21 सितंबर को मोर्गन स्टेनली निवेश बैंकर से एक बैंक होल्डिंग कंपनी बन गई। 22 सितंबर को उसने घोषणा की कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्राइवेट होल्डिंग कंपनी मित्सुबशी यूएफजे (एमयूएफजे) उसकी 20 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी।
एमयूएफजे को भारत में कमर्शियल बैंकिंग के लिए लाइसेंस मिला हुआ है और उसकी यहां पर तीन शाखाएं हैं। प्रिया नाडकर्णी को दिए गए इंटरव्यू में मोर्गन स्टेनली के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और कंट्री हेड नारायण रामचंद्रन ने अपनी फर्म की भारत में योजनाएं और ग्लोबल फाइनेंशियल मार्केट में आई मंदी के मद्देनजर बदलाव पर चर्चा की।
दुनियाभर में मॉर्गन स्टेनली के स्वरूप में आए बदलाव का कंपनी के भारत में कारोबार पर क्या असर पड़ेगा ?
भारत में हमारे कारोबार की निगरानी दूसरे नियामक द्वारा की जाती है। इसलिए यहां पर कंपनी अपने स्वरूप में हुए बदलाव को लागू करने नहीं जा रही है। हकीकत यह है कि मॉर्गन अमेरिका में एक बैंक होल्डिंग कंपनी है, वहीं उसके भारतीय स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
क्या मॉर्गन स्टेनली की भारतीय इकाई को जापानी बैंक द्वारा किए जा रहे रणनीतिक निवेश का लाभ मिलेगा?
रणनीतिक रूप से हम यही कर सकते हैं कि रिजर्व बैंक के पास बैंक होल्डिंग कंपनी के लाइसेंस के लिए आवेदन करें। अगर हमारी फर्म को अमेरिका में इसके लिए स्वीकृति न भी मिली होती तो भी हम यह करना चाहते थे।
हम यहां पर अधिक से अधिक करना चाहेंगे। जापानी बैंक के साथ हमारी चर्चा वैश्विक स्तर पर हो रही है कि कैसे दोनों भारत में एशियाई देशों में दोनों के द्वारा दी जा रही सेवाओं में वैल्यू एड करें। एमयूएफजे को कमशयल बैंकिंग का विस्तृत अनुभव है जबकि हमारी फर्म को कैपिटल मार्केट का खासा अनुभव है।
हाल की मंदी का भारतीय बाजार पर क्या असर पड़ेगा ?
पिछले 18 माह में भारत में हमारे कारोबार के साथ कर्मचारियों की संख्या भी दोगुनी हुई है। इक्विटी ब्रोकरेज कारोबार में हमारी कंपनी एक स्थापित ब्रांड है। अब कंपनी ने एसेट मैनेजमेंट कारोबार में भी अपनी पैठ बढ़ाई है। साथ ही कंपनी का क्लाइंट और प्रॉपर्टी कारोबार के लिए एक फुल स्केल निवेश बैंकिंग डिविजन है।
हम फिक्स्ड इंकम और वेल्थ मैनेजमेंट बिजनेस के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी एनबीएफसी) के लाइसेंस का उपयोग कर रहे हैं। हमने पिछले साल एक एनबीएफसी कंपनी हासिल की थी जिसकी पूंजी इस समय 10 करोड़ डॉलर की है।
हमारी योजना इसमें बढ़ोतरी करने की है। भारत भी इस समय मंदी का सामना कर रहा है। अगर विकास की दर 9 फीसदी से 7 फीसदी पर आती है तो आपको भी अपनी चाल धीमी करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर भारतीय कारोबार के लिए हमारी रणनीति में बदलाव नहीं होगा। तकनीकी रूप से हम धीमे चल रहे हैं।
आपके प्राइवेट इक्विटी कारोबार पर मंदी का क्या प्रभाव पड़ा है ?
भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल एस्टेट क्षेत्र में प्राइवेट इक्विटी निवेश पर सलाह देने के लिए हमारे पास सलाहकार टीमें हैं। वर्तमान में इस तरह के सौदों में कीमत चुकाने को लेकरा हम बेहद चूजी हैं। हमे उम्मीद है यह क्षेत्र एक बेहद सक्रिय क्षेत्र होगा और अर्थव्यवस्था के एक बार पटरी पर आ जाने से सबसे पहले उबरेगा।