एटीएफ वायदा से एयरलाइंस को फायदा!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 8:05 AM IST

कच्चे तेल की कीमत में भारी उछाल के बीच देश का मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) अगले महीने की शुरुआत में एयर टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) वायदा शुरू करने जा रहा है।


एमसीएक्स के एक अधिकारी के मुताबिक एटीएफ वायदा से रिफायनरियों और एयरलाइंस कंपनियों को काफी फायदे मिलेंगे। एमसीएक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर जोसेफ मैसी ने कहा कि इस बाबत हमें वायदा बाजार आयोग से इजाजत मिल गई है और हम जल्दी यह कारोबार शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि हम अग्रणी एयरलाइंस कंपनियों के संपर्क में हैं, ताकि कारोबार शुरू होने के बाद वे हेजिंग कर सकें।

तेल रिफायनरी और एयरलाइंस कंपनियां फिलहाल क्रूड ऑयल कॉन्ट्रैक्ट में खासी दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि कच्चे तेल की कीमत करीब-करीब 90 फीसदी एटीएफ की कीमत से साम्यता है। कच्चे तेल में लगातार हो रही बढ़ोतरी और इसकी सप्लाई पर छाई अनिश्चितता के चलते कई एयरलाइंस कंपनियों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। भारतीय विमानन उद्योग खास तौर पर विमानन कंपनियां ईंधन की निश्चित और तेज सप्लाई के संकट से जूझ रही हैं। इन जरूरतों को देखते हुए एमसीएक्स ने एटीएफ वायदा शुरू करने का फैसला किया।

एमसीएक्स के अधिकारियों का कहना है कि इस वायदा के शुरू होने से तेल रिफायनरी से जुड़ी कंपनियां और एयरलाइंस कंपनियों को फायदा मिलेगा। तेल की बढ़ती कीमत के चलते घरेलू के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की मांग बढ़ी है और इस वजह से ईंधन की मांग में भी बढ़ोतरी हुई है। ऐसी मांग को पूरा करने के लिए विमानन कंपनियां ईंधन की निश्चित सप्लाई चाहती हैं ताकि बढ़ते हुए बाजार पर कब्जा किया जा सके। एयरलाइंस कंपनियां फिलहाल रिफायनरियों के साथ लंबे समय के कॉन्ट्रैक्ट पर जोर दे रही हैं। फिलहाल ऐसे कॉन्ट्रैक्ट की गैरमौजूदगी में विमानन कंपनियां मजबूत होकर नकदी बाजार से एटीएफ खरीद रही हैं।

एटीएफ वायदा शुरू होने से तेल कंपनियों अपने उत्पादन के कार्यक्रम बना सकेंगी। रिफायनरी और तेल कंपनियां कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से खासी प्रभावित हो रही हैं। एटीएफ या जेट फ्यूल खास तरह का पेट्रोलियम आधारित ईंधन है। इसकी क्वॉलिटी बाकी द्ूसरे पेट्रोलियम उत्पाद से काफी उम्दा होती है क्योंकि इसमें हाइड्रोकार्बन भी होता है। भारत में 78.05 लाख टन एटीएफ का उत्पादन होता है और इस मामले में यह आत्मनिर्भर है। घरेलू जरूरत को पूरा करने के बाद भारत करीब 36.62 लाख टन एटीएफ का निर्यात भी करता है।

भारतीय तेल कंपनियां पर्याप्त मात्रा में केरोसिन और एटीएफ का उत्पादन करती हैं और इससे घरेलू जरूरतें पूरी हो जाती हैं। कुल पेट्रोलियम उत्पाद की बिक्री में एटीएफ का योगदान 3.5 फीसदी का है। एटीएफ का सबसे ज्यादा उपभोग विमानन उद्योग में होता है। एयरलाइंस कंपनियों के कुल इनपुट कॉस्ट में एटीएफ का योगदान करीब 40 फीसदी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जनवरी 2005 में एटीएफ की कीमत 46 डॉलर थी, जो मई 2008 में 122 डॉलर पर पहुंच गई है। एयर ट्रैफिक में बढ़ोतरी और बजट एयरलाइंस के कारण एटीएफ की खपत में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है।

वित्त वर्ष 2001 से खपत की तुलना की जाए तो वित्त वर्ष 2007 में एटीएफ की खपत में 77 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। कच्चे तेल की कीमतों में हो रहे उतारचढ़ाव के चलते तेल रिफायनरी, विमानन, ऊर्जा निर्माण, शिपिंग, स्टील, रेलवे और केमिकल उद्योग पर खासा प्रभाव पड़ सकता है। एमसीएक्स के अधिकारी के मुताबिक, एटीएफ की कीमत पर कई चीजों का प्रभाव पड़ता है और इनमें कच्चे तेल की कीमत, विमानन उद्योग की मांग आदि शामिल हैं।

First Published : June 30, 2008 | 1:00 AM IST