वायदा नहीं मांग-आपूर्ति के चलते बढ़ी हैं कीमतें एनआईसीआर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 9:47 PM IST

चार प्रतिबंधित जिंसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में सरकार की ओर से की गई 35.58 फीसदी की बढ़ोतरी से इस बात की पुष्टि होती है कि इन जिंसों के महंगे होने की मुख्य वजह मांग और आपूर्ति का समीकरण है।

ये निष्कर्ष एनसीडीईएक्स इंस्टीच्यूट ऑफ कमोडिटी रिसर्च (एनआईसीआर) की नवीनतम रिपोर्ट में जाहिर किए गए हैं।गौरतलब है कि गेहूं, चावल, तूर दाल और उड़द दाल उन आठ जिंसों में शामिल हैं जिसके वायदा कारोबार को सरकार ने पिछले साल की शुरुआत और इस साल के मई में निलंबित कर दिया था।

अन्य प्रतिबंधित जिंसों में आलू, सोया तेल, रबर और चना शामिल हैं। ये सभी निलंबन इस आरोप के मद्देनजर किए गए थे कि इनके वायदा कारोबार की वजह से ही कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।

एनआईसीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कई साल के दौरान तूर दाल के एमएसपी में मामूली बढ़ोतरी ही हुई लेकिन जब से इसे प्रतिबंधित किया गया तब से अब तक इसकी कीमतों में खासी बढ़ोतरी हो चुकी है।

सरकार के ऐसा करने की मुख्य वजह हाजिर भाव और न्यूनतम समर्थन मूल्य में साम्य बिठाना है। वास्तव में 2008-09 के खरीफ सीजन के दौरान तूर दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है। इतनी तेज बढ़ोतरी के बाद इस दाल की कीमतें 2,000 रुपये प्रति क्विंटल तक जा पहुंची है।

आश्चर्य की बात है कि तूर दाल के वायदा कारोबार पर जब से (जनवरी 2007) प्रतिबंध लगा है तब से अब तक इसके औसत मासिक हाजिर भाव में 53 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।

कारोबारियों के मुताबिक, इसकी मुख्य वजह तूर दाल की कम उपलब्धता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका स्पष्ट मतलब है कि जिंसों का वायदा कारोबार इसकी कीमतों को प्रभावित नहीं कर रही है।

इसके बजाय, मांग और आपूर्ति का समीकरण कीमतों को प्रभावित कर रहा है। हालांकि पिछले साल इस महत्वपूर्ण दाल की कीमत में केवल 10 फीसदी की वृद्धि करके इसे 1,550 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचाया गया था।

उड़द की बात करें तो 2008-09 सीजन के दौरान इसके एमएसपी में 48 फीसदी का इजाफा किया गया है। इजाफे के बाद इसकी कीमत 2,520 रुपये प्रति क्विंटल तक चली गई।

इस शोध में पाया गया कि मौजूदा खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा उड़द के रकबे में कमी हुई। उड़द की बुआई मई के आसपास होती है पर इस दौरान पर्याप्त बारिश न होने से इसकी ज्यादा बुआई नहीं हो पाई।

फरवरी 2007 से गेहूं का कोई नया अनुबंध वायदा बाजार में शुरू नहीं किया गया है। फिर भी तब से अब तक गेहूं की कीमत में कोई खास कमी नहीं हुई है।

हालांकि 2006-07 की तुलना में 2007-08 की तुलना में गेहूं का भंडार संतोषजनक स्थिति में पहुंच चुका है। 2007-08 में गेहूं का भंडार 2.73 करोड़ टन रहा तो इसके पिछले साल यह महज 2.51 करोड़ टन रहा था।

पिछले साल की तुलना में इस साल सरकार ने गेहूं की एमएसपी में 33.3 फीसदी की वृद्धि कर इसे 1,000 रुपये प्रति टन कर दिया है। हैरत की बात है कि फरवरी 2007 में इस पर प्रतिबंध लगाते वक्त इसका हाजिर भाव 1,022 रुपये प्रति क्विंटल था।

इस तरह मौजूदा एमएसपी और तब का हाजिर भाव लगभग बराबर की स्थिति में पहुंच चुके हैं। वास्तव में पिछले दो साल में इसकी एमएसपी 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुकी है।



 

First Published : September 20, 2008 | 4:07 PM IST