केंद्र सरकार को कृषि सब्सिडी के बजाय कृषि शोध और विकास पर ज्यादा धन व्यय करने की जरूरत है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च आन इंटरनैशनल इकनॉमिक रिलेशंस में कृषि के इन्फोसिस चेयर प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने संजीव मुखर्जी से बातचीत में यह कहा। संपादित अंश:
रिजर्व बैंक ने कुछ सप्ताह पहले कहा है कि महंगाई का सबसे बुरा दौर छूट चुका है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति में व्यवधान आने से महंगाई बढ़ी थी और खाद्यान्न के वैश्विक दाम में तेजी आई। यह केवल मांग आपूर्ति या व्यवधान का मसला नहीं था। दरअसल ऊर्जा की बढ़ी लागत और रूस और यूक्रेन से आपूर्ति न होने की वजह से खाद्यान्न के दाम बढ़े। हमें यह नहीं पता कि आगे क्या होगा। लेकिन हम देख रहे हैं कि इस समय स्थिति उतनी खराब नहीं है, जितनी पहले थी। यह अभी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं है। ऊर्जा की कीमत धीरे-धीरे घट रही है। मुझे लगता है कि महंगाई नियंत्रण में रह सकती है। अभी बेहतर स्थिति नहीं है, लेकिन पहले से ठीक है।
मैंने स्टॉक सीमा तय करने या निर्यात पर प्रतिबंध का कभी पक्ष नहीं लिया, लेकिन कुछ संशोधन किया जा सकता है। हम धीरे धीरे ढील देने की ओर बढ़ सकते हैं। अच्छी बात यह है कि उर्वरकों की बढ़ी कीमत का बोझ किसानों पर नहीं डाला गया है। इसका बोझ सरकार ने उठा लिया। ऐसे में सरकार किसानों से कह सकती है कि हम उर्वरक की कीमत से आपको नुकसान नहीं पहुंचने दे रहे हैं और आपको भी अंतरराष्ट्रीय कीमत का लाभ न मिलने को लेकर कुछ कुर्बानी करनी होगी।
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कृषि एवं खाद्य के क्षेत्र में 3 अहम चीजें हैं। खाद्य व उर्वरक सब्सिडी है और पीएम-किसान दिया जाता है। केंद्र सरकार इसे तार्किक बना सकती है। हम कृषि क्षेत्र में निवेश के बजाय सब्सिडी पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। देश के बजट की तुलना में इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) का बजट देखें। यह 8000 करोड़ रुपये है.। वहीं हम मुफ्त खाद्यान्न जैसी सब्सिडी पर लाखों करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं। यह खाद्य व्यवस्था में टिकाऊपन और उत्पादकता के हिसाब से सही नहीं है। सततता और उत्पादकता कृषि क्षेत्र के शोध एवं विकास पर खर्च से आएगी।