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कृषि क्षेत्र में चुनौतियां बरकरार.. व्यापक सुधार की दरकार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:33 PM IST

वर्ष 2021 देश में कृषि एवं इससे संबंधित मामलों के निराकरण के तौर-तरीकों में आमूल-चूल बदलाव के लिए जाना जाएगा। पिछले वर्ष तीन नए कृषि कानून अस्तित्व में आने के बाद किसानों के विरोध प्रदर्शन एवं इससे उत्पन्न परिस्थिति और उसके बाद ये कानून अचानक निरस्त करने के केंद्र के निर्णय का दूरगामी असर कृषि क्षेत्र पर होगा।
नए कृषि कानूनों की उपयोगिता एवं इनकी आवश्यकता पर बहस के बीच भारतीय कृषि क्षेत्र से जुड़ी आधारभूत समस्याओं का ठोस समाधान अब तक नहीं निकल पाया है। देश का कृषि क्षेत्र इस समय कई चुनौतियों से जूझ रहा है। इनमें उत्पादन की स्थिर दर, आय में कमी, मौसम के मिजाज में बदलाव से हो रही समस्याएं, मृदा एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, सरकारी मदद (सब्सिडी) आवंटित करने के तरीके आदि शामिल हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हिमांशु कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि 2019 से अब तक कुछ बदला है। पहले भी कृषि क्षेत्र में सुधारों की जरूरत थी और अब भी इनकी जरूरत बरकरार है। हां, पिछले दो वर्षों में कोविड-19 महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था की हालत जरूर बिगड़ गई है। दो वर्ष पहले की तुलना में कृषि क्षेत्र अब अधिक प्रभावित नजर आ रहा है क्योंकि लोगों की क्रय शक्ति कमजोर हो गई है। इसका सीधा मतलब है कि कृषि वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो गई है और इस वजह से कृषि क्षेत्र के लिए दूसरी समस्याएं भी खड़ी हो गई हैं।’
उन्होंने कहा कि किसी अन्य पेशे की तरह ही किसानों के हाथों में भी रकम की जरूरत है। हिमांशु कहते हैं, ‘अगर कृषि से किसानों को कमाई नहीं होगी तो यह पेशा कभी नहीं कहलाएगी।’
उन्होंने कहा कि पीएम-किसान जैसी योजनाएं इसलिए शुरू हुई थीं क्योंकि छोटे किसानों के पास रकम नहीं थी और खेती पेशे के तौर पर लाभकारी नहीं रह गई थी। इस वर्ष जारी हुई कृषि परिवारों की स्थिति का अनुमान, 2019 रिपोर्ट में कहा गया है कि 2012-13 और 2018-19 के बीच देश में एक औसत कृषि परिवार की मासिक आय में फसल उत्पादन की हिस्सेदारी 47.9 प्रतिशत से कम होकर 37.7 प्रतिशत रह गई है। इसी रिपोर्ट के अनुसार पारिश्रमिक की हिस्सेदारी 32.2 प्रतिशत से बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गई है। इस तरह दैनिक मजदूरी कृषि पर आधारित परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत रह गया है।
इस सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि 2013 से 2019 के बीच कृषि आधारित परिवारों की संख्या 9 करोड़ से बढ़कर 9.3 करोड़ रुपये हो गई है, जबकि इसी अवधि में कृषि कार्य में नहीं लगे परिवारों की संख्या 6.6 करोड़ से बढ़कर करीब 8 करोड़ हो गई है।
सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि 2018-19 में भारत में कृषि व्यवसायों में लगे परिवारों पर औसतन 74,121 रुपये कर्ज था, जबकि 2012-13 में यह आंकड़ा 47,000 रुपये ही था। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगले छह वर्षों में आय 60 प्रतिशत बढऩे के साथ ही औसत कर्ज में भी इतना ही इजाफा हुआ है।’ वास्तविक अर्थों में आय वृद्धि 2012-13 और 2018-19 में कम रही।
इंदिरा गांधी विकास शोध संस्थान (आईजीआईडीआर) के निदेशक डॉ. एस महेंद्र देव ने कहा कि कृषि क्षेत्र को चावल एवं गेहूं उत्पादन करने के साथ ही दूसरी फसलों पर ही ध्यान देना होगा तभी हालत बेहतर होगी। देव ने कहा, ‘हमें तिलहन, मोटे अनाज के लिए उपयुक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ ही उनके विपणन की पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी। अन्य कृषि सुधारों में भूमि पट्टा कानूनों पर दोबारा विचार करना होगा।’
कृषि कानून निरस्त होने के बार सबसे पहला सबक यह मिला है कि इस क्षेत्र में कोई भी सुधार करने से पहले अधिक से अधिक संख्या में संबंधित पक्षों की राय लेनी होगी। किसान इनमें अभिन्न हिस्सा हैं।

First Published : December 29, 2021 | 11:23 PM IST