पश्चिम बंगाल के हावड़ा में धातु पिघलाकर मनचाही आकृति में ढालने वाली फाउंड्री इकाइयों की भट्ठी ठंडी पड़ रही हैं। विदेश में धातु की कास्टिंग का भंडार जमा होने और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती के कारण इनकी मुश्किल हो गई है। हावड़ा फाउंड्री इकाइयों का गढ़ कहलाता है और किसी जमाने में यह ‘पूरब के शेफील्ड’ के नाम से मशहूर था।
इस साल जनवरी से निर्यात के ऑर्डर के लाले पड़ गए हैं जिसकी सीधी मार लघु एवं मझोली फाउंड्री इकाइयों पर पड़ रही है। इकाइयों के मालिकों की कमाई घटी तो कामगारों की आमदनी कम होना तय है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू 16 महीने से अधिक गुजर चुके हैं मगर इसका असर हजारों किलोमीटर दूर तक हावड़ा में आज भी दिख रहा है।
हावड़ा में बनारस रोड की एक फाउंड्री में पिछले कई वर्षों से काम करने वाले अभिजित साहा को लगातार घटती आमदनी से परेशान होकर पिछले दिनों नौकरी ही बदलनी पड़ी। बनारस रोड इलाके में फाउंड्री के कई कारखाने हैं।
साहा जैसे लोग रोजाना 350 रुपये ही कमा पाते हैं और जरूरतें पूरी करने के लिए उन्हें ओवरटाइम करना पड़ता है। वह कहते हैं, ‘मुझे एक शिफ्ट में काम कर 350 रुपये मिलते हैं मगर इतने से गुजारा नहीं हो पाता। ओवरटाइम करूं तो दोहरी शिफ्ट जैसा हो जाता है और मेरी कमाई भी दोगुनी हो जाती है। मगर मैं जिस फाउंड्री में काम करता था वहां बहुत काम नहीं था और काम के घंटे कम होते जा रहे थे।’
बनारस रोड पर 1 किलोमीटर के दायरे में फैली फाउंड्री इकाइयों में काम अधिक नहीं रह गया है इसलिए ओवरटाइम की गुंजाइश नहीं रह गई है। कई कामगारों के खर्चे ओवरटाइम के बिना पूरे नहीं हो पाते हैं। एक फाउंड्री मालिक ने कहा, ‘काम बहुत नहीं है, इसलिए अब 12 घंटे के बजाय हम 8 या 10 घंटे ही काम करा रहे हैं। दुर्गा पूजा में चार महीने रह गए हैं, इसलिए हम लोगों को जाने भी नहीं दे सकते।’ फाउंड्री मालिकों को इस बात का भी डर है कि अभी कामगारों को निकाल दिया तो बड़े ऑर्डर आने पर काम करने वाले ही नहीं मिलेंगे।
पश्चिम बंगाल में करीब 500 फाउंड्री एवं फोर्जिंग इकाइयां हैं, जिनमें लगभग 95 प्रतिशत हावड़ा में हैं। इनमें केवल 20 प्रतिशत निर्यात करती हैं और यूक्रेन संकट के कारण उनकी माली हालत बिगड़ गई है।
भारतीय फाउंड्री एसोसिएशन के चेयरमैन दिनेश सेकसरिया ने कहा, ‘यूक्रेन युद्ध ने हमारा कारोबार रसातल में पहुंचा दिया है। लगभग पूरा यूरोप मंदी की चपेट में है, जिससे अमेरिका में भी कारोबारी माहौल खराब हो रहा है।’ उन्होंने कहा कि पिछले छह महीने में फाउंड्री इकाइयों में 90 के बजाय केवल 50 प्रतिशत क्षमता से काम हो रहा है।
एनआईएफ इस्पात के प्रबंध निदेशक गिरीश माधोगड़िया का कहना है कि यूरोप, अमेरिका और पश्चिम एशिया में स्टॉक जमा हो जाने के कारण जनवरी से ही कारोबार सुस्त हो गया था। माधोगड़िया के कारखाने में जनवरी से पहले 80-85 प्रतिशत क्षमता से काम हो रहा था मगर अब केवल 50 प्रतिशत क्षमता इस्तेमाल हो रही है।
फाउंड्री इकाइयों से लेकर फैब्रिकेशन यूनिट तक सभी कारोबार में सुस्ती के कारण परेशान हैं। एक इकाई के मालिक ने कहा कि पिछले डेढ़ महीने में उनका कारोबार 40 प्रतिशत तक घट गया है।
ईईपीसी इंडिया के रवि सहगल ने कहा, ‘पिछले साल मांग अच्छी थी और सामान भेजने के लिए कंटेनर कम पड़ रहे थे। तब ग्राहकों ने तकरीबन सभी फाउंड्री इकाइयों को ऑर्डर दे दिए और सितंबर से दिसंबर के बीच कंटेनर आसानी से मिलने पर बहुत सारा माल अमेरिका में इकट्ठा गया।’