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राजकोषीय फिजूलखर्ची से बचेगी सरकार: Ilara Capital Chairman

भट्ट का कहना है कि भारत अपने वित्तीय अनुशासन की वजह से वै​श्विक रूप से दूसरों से अलग है।

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सुन्दर सेतुरामन   
Last Updated- June 30, 2024 | 11:18 PM IST

इलारा कैपिटल (Ilara Capital) के चेयरमैन एवं मुख्य कार्या​धिकारी राज भट्ट ने सुंदर सेतुरामन के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘यदि आप भारत को मध्याव​धि-दीर्घाव​धि नजरिये से देखेंगे तो आपको नुकसान नहीं होगा। लेकिन अल्पाव​धि के संदर्भ में, में हालात सहज नहीं मानता, क्योंकि मौजूदा तेजी पूरी तरह से तरलता-केंद्रित है।’

भट्ट का कहना है कि भारत अपने वित्तीय अनुशासन की वजह से वै​श्विक रूप से दूसरों से अलग है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:

-भारत ने 10 साल बाद गठबंधन सरकार की वापसी देखी है। क्या इससे आर्थिक नीति में बदलाव आएगा और बाजार पर असर पड़ेगा?

यह सकारात्मक घटनाक्रम है। अब, सरकार पर अच्छा प्रदर्शन करने का ज्यादा दबाव रहेगा। सरकार को कुछ कम सीटों के साथ ज्यादा प्रभावी प्रदर्शन करना चाहिए। हां, यदि सत्तारूढ़ पार्टीको 200 से कम सीटें मिलतीं तो हालात अलग होते। हमें एक कमजोर गठबंधन के लिए तैयार रहना पड़ता, जो देश के लिए अच्छा नहीं होता। जब गठबंधन में ज्यादा पार्टियां शामिल हों तो आम सहमति बनाना अ​​धिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। दो या तीन प्रमुख सहयोगियों के साथ यह अपेक्षाकृत आसान होता है।

मौजूदा व्यवस्था ज्यादा मजबूत गठबंधन वाली है और उसकी सहयोगी पार्टियों ने पहले भी उसके साथ काम किया है और अपने-अपने राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ सहयोग कर चुकी हैं। प्रमुख मंत्रियों को नहीं बदला गया है, जो नीतिगत निरंतरता का संकेत देता है और बाजार में तेजी भी इसी बात को दर्शाती है।

-बजट से आपको क्या उम्मीदें हैं?

विधानसभा चुनाव आ रहे हैं। इसलिए, मेरा मानना है कि सरकार इसे ध्यान में रखेंगी। इस बार, उसे जीतना ही होगा क्योंकि इस सरकार की गठबंधन प्रकृति है। हालांकि, सरकार द्वारा अनावश्यक राजकोषीय खर्च किए जाने की संभावना नहीं है।

-अभी, विकसित देशों में भी राजकोषीय घाटा बहुत ज्यादा है, चाहे वो अमेरिका हो या यूरोप। ऐसे में क्या हम अपने वित्तीय अनुशासन के कारण अलग बने हुए हैं?

अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि और प्रत्यक्ष करों में कमी की जा सकती हैं। ईंधन को छोड़कर, अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि से लोगों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता।

हमने देखा कि चुनाव के तुरंत बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने बिकवाली शुरू कर दी। अब वे फिर से शुद्ध खरीदार बन रहे हैं। क्या आप एफपीआईसे भविष्य में निवेश बरकरार रहने की उम्मीद कर रहे हैं?

एफपीआई प्रवाह अब बहुत महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि घरेलू प्रवाह उससे बेहतर है। जब एफपीआई बिकवाली करते हैं तो बाजार में अब कोई बड़ी गिरावट नहीं आती। एफपीआई प्रवाह की संभावना बहुत अधिक है, लेकिन हमारे पास अभी भी बहुत सारे पूंजीगत नियंत्रण हैं। ज्यादातर नियामकीय शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता है।

बहुत से लोग भारत में निवेश करने की बात कर रहे हैं, और अगर वे किसी अन्य बाजार की तरह सीधे खरीद सकते हैं तो वे उत्साहित होंगे। लेकिन इसके लिए बहुत सारे विनियामक परिवर्तनों की आवश्यकता है। भारत में अब 100 अरब डॉलर की कंपनियां हैं, जबकि अमेरिका में 3 लाख करोड़ डॉलर की कंपनियां हैं। प्रमोटरों के पास अभी भी बड़ी हिस्सेदारी है।

ज्यादातर अमेरिका में, प्रमोटर की कोई अवधारणा नहीं है। प्रमोटर वहां हैं, लेकिन उनकी हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से अधिक नहीं है।

-मौजूदा समय में भारत के बारे में अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की चिंताएं क्या हैं? आप अपने ग्राहकों से किस तरह की प्रतिक्रिया प्राप्त कर रहे हैं?

एकमात्र चिंता बाजार तक आसान पहुंच से जुड़ी हुई है। वे अमेरिका में भारत-केंद्रित ईटीएफ खरीद रहे हैं। कई निवेशक विदेश में इंडेक्स फंडों के जरिये निवेश कर रहे हैं।

-क्या हाल में ऐसे नियामकीय बदलाव हुए हैं जिनसे भारत में निवेश करने में एफपीआई को आसानी होगी?

खुलासा मानकों में ढील दी जा सकती है। कई निवेशक अपने स्वामित्व का खुलासा करना नहीं चाहते हैं। दूसरा है एक्सेस पॉइंट। अब एफपीआई रजिस्ट्रेशन तेज हो गया है। हालांकि, कुछ लोग मॉरिशस में फंड स्थापित करने में सहज नहीं हैं। अगर उनके पास अमेरिका में फंड है, तो वे सीधे खरीदना पसंद करेंगे।

-क्या आपको लगता है कि बाजार में और तेजी आएगी? मौजूदा बाजार हालात में आप निवेशकों को क्या सलाह देंगे?

मूल्यांकन महंगा है, लेकिन वैश्विक स्तर पर महंगे हैं। पश्चिम में, खास तौर पर अमेरिका में यह ज्यादा मंहगा है। अगर गिरावट आती है, तो यह पश्चिम में होने वाली किसी घटना से आएगी, और भारतीय बाजार प्रभावित होंगे। यदि आप भारत पर मध्याव​धि-दीर्घाव​धि नजरिये अपनाएंगे तो नुकसान नहीं होगा। लेकिन अल्पाव​​धि में, मुझे हालात उपयुक्त नहीं लग रहे हैं।

-क्या एफपीआई प्रवाह चीन और सस्ते उभरते समकक्ष बाजारों की ओर स्थानांतरित होगा?

भारत और चीन में हालात अगल अलग हैं। चीन में कीमतें नीचे हैं और मूल्यांकन काफी कम है। चीन के बाजार में दिलचस्पी बनी हुई है। चीन से जुड़ा एकमात्र जो​खिम भूराजनीतिक है। लोग भारत में वृद्धि की संभावना देख रहे हैं और वे ऊंचे पीई मल्टीपल की परवाह नहीं कर रहे हैं। यदि पश्चिमी बाजारों में गिरावट नहीं आती है तो भारतीय बाजार भी समान राह पर बढ़ते रहेंगे।

First Published : June 30, 2024 | 11:18 PM IST