होल्सिम, लाफार्ज, हेडलबर्ग, इतालीसीमेंताई, सिम्पोर और डीसीएच जैसी विदेशी कंपनियां यहां मौजूद हैं।
भारतीय सीमेंट उद्योग में लगभग 50 छोटी कंपनियां हैं।जानकारों के अनुसार इतने प्रतिस्पर्धी माहौल में छोटे कारोबारियों के लिए अपना अस्तित्व बनाए रखना काफी मुश्किल होगा। बी के बिड़ला समूह की कंपनी मंगलम सीमेंट के अध्यक्ष आर सी गुप्ता ने कहा, ‘छोटी सीमेंट कंपनियों को बड़ी कंपनियों के साथ विलय करना होगा या फिर विदेशी कंपनियां इन कंपनियों का अधिग्रहण कर लेंगी।’
उन्होंने कहा कि हाल फिलहाल उद्योग को नुकसान उठाना पड़ रहा है लेकिन लंबे समय में देखा जाए तो सीमेंट उद्योग मुनाफे में ही रहेगा। भारत में मौजूद एक अंतरराष्ट्रीय सीमेंट कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘इतने प्रतिस्पर्धी माहौल में कीमतों में बगैर इजाफा किये लगातार बढ़ती लागत का बोझ उठाना छोटे खिलाड़ियों के लिए मुमकिन नहीं है।’
भारतीय सीमेंट उद्योग की सालाना क्षमता लगभग 20 करोड़ टन सीमेंट उत्पादन की है। इसमें से सालाना 1 करोड़ टन सीमेंट की उत्पादन क्षमता वाली कंपनियों की संख्या न के बराबर ही है। देश के ग्रामीण इलाकों में मौजूद कई कंपनियां तो ऐसी हैं जिनकी उत्पादन क्षमता सालाना 2 लाख टन है। बराक वैली सीमेंट्स के प्रबंध निदेशक कामाख्या चमड़िया ने कहा, ‘विकात और सागर सीमेंट्स जैसे करार होते ही रहेंगे।
अगर कोई विदेशी कंपनी हमारे पास आती है तो हम कोई भी फैसला लेने से पहले यह देखेंगे कि इस करार से हमें कितना फायदा होता है।’ एक छोटी सीमेंट कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘अगर किसी के पास दूसरा रास्ता नहीं हो और ऐसे करार में उसे फायदा हो तो कंपनी बेच देना ही इकलौता रास्ता रह जाता है।’