मुनाफे की पटरी पर दौड़ती कंपनियां

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 06, 2022 | 12:02 AM IST

चाहे कार्गो के परिचालन का सवाल हो या यात्रियों के परिवहन का सवाल, भारतीय रेलवे के बारे में सोचते ही भीड़भाड़ भरे स्टेशनों और ट्रेन के डिब्बों का ख्याल आता है।


ये हालात यह भी दिखाते हैं कि भारतीय रेलवे का मौजूदा बुनियादी ढांचा न ही यात्रियों के लिये पर्याप्त है और न ही कार्गो के परिचालन के लिए। ये हालात भारतीय रेलवे के मजबूत बुनियादी ढांचे और अधिक निवेश की मांग करते हैं तथा क्षमता बढ़ाने की जरुरत को भी बताते हैं। 


आज पिछले चार सालों से भारतीय रेलवे लगातार लाभ प्राप्त कर रही है जिससे 68,800 करोड़ रुपये का कैश सरप्लस रहने का अनुमान है। भारतीय रेलवे की स्थिति में आये आश्चर्यजनक सुधार और रेलवे का अगले पांच सालों में लगभग 250,000 करोड़ रुपये बुनियादी ढांचे केसुधार में लगाने की योजना से न सिर्फ रेलवे की अधिसंरचना में सुधार होगा बल्कि यह अवसर उन कंपनियों  केलिये भी फायदेमंद है जो रेलवे को अपनी सेवाएं मुहैया कराती है।


टॉरस म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर नीतीश ओझा का कहना है कि रेलवे ने 21 फीसदी सालाना वृध्दि के साथ वित्तीय वर्ष 2009 के लिए 37,500 करोड़ रुपये के खर्च की घोषणा की है। इस पूंजी को नेटवर्क के प्रसार,उन्नयनीकरण,और तेज गति वाले मार्गों के विकास में लगाया जायेगा। उत्साहित करने वाली बात यह है कि रेलवे के पांच सालों में प्रस्तावित कुल खर्च 2.5 लाख करोड़ रुपये में से लगभग 1 लाख करोड़ रंपये को पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी के अधीन खर्च किया जायेगा।


रेलवे ने अपनी सालाना योजना के अंतर्गत रेलवे बजट में पहले से ही तेज गति के रेलवे मार्गो,यातायात सुविधाओं और नेटवर्क के विकास और प्रसार,फ्लाईओवर के निर्माण और वस्तु-संग्रह केंद्रों के उन्नयीकरण केलिये धन के आवंटन की घोषणा की है। इसके अतिरिक्त वित्तीय वर्ष 2009 में रेलवे का मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्कोंका निर्माण करने ,लोकोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों की स्थापना करने, कनेक्टिविटी में सुधार करने और कंटेनर का परिचालन प्राइवेट सेक्टर के जरिये कराने का विचार है।


एचएसबीसी में फंड मैनेजमेंट इक्विटीज के प्रमुख मिहिर वोरा का कहना है कि कुल मिलाकर हम रेलवे में वृध्दि की संभावनाओं को लेकर आशावान हैं क्योंकि यह यातायात का सबसे सरल और सस्ता माध्यम है। यहां तक कि 10 वीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे की वृध्दि दर प्रस्तावित वृध्दि दर से दुगना रही थी। यह इस यातायात माध्यम के महत्त्व को दिखाता है। हालांकि आगे की वृध्दि दर को बरकरार रखने के लिये रेलवे की प्रतिभूतियों में निवेश की जरुरत है।


इन बातों पर गौर करने से पता चलता है कि रेलवे भारत में रेलवे यातायात को आसान और सुविधाजनक बनाने केलिए प्रतिबध्द है। हमारे पास उन कंपनियों की सूची है जो रेलवे केलिये यांत्रिक उपकरणों का निर्माण करती हैं। इन उपकरणों में वैगन,ब्रेक,सेफ्टी डिवाइस, इंजन तक शामिल हैं। इन सभी कंपनियों की आने वाले समय में पौ-बारह रहेगी।


रोलिंग स्टॉक


अगले कुछ सालों में कंटेनर वैगन,लोकोमोटिव,रेलवे कोच और मेट्रो कोच के निर्माण के लिये कुछ हजार करोड़ रुपये की पूंजी का प्रवाह होगा। नए डिब्बों का निर्माण पुराने डिब्बों को हटाने के लिये किया जाएगा। करीब 20,000 किलोमीटर के उच्च यात्री यातायात घनत्व वाले मार्ग पर बड़ी मात्रा में निवेश किया जाएगा जिससे नए डिब्बों और लोकोमोटिव इंजन की बेहद मांग रहने की संभावना है।


ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान रेलवे वीइकल्स का उत्पादन जिसे रोलिंग स्टॉक केनाम से भी जाना जाता है,पिछली पंचवर्षीय योजना की तुलना में दुगना हो गया। वित्तीय वर्ष 2008 में रोलिंग स्टॉक पर 5,500 करोड़ के निवेश का लक्ष्य रखा गया है। इसकेअतिरिक्त वित्तीय वर्ष 2009 के रोलिंग स्टॉक पर अब तक के सबसे ज्यादा 11,045 करोड़ का प्रावधान किया गया है।


इसके अतिरिक्त 20,000 नये रेल डिब्बों, 250 डीजल और 220 बिजली के इंजनों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। यह इन क्षेत्रों में परिचालन करने वाली कंपनियों के लिये शुभ समाचार है।


बीईएमएल


एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थमूवर्स कंपनी को भारतीय रेलवे के इस व्यापक निवेश से सबसे ज्यादा फायदा होने की संभावना है विशेषकर मेट्रो रेल के कोचों के निर्माण में। यह इस कंपनी की बढ़ती ऑर्डर बुक में भी देखा जा सकता है जो वित्तीय वर्ष 2008 के 3,005 करोड़ की अपेक्षा 3,795 करोड़ रुपये पर है।


बीईएमएल ने 2013 तक 5000 करोड़ रुपये की कंपनी होने का लक्ष्य रखा है। हालांकि लगता है कि कंपनी यह लक्ष्य 2010 तक ही पा लेगी। बीईएमएल खानों और बुनियादी ढांचा निर्माण में लगने वाले उपकरणों केनिर्माण से ही कंपनी के कुल राजस्व का 67 फीसदी भाग आता है जो बढ़ता हुआ कारोबार है।


बीईएमएल ने एक नयी कंपनी बीईएमएल मिडवेस्ट का निर्माण किया है जिसमें कंपनी की 48 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी कोयले के क्षेत्र में सरकारी खदानों का मालिकाना हक रखती है और उनका अधिग्रहण भी करती है।


जबकि रेलवे से कंपनी को अपनी कुल आय का मात्र चार फीसदी हिस्सा मिलता है। यह कारोबार रेलवे के बढ़ते खर्चों के साथ बढ रहा है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि रेलवे मेट्रो कोचों के निर्माण पर अधिक ध्यान दे रही है जो कंपनी के लिये फायदेमंद है क्योंकि मेट्रो कोचों के निर्माण में कंपनी विशेषज्ञता रखती है।


रेलवे बजट 2008-2009 केअनुसार मेट्रोपॉलिटन यातायात के लिये 650 करोड़ रुपये की राशि रखी गयी है। इसके लिये कंपनी अपने बेंगलुरु संयंत्र की सालाना क्षमता 150 कोच से बढ़ाकर 300 कोच कर रही है। बीईएमएल दिल्ली मेट्रो रेलवे कॉरपोरेशन से ज्यादा मेट्रो कार के ऑर्डर की प्रतीक्षा कर रही है और इसीप्रकार के प्रोजेक्ट जैसे मुंबई,तमिलनाडु,बेंगलुरु,कोच्चि, और कोलकाता में मेट्रो के निर्माण में भी भाग ले रही है।


कंपनी विभिन्न बढ़ते हुए कारोबारों में परिचालन कर रही है। जबकि इन क्षेत्रों में व्यापक निवेश किया जा रहा है तो कंपनी के रेवेन्यू ग्रोथ 20 फीसदी पर रहने की आशा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त कंपनी विदेशों में भी कारोबार की संभावनाएं तलाश रही है और कंपनी का निर्यात 2007 में 110 करोड़ रुपये की तुलना में 2008 में 257.7 करोड़ रुपये दर्ज किया गया।


कंपनी के ऑर्डर बुक में दर्ज 3,795 करोड़ रुपये कंपनी की आय में पारदर्शिता को दिखाते हैं। वर्तमान बाजार मूल्य 1,045 रुपये पर कंपनी के शेयरों का कारोबार वित्तीय वर्ष 2008 में अनुमानित आय से गुना ज्यादा है और वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 14 गुना ज्यादा है।


टेक्समेको


रेलवे वैगन की बढ़ती मांग विशेषकर कंटेनर वैगन की मांग से टेक्समेको को फायदा होगा क्योंकि यह कंपनी कंटेनर को रखने के लिये फ्लैट वैगन का निर्माण करती है। कंपनी मूलत: भारी उद्योगों से संबंधित उपकरणों का निर्माण करती है जिसमें रेलवे वैगन,हाइड्रो-मैकेनिकल उपकरण, औद्योगिक ब्वॉयलर,प्रेशर वेसेल्स और इंडस्ट्रियल मशीनरी शामिल हैं।


इसके अतिरिक्त कंपनी कंटेनर फ्राइट बिजनेस को प्राइवेट सेक्टर के लिये खोले जाने और फ्राइट कॉरिडोर प्रोजेक्ट से महत्त्वपूर्ण लाभ कमाने वाली कंपनियों में होगी। भारतीय रेलवे इंटीटयूशनल कार्गो के लिये फ्राइट कॉरिडोर प्रोजेक्ट बनाने के लिये भी प्रतिबध्द है। इसमें रोड कॉरिडोर की तरह रेल कॉरिडोर बनाने की योजना भी शामिल है।


यह स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के समांतर होगी। इस परियोजना के जरिये दिल्ली,कोलकाता और मुंबई को तेज गति केफ्राइट मूवमेंट के अंतर्गत लाया जाएगा। इसके पहले चरण के लिए 28,200 करोड़ रुपये का खर्चा अनुमानित किया गया है। एक बार पूरा हो जाने पर 2015 तक अनुमानित फ्राइट कार्गो की सेवा कर सकता है और इससे आने वाले 5 से 6 सालों में वैगन के लिये 10,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होगी।


टेक्समेको का इस क्षेत्र के 25 फीसदी भाग पर कब्जा है, इस निवेश से सबसे ज्यादा लाभान्वित होने वाली कंपनियों में होगी। आने वाले पांच सालों में 20,000 मेगावॉट अतिरिक्त बिजली की आपूर्ति के लिये कई जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण किये जाने की संभावना है। यह वातावरण कंपनी केबेहतर बढ़त की संभावनाएं उपलब्ध कराता है।


इसके स्टील फाउड्री प्रभाग और रियल एस्टेट प्रोजेक्ट से भी लाभ कमाने के आसार हैं। वित्तीय वर्ष 2007 के दौरान कंपनी ने अपनी स्टील फांउड्री की क्षमता 10,000 एमटी से बढ़ाकर 22,000 एमटी कर दी है। कंपनी अपनी वर्तमान क्षमता की उपयोगिता को 70 फीसदी तक बढ़ाने पर विचार कर रही है।


इसके अतिरिक्त कंपनी के पास दिल्ली और कोलकाता में 30 से 35 एकड़ की भू्मि है जो कंपनी के लिये फायदेमंद हो सकती है यदि वह संपत्ति के क्षेत्र में विकास पर गौर करती है। वर्तमान बाजार मूल्य कंपनी केशेयरों का कारोबार वित्तीय वर्ष 2008 में अनुमानित आय से 19 गुना के स्तर पर तथा वित्तीय वर्ष 2010 में अनुमानित आय से 14 गुना के स्तर पर हो रहा है।


कालिंदी रेल निर्माण इंजीनियर्स


कालिंदी रेल निर्माण का ट्रैक के निर्माण,गेज कनवर्जन से लगभग 70 फीसदी राजस्व आता है और शेष राजस्व कंपनी सिगनलिंग और संचार के उत्पादों से अर्जित करती है। अत: कंपनी को इस क्षेत्र मे होने वाले निवेश का फायदा मिलेगा। सिर्फ वित्तीय 2009 में ही नये रेलमार्गों के निर्माण के लिये 1,730 करोड़,गेड कनवर्जन के लिये 2,489 करोड़,विद्युतीकरण के लिये 626 करोड़ और मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट के लिये 650 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।


 इन सभी लाभों के साथ कंपनी को 28,200 करोड़ की फ्रेट कॉरिडोर योजना के विकास का भी लाभ मिलेगा। दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट की सफलता केबाद कंपनी मुंबई,चेन्नई और बेंगलुरु की मेट्रो परियोजनाओं पर गौर कर रही है। इन संभावनाओं का असर कंपनी के ऑर्डर बुक में साफ दिखायी देता है जो वित्तीय वर्ष 2007 में इसकी आय से 2.6 गुना ज्यादा होकर 500 करोड़ रुपये है।


मौजूदा बाजार मूल्य 295 के स्तर पर कंपनी केशेयरों का कारोबार वित्तीय वर्ष 2008 में अनुमानित आय से 22 गुना ज्यादा और वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 13 गुना ज्यादा कीमत पर हो रहा है।


वैगन कंपोनेंट


वैगन,लोकोमोटिव और इससे जुडी गतिविधियों में भारतीय रेलवे का निवेश बढ़ने से इनमें इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की मांग भी बढ़ेगी। उद्योग के आंकड़ों के अनुसार एक डिब्बे में ही सुरक्षा उपकरणों से लेकर ब्रेक तक लगे उपकरणों का मूल्य 50 लाख रुपये के करीब बैठता है। इसलिये इस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिये 5,500-6,000 करोड़ रुपये तक के निवेश को झटकने का सुनहरा मौका होगा। अगर सीधे कहा जाय तो स्टोन इंडिया जैसी कंपनियों को इसका सीधा फायदा पहुंचेगा।


स्टोन इंडिया


स्टोन इंडिया इस क्षेत्र में दखल रखने वाली प्रमुख कंपनी है और इस क्षेत्र में कंपनी की 25 से 30 फीसदी की हिस्सेदारी है। कंपनी का कैरिज,फ्रेट,डीजल लोकोमोटिव और इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्रकार के ब्रेक का निर्माण करती है। इसका 98 फीसदी से भी ज्यादा राजस्व रेलवे से आता है।


इसके कुछ उच्च तकनीकी उत्पादों जैसे इंड-ऑफ-ट्रेन-टेलीमीटर (ईओटीटी) को बेहतर परिणाम मिल रहें हैं। भारतीय रेलवे ने भी सभी अच्छी ट्रेनों में ईओटीटी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की बात कही है। इस ईओटीटी टेक्नोलॉजी में सभी आधुनिक टेक्नोलॉजी जैसे जीपीएस,जीएसएम,रेडियो कम्यूनिकेशन से लेकर इलेक्ट्रानिक ब्रेक कंट्रोल सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है। यह उत्पाद कंपनी के उत्पादों मे बेहतर स्थान रखता है।


यह स्टोन इंडिया का पहला पेटेंट प्रोडक्ट होगा और इसे वैश्विक बाजार में बिक्री के लिए भी पेश किया जायेगा। कंपनी इसके निर्यात के प्रति आशावान है। कुछ विकासशील एशियाई देश जैसे इंडोनेशिया,मलेशिया और अफ्रीकी देश इसके लिये बड़े बाजार का निर्माण करते हैं। कंपनी पहले ही एशियाई बाजार में प्रवेश कर चुकी है और मलेशियन रेलवे के लिये टेलीवीरा टेगास एसडीएन बीएचडी के  लिये एक्सक्लूसिव एजेंट के तौर पर कार्य कर रही है।


इसके अतिरिक्त कंपनी ने भारतीय रेलवे की पैसेंजर डिब्बों और मेमु कोच के लिए एयर स्प्रिंग का निर्माण करने के लिये जापान की सुमीतोमो इलेक्ट्रिक इंड्रस्टीज के साथ समझौता किया है। सुमीतोमो को जापान की सुप्रसिध्द बुलेट ट्रेन के लिये इस उत्पाद के निर्माण के लिए जाना जाता है। इसे समझौते से भारतीय रेलवे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी प्राप्त कर सकेगी क्योंकि भारतीय रेलवे अपनी रोलिंग स्टॉक मैन्युफैक्चरिंग का आधुनिकीकरण करना चाहती है।


इन एयर स्पिरिंग को वर्तमान सस्पेंशन सिस्टम की जगह पर लगाया जायेगा जिससे यात्री ट्रेनों को तेजी से चलाया जा सके। कंपनी के अनुसार भारतीय रेलवे को इससमय प्रति वर्ष 2,800 नये कोचों की जरुरत होती है। इस तरह की संभावनाओं के बीच कंपनी का अगले कुछ सालों में 35 फीसदी की गति से बढ़ने की संभावना है। मौजूदा बाजार मूल्य 87.85 रुपये केस्तर पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्तीय वर्ष 2007 में अनुमानित आय से 6 गुनी कीमत पर हो रहा है।


केरनेक्स माइक्रोसिस्टम


ट्रैक और वैगन की संख्या में प्रसार के साथ इन ट्रैक और सवारी डिब्बों में यात्रा करने वाले यात्रियों की सुरक्षा भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। भारतीय रेलवे ने नार्थ फ्रंटियर रेलवे में एंटी कोलिजन डिवाइस(एसीडी) का परीक्षण करने के बाद इसे सफल घोषित किया है। रेलवे की सुरक्षा योजना के अनुसार 2013 तक पूरे रेलवे नेटवर्क में एसीडी सिस्टम का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया जायेगा। यह कंपनी के लिये बड़ी संभावना को दिखाता है।


केरनेक्स माइक्रोसिस्टम जैसी कंपनी जिसने एंटी कोलिजन माइक्रोसिस्टम जैसे डिवाइस का निर्माण,डिजाइन,मेंटिनेंस से लेकर कॉन्सेप्ट तैयार कर कोंकण रेलवे में इसे प्रयुक्त किया है। रेलवे का सुरक्षा उपकरणों की खरीद में इस उपकरण का प्रमुख स्थान होगा। इसके अतिरिक्त कंपनी मेट्रो स्काई बस,अर्बन डेवलेपमेंट और आधुनिक रेलवे डिस्ट्रीब्यूसन सिस्टम के लिये डिवाइस के निर्माण में तकनीकी साझेदार भी है।


केरनेक्स माइक्रोसिस्टम इन उत्पादों के लिये अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी संभावनाओं पर भी गौर कर रही है। मिस्र,कंबोडिया,ब्राजील, वेनेजुएला,इंडोनेशिया और वियतनाम इन उत्पादों के लिये बेहतर बाजार साबित हो सकते हैं।


इसके मेट्रो रेलवे के लिये अन्य उत्पाद जैसे मल्टी डिजिटल एक्सल काउंटर और ऑटो ड्राइविंग डिवाइस भी कंपनी की वृध्दि दर को बढ़ाने में मद्दगार साबित हो सकेंगे। कंपनी के स्टॉक का बाजार में वर्तमान में 182 रुपये पर कारोबार हो रहा है और कुछ सालों में इसके 40 से 45 फीसदी की दर से बढ़ने के आसार हैं।

First Published : April 28, 2008 | 2:27 PM IST