लेखक : आर जगन्नाथन

आज का अखबार, लेख

प्रजनन दर बढ़ाए बिना कैसे हल हो आबादी का सवाल?

जब से राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने इस सत्य को समझा है कि ‘जनांकिकी ही नियति है’, तब से वे जनसंख्या को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। यूरोप और अमेरिका में उन्होंने अवैध प्रवासियों का आगमन रोककर ऐसा करने का प्रयास किया क्योंकि प्रवासियों के कारण उनकी जनांकिकी बिगड़ रही है। भारत में हम […]

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निराश करता अर्थशास्त्र का नोबेल सम्मान

इस वर्ष अर्थशास्त्र का नोबेल पाने वाले तीनों विद्वानों ने शायद ही ऐसा कुछ बताया, जो हम पहले से नहीं जानते थे। मगर जो उन्होंने नहीं बताया वह बहुत ज्यादा है। बता रहे हैं आर जगन्नाथन कई बार प्रतिष्ठित पुरस्कार किसी को न देना ही सही होता है, खास तौर पर तब जब दावेदार तय […]

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GST सुधार: बेहतर बनाम आदर्श का द्वंद्व और भारत के लिए सही रास्ता

सुधार का काम कभी पूरा नहीं होता। पिछले महीने अर्थशास्त्री एम गोविंद राव ने इसी समाचार पत्र में प्रकाशित आलेख में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सुधार की दिशा और समय के बारे में ठोस तर्क दिए थे। उन्होंने कहा था कि अब बड़े सुधारों का वक्त आ चुका है क्योंकि अर्थव्यवस्था वैश्विक प्रतिकूलताओं […]

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आव्रजन से जुड़े कठिन विषयों पर चर्चा जरूरी

विश्व में आव्रजन (immigration) की बढ़ती घटनाएं और उनके कारण हो रहे जनांकिकीय बदलाव चिंता का विषय हैं। निष्पक्ष दिखने के फेर में हमें इन पर बातचीत करने से बचना नहीं चाहिए। बता रहे हैं आर जगन्नाथन वास्तव में मुक्त समाज वे होते हैं जो वास्तविक मानवीय चिंताओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर बंदिश लगाकर, कथित […]

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आरक्षण नहीं, समान अवसर पैदा करने से बनेगी बात; राहुल गांधी का दांव भी कांग्रेस के लिए बन सकता है मुसीबत

भारत एक कुत्सित शिक्षा एवं रोजगार कोटा व्यवस्था अपनाने की दहलीज पर खड़ा है। असंवेदनशील राजनीति एवं न्यायिक हस्तक्षेप सहित कई कारणों से भारत इस गुत्थी में उलझता जा रहा है। क्षेत्रीय राजनीतिज्ञ और कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत में जाति आधारित जनगणना कराए जाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण […]

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डॉलर की कमजोरी और भारत की तैयारी

अमेरिका के कमजोर राजनीतिक और आर्थिक नेतृत्व के कारण आगे चलकर डॉलर की कीमत में निश्चित गिरावट आएगी। भारत को इसके असर से बचने के लिए कदम उठाने होंगे। बता रहे हैं आर जगन्नाथन नरेंद्र मोदी सरकार ने अगले दो वर्षों में भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने तथा 2029 के पहले […]

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आम चुनाव में जीत की गारंटी कभी थी ही नहीं

वर्ष 2024 के आम चुनाव में मोदी की संभावित जीत को लेकर कई आलेख और यहां तक कि किताबें भी लिखी गईं। यह सब चुनाव होने के पहले हुआ और अब हम कह सकते हैं कि ऐसे दावे करने वाले काफी हद तक गलत थे। देश में जिस हद तक सामाजिक और आर्थिक समस्याएं व्याप्त […]

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नई सरकार के गठन के बाद की चुनौतियां…

चुनाव के बाद चाहे जो भी सरकार बने, उसे कुछ अहम समस्याएं हल करने के लिए काम करना होगा। जनगणना के बाद परिसीमन, महिला कानून और रोजगार की समस्या प्रमुख हैं। बता रहे हैं आर जगन्नाथन चार जून को लोक सभा चुनाव (Lok Sabha Elections) नतीजों में चाहे जिसकी जीत हो, अगली सरकार के सामने […]

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द्वैत दृष्टिकोण की नाकामी और बदलती दुनिया

दुनिया अब ऐसे युग में प्रवेश कर रही है जहां वे बातें कारगर साबित नहीं होंगी जिन्हें महज कुछ दशक पहले तक हम हल्के में लेते थे। हर जगह लोकतंत्र खतरे में नजर आ रहा है और इसकी परिभाषा भी कुलीनों की सहमति पर आधारित है। माना जाता है कि हिंसा और शक्ति पर सरकार […]

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लोकसभा चुनाव के बाद सुधारों पर बने सहमति

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के दशक भर लंबे शासन और मौजूदा सरकार के बहुमत वाले दस वर्ष के शासन से एक बड़ा सबक निकला है: समयबद्ध और सुविचारित आर्थिक सुधार दोनों ही परिस्थितियों में चुनौतीपूर्ण हैं। यह सही है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले दस वर्षों में मनमोहन सिंह के दशक की तुलना में […]