सरकार द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2022 को अधिसूचित करने के एक दिन बाद कई सार्वजनिक नीति विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि सोशल मीडिया मंचों पर सामग्री से संबंधित ज्यादा शिकायतों की वजह से शिकायत अपील समितियों (जीएसी) के सामने बड़ी चुनौती की स्थिति बनेगी।
सरकार ने विभिन्न सोशल मीडिया मंचों के शिकायत निवारण तंत्र में खामियों पर बार-बार चिंता जाहिर की है। इलेक्ट्रॉनिकी एवं आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि भारतीय नागरिकों की शिकायतों को हल न कर पाने के कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ने केवल शिकायत अधिकारी नियुक्त करके बिचौलियों को बाकी जिम्मेदारी दे दी थी जो अब सुचारु रूप से काम में नहीं आ रहा है।
मंत्री ने शनिवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हमारे पास नागरिकों और डिजिटल नागरिकों के लाखों संदेश हैं, जिनकी शिकायतों का जवाब नहीं दिया गया या ‘आपके संदेश के लिए धन्यवाद’ जैसी प्रतिक्रिया तक नहीं मिली और यह हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है।’ हालांकि, आमलोगों के हितों की वकालत करने वाले समूहों का मानना है कि जीएसी के सामने काम की जो गुंजाइश है उससे उपयोगकर्ताओं की शिकायतों को प्रभावी ढंग से हल करना मुश्किल हो सकता है।
पॉलिसी एडवोकेसी कंपनी टीक्यूएच कंसल्टिंग के संस्थापक अधिकारी रोहित कुमार ने कहा, ‘हालांकि यह कदम नेक नीयत के साथ उठाया गया है, लेकिन सरकार द्वारा मनोनीत शिकायत अपील समितियों के गठन से इसके प्रशासनिक रूप से चुनौतीपूर्ण होने के अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी गंभीर खतरा पैदा होने की पूरी संभावना है। इंटरनेट पर उपयोगकर्ताओं की संख्या को देखते हुए शिकायतों की संख्या, समितियों के लिए बहुत ज्यादा हो सकती है।’
कुमार ने कहा कि इसका एक बेहतर समाधान बाहरी स्वतंत्र हितधारकों के साथ मंच के स्तर पर चरणबद्ध स्तर की अपील के साथ हो सकता है जो आखिरकार न्यायिक प्रणाली से जुड़ेगा। इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने 28 अक्टूबर को आईटी नियम, 2021 में नए संशोधनों का अंतिम संस्करण जारी किया। नए डाले गए नियम, सरकार को सोशल मीडिया सामग्री पर नियंत्रण से जुड़ी शिकायतों के निवारण के लिए कई शिकायत अपील समितियों (जीएसी) को नियुक्त करने की अनुमति देते हैं।
राज्यमंत्री चंद्रशेखर ने शनिवार को यह भी कहा कि सरकार शुरुआत में, एक या दो समितियों की नियुक्ति करके सोशल मीडिया शिकायतों का निवारण शुरू करेगी और भविष्य में इनकी जरूरत बढ़ने पर इनमें से अधिक की नियुक्ति करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार जीएसी के ढांचे, संगठन और कामकाज का विवरण ‘बहुत जल्द’ पेश करेगी। जून में जब मसौदा प्रस्तावों को जनता के परामर्श के लिए खोला गया था तब मंत्रालय ने कहा था कि एक जीएसी स्थापित करने की आवश्यकता है क्योंकि इसने कई उदाहरण देखे हैं जहां मध्यस्थों के शिकायत अधिकारियों ने शिकायतों पर संतोषजनक तरीके से काम नहीं किया।
हालांकि, सरकार ने उद्योग को एक स्व-नियामक संगठन का भी सुझाव दिया था। हालांकि, बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों में आम सहमति नहीं बन पाई क्योंकि गूगल बाहरी समीक्षा के लिए तैयार नहीं थी और मेटा तथा ट्विटर ने सरकार के अतिरेक से बचने के लिए स्व-विनियमन का समर्थन किया।
बदले हुए नियमों पर किसी भी बड़ी तकनीक ने जवाब नहीं दिया। लेकिन मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि अब इसका मतलब यह होगा कि मुद्दों को हल करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी और जीएसी तक नहीं इसे नहीं बढ़ाना होगा। एक वैश्विक व्यापार संगठन के प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘ऐसा लगता है कि सरकार ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया है और जीएसी बनाने के अपने फैसले पर टिके रहने का निर्णय लिया है। लेकिन यह वह नहीं है जिसका हमने सार्वजनिक परामर्श के दौरान प्रस्ताव रखा था। हमने सोशल मीडिया शिकायतों को हल करने के लिए एक स्व-नियामक संगठन का प्रस्ताव दिया था।’
इलेक्ट्रॉनिकी एवं आईटी मंत्रालय द्वारा जारी राजपत्रित अधिसूचना के अनुसार, सरकार अब से तीन महीने के भीतर एक या एक से अधिक जीएसी स्थापित करेगी। प्रत्येक समिति में एक अध्यक्ष और सरकार द्वारा नियुक्त दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे, जिनमें से एक पदेन सदस्य होगा और दो स्वतंत्र होंगे। डिजिटल अधिकारों के पैरोकारों ने समितियों की क्षमता से जुड़ी संभावित समस्याओं के बारे में चेतावनी दी। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के नीति निदेशक प्रतीक वाघरे ने कहा कि जीएसी आज के सूचना पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद कई चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं हो सकता है।
वाघरे ने कहा, ‘यह प्रणालीगत मुद्दों को हल करने का प्रयास करने के लिए किसी सामग्री के विशेष हिस्से के बारे में लिए गए निर्णयों पर निर्भर करता है जो मुद्दे दरअसल जवाबदेही तय करने की व्यापक सामाजिक स्तर की समस्याओं के कारण होते हैं। व्यक्तिगत फैसलों को जोड़कर भी अंतर्निहीत समस्याएं हल नहीं की जा सकती हैं क्योंकि वे न तो दोहराए जाने योग्य हैं और न ही मोटे तौर पर लागू किए जाने लायक हैं क्योंकि इसमें काफी जटिलता होती है।’
सार्वजनिक हितों का पैरोकार करने वाले समूहों के अनुसार, जिस प्रावधान की वजह से सोशल मीडिया मंचों को समस्या रिपोर्ट करने के 72 घंटों के भीतर गैरकानूनी सामग्री को हटाने की आवश्यकता होती है, वह सामग्री की नियंत्रण क्षमता के साथ समस्या को और बढ़ा सकता है।
सीयूटीएस (कट्स) इंटरनैशनल के निदेशक (शोध) अमोल कुलकर्णी ने कहा कि यह प्रावधान छोटे मंचों के लिए अनुचित साबित हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘यहां समस्या है क्योंकि सभी मध्यस्थों के पास 72 घंटे के भीतर आपत्तिजनक सामग्री हटाने की क्षमता नहीं होगी। ऐसे में छोटे मध्यस्थों के लिए यह असंगत या अनुचित चिंता पैदा करता है जो ऐसा करने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं। इसकी समीक्षा करना उपयोगी हो सकता है।’
उन्होंने कहा कि जीएसी की नियुक्ति एक सकारात्मक कदम है। कुलकर्णी ने कहा, ‘यह बहुत अच्छा होगा अगर सरकार जीएसी में विशेषज्ञों और उपभोक्ता प्रतिनिधियों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से नियुक्त करने की योजना बना रही है। संशोधन में भी यह भी कहा गया है कि जीएसी अपने निर्णय लेते समय क्षेत्र के विशेषज्ञों से राय ले सकती है जो सही दिशा में उठाया गया कदम है।’
