कंपनी अधिनियम में संशोधन के बाद कंपनी मामलों का मंत्रालय अब सीमित दायित्व साझेदारी (एलएलपी) अधिनियम के प्रावधानों को अपराध मुक्त बनाने की तैयारी कर रहा है। प्रस्तावित संशोधन को संसद के शीत सत्र में लाया जा सकता है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार एलएलपी को गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनडीसी) जारी करने की अनुमति देने की भी योजना बना रही है।
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘कंपनी अधिनियम के कई सारे प्रावधान एलएलपी अधिनियम से जुड़े हुए हैं। हम दोनों कानूनों को अनुकूल बनाना और प्रक्रियात्मक उल्लंघन के मामले में इसे अपराध रहित बनाना चाह रहे हैं।’
इस अधिनियम के करीब 20 क्लॉज प्रक्रियात्मक उल्लंघन से जुड़े हैं, जिन्हें संशोधित किया जाएगा। खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा, ‘कई ऐसे कानूनी प्रावधान हैं जो काफी कठोर हैं और ऐसे मामलों में न्यायिक हिरासत से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसलिए सरकार और उद्योग दोनों साथ मिलकर विभिन्न सांविधिक प्रावधानों को अपराध मुक्त बनाने पर काम कर रहे हैं।
प्रस्तावित संशोधनों में कानूनों की कुछ खामियों को भी दूर किया जाएगा, जैसे कि एलएलपी गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर जारी कर सकता है या नहीं। कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार एलएलपी को कारोबारी निकाय माना गया है लेकिन वह पैसे जुटाने के लिए डिबेंचर जारी नहीं कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एलएलपी के तहत केवल साझेदार ही पूंजी में योगदान दे सकते हैं और उसे प्रतिभूतियां जारी कर पूंजी जुटाने का अधिकार नहीं है।
एनसीडी डेट प्रतिभूतियां हैं। इसे कंपनी द्वारा लंबी अवधि के लिए कर्ज जुटाने के लिए जारी किया जाता है। इसके जरिये कंपनी लोगों से पैसे जुटा सकती है। लेकिन एनसीडी को शेयर या इक्विटी में नहीं बदला जा सकता है, जिसका मतलब हुआ कि ये हमेशा डेट प्रतिभूतियां ही रहेंगी। इससे कंपनी के स्वामित्व में किसी तरह का बदलाव नहीं होता है।
कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स में पार्टनर अंकित सिंघी ने कहा, ‘एनसीडी सामान्य कर्ज की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षित होता है। इससे एलएलपी के लिए पूंजी जुटाने की क्षमता में इजाफा होगा। इसके साथ ही इसमें निवेशकों की दिलचस्पी भी बढ़ेगी।’
डिबेंचर में ब्याज दर पहले से तय रहती है और रेटिंग एजेंसियां इसे कम जोखिम रेटिंग देती है। रस्तोगी ने कहा, ‘अगर एलएलपी को एनसीडी के जरिये पूंजी जुटाने की अनुमति दी जाती है तो वे बाजार से कम दर पर पूंजी जुटा सकती है क्योंकि डिबेंचर की दर हमेशा बैंक की उधारी दर की तुलना में कम होती है।’
संशोधनों पर इन सिफारिशों को कंपनी मामलों के मंत्रालय ने कंपनी विधि समिति को भेजा है। विधेयक को शीत सत्र में सदन में लाया जा सकता है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि आपराधिक प्रावधानों की वजह से इसमें न्यूनतम से अधिकतम जुर्माने का भी प्रावधान होता है। हम बीच-बीच का रास्ता अपनाएंगे ताकि किसी तरह का भेदभाव न हो।
विशेषज्ञों के अनुसार एलएलपी अधिनियम के तहत रिटर्न में फर्जी दस्तावेज या अन्य दस्तावेज के गलत होने पर संबंधित व्यक्ति को दो साल तक की सजा का प्रावधान है और एक लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
कंपनी मामलों का मंत्रालय अगले साल ई-सुनवाई मंच गठित करने की दिशा में भी काम कर रहा है।
