पता चला है कि टाटा कॉफी कैफे कॉफी डे एंटरप्राइजेज के संस्थापक वीजी सिद्घार्थ से जुड़े 12,000 हेक्टेयर के कॉफी बागान खरीदने के लिए बातचीत के शुरुआती चरण में है।
अगस्त 2019 में सिद्घार्थ की मौत के बाद, उनकी पत्नी मालविका हेगड़े ने समूह के परिचालन की कमान संभाली थी और वह उनकी निजी परिसंपत्तियां भी संभाल रही हैं जिनमें कॉफी बागान भी शामिल हैं। सिद्घार्थ के कॉफी बागान एशिया में दूसरे सबसे बड़े माने गए हैं।
उन्होंने एचएसबीसी, राबो बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी), आरबीएल बैंक और इंडसइंड बैंक समेत विभिन्न बैंकों से 2,000 करोड़ रुपये का ऋण लिया था। एलवीबी और कुछ अन्य ऋणदाताओं ने पिछले साल नवंबर में कॉफी बागान परिसंपत्तियों के खिलाफ वसूली प्रक्रिया शुरू की। इस मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘टाटा कॉफी और हेगड़े के बीच बातचीत इस साल फरवरी में शुरू हुई थी, लेकिन कोविड की वजह से इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।’
उन्होंने कहा, ‘बातचीत फिर से शुरू हुई है, हालांकि सौदा अभी आरंभिक चरण में हो सकता है।’
संपर्क किए जाने पर टाटा कॉफी के अधिकारी ने इस बारे में कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया।
वीजी सिद्घार्थ के एक पारिवारिक प्रतिनिधि ने कहा, ‘हमने टाटा कॉफी को बागान बेचने के बारे में कोई चर्चा नहीं की है। इस संबंध में अटकलों को निराधार समझा जाना चाहिए। किसी भी ऋणदाता ने बागान परिसंपत्तियों पर रिकवरी प्रक्रियाएं शुरू नहीं की हैं।’
कर्नाटक के चिकमगलूर जिले में स्थित इस बागान में करीब 3,000 लोग काम करते हैं और यहां से हर साल 20,000 टन कॉफी का निर्यात होता है। इसकी वैल्यू 2,000 करोड़ रुपये पर अनुमानित है। खबरों में कहा गया है कि वीजी सिद्घार्थ ने कैफे कॉफी डे के व्यवसाय के लिए करीब 5,000 करोड़ रुपये की निजी गारंटी दी थी। उन्होंने कहा कि कॉफी बागानों के अलावा, उनके पास करीब 2,000 करोड़ रुपये मूल्य के सिल्वर होक और लकड़ी बागान भी थे। उनकी निजी परिसंपत्तियों में कर्नाटक में लग्जरी हॉस्पिटैलिटी चेन – द सेरई रिजॉटर्स भी शामिल है।
शुरू में, ब्लूमबर्ग ने खबर दी थी कि टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (टीसीपी) के बोर्ड ने कैफे कॉफी डे एंटरप्राइजेज की वेंडिंग मशीनें खरीदने के लिए मंजूरी दे दी है। हालांकि इस खबर की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकी है।
टाटा कॉफी के पास मौजूदा समय में करीब 8,000 हेक्टेयर क्षेत्र के कॉफी बागान हैं, जिनमें ज्यादातर तेलंगाना के टूप्रान और तमिलनाडु के थेणी में हैं। वहीं उसकी उपस्थिति कर्नाटक के कूर्ग और चिकमगलूर जिलों में भी है, जहां ये बागान ग्रीन बीन सेगमेंट की जरूरत पूरी करते हैं। इस सेगमेंट की कॉफी का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है।
