ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर के बीच भारत को बड़ा फायदा मिलता दिख रहा है। एशिया के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी अब अमेरिकी एथेन से भरे जहाज का इंतज़ार कर रहे हैं, जो पहले चीन भेजा जाना था लेकिन अब भारत के लिए रास्ता बदल चुका है।
यह जहाज, जिसका नाम STL Qianjiang है, अमेरिका के गल्फ कोस्ट से एथेन गैस लेकर चला है और अब सीधे गुजरात के दाहेज में रिलायंस के टर्मिनल पर पहुंचेगा। वहां मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने 2017 में एक यूनिट बनाई थी, जो इस गैस से एथिलीन नाम का केमिकल बनाती है। एथिलीन प्लास्टिक और कई दूसरे सामान बनाने में इस्तेमाल होता है।
रिलायंस ने 2017 में खुद को दुनिया की पहली कंपनी बताया था, जिसने इतने बड़े स्तर पर नॉर्थ अमेरिका से एथेन लाने की योजना बनाई थी। अब वही प्लानिंग भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में अहम भूमिका निभा सकती है। ब्लूमबर्ग के अनुसार, भारत के वार्ताकार अमेरिका से कह सकते हैं – “हम आपकी गैस खरीद रहे हैं, इसलिए 43 अरब डॉलर के व्यापार घाटे पर ज़्यादा चिंता न करें।”
68 साल के मुकेश अंबानी ने आज से कई साल पहले ही यह समझ लिया था कि नॉर्थ अमेरिका से एथेन गैस मंगवाना फायदेमंद साबित हो सकता है। उनके पिता धीरूभाई अंबानी को कभी “पॉलिएस्टर प्रिंस” कहा जाता था। मुकेश अंबानी ने भले ही रिटेल और डिजिटल जैसे नए कारोबार में करीब $57 अरब का बड़ा बिजनेस खड़ा किया हो, लेकिन अब भी उनकी सबसे बड़ी कमाई पुरानी ऑयल-टू-केमिकल्स यूनिट से होती है, जिससे हर साल लगभग $74 अरब (करीब ₹6 लाख करोड़) की आमदनी होती है।
पहले रिलायंस और बाकी कंपनियां एथिलीन नाम का केमिकल बनाने के लिए नाफ्था का इस्तेमाल करती थीं, जो कच्चे तेल को रिफाइन करने से निकलता है। लेकिन नाफ्था से एथिलीन बनाने में सिर्फ 30% तक ही गैस का सही इस्तेमाल हो पाता है। इसके उलट एथेन से करीब 80% गैस का फायदा मिलता है। पहले तेल तो मंगवाना ही पड़ता था, इसलिए नाफ्था से ही काम चल जाता था और उसी से पॉलिएस्टर और प्लास्टिक जैसे प्रोडक्ट बनाए जाते थे।
लेकिन अब एथेन सस्ता और ज़्यादा असरदार विकल्प बनता जा रहा है। एथेन की कीमत नाफ्था के मुकाबले करीब आधी पड़ती है। पहले तो एथेन को अलग करने की जरूरत भी नहीं समझी जाती थी। जैसे कतर से जो गैस भारत आती थी, उसमें एथेन को अलग नहीं किया जाता था। लेकिन अब कतर की कंपनी कतरएनर्जी ने भारत की सरकारी कंपनी ओएनजीसी के साथ एक नया समझौता किया है, जिसके तहत अब सिर्फ “लीन गैस” यानी एथेन निकाली हुई गैस ही दी जाएगी। अगर भारत को एथेन चाहिए, तो उसके लिए अलग से पैसे देने होंगे। इसका मतलब है कि एथेन की मांग और कीमत दोनों अब तेजी से बढ़ सकते हैं।
रिलायंस के पास पहले से ही 6 बड़े एथेन गैस लाने वाले जहाज हैं, जिन्हें वह दूसरी कंपनियों के साथ मिलकर चलाती है। अब कंपनी दाहेज टर्मिनल से अपने दूसरे प्लांट तक एथेन पहुंचाने के लिए 100 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बनाने की योजना बना रही है। उधर, सरकारी कंपनी ONGC ने जापान की मित्सुई कंपनी के साथ मिलकर दो नए एथेन टैंकरों के लिए समझौता किया है। साथ ही, एक और सरकारी कंपनी GAIL भी एथेन से जुड़ी एक नई यूनिट तैयार कर रही है, जहां इस गैस का इस्तेमाल कर प्लास्टिक जैसे उत्पाद बनाए जाएंगे।
अभी यह साफ़ नहीं है कि भारत और खासकर रिलायंस जैसी कंपनियों की यह नॉर्थ अमेरिका पर एथेन के लिए बढ़ती निर्भरता कितनी दूर तक जाएगी। आखिरकार, भारत की अर्थव्यवस्था अब भी काफी हद तक तेल पर ही टिकी है। लेकिन अगर एथेन पर निर्भरता और बढ़ी, तो यह भारत की फ्यूल इकोनॉमी को पूरी तरह बदल सकता है। इससे देश की सरकारी ऑयल रिफाइनरियों के लिए खतरा खड़ा हो सकता है, क्योंकि वे जो मिडल ईस्ट से कच्चा तेल मंगवाकर नाफ्था बनाती हैं, उसकी मांग घट सकती है। आज जो नाफ्था पेट्रोल और डीज़ल के साथ-साथ प्लास्टिक, डिटर्जेंट, खाद, कॉस्मेटिक और दवाइयों तक में इस्तेमाल होता है, उसका रोल छोटा हो सकता है। और बाकी कामों में उसकी खपत इतनी नहीं कि उसे फायदे में बनाए रख सके।
भारत में तेल की अहमियत वैसे ही कम होती जा रही है। देश की सबसे बड़ी कार कंपनी की एक-तिहाई गाड़ियां अब कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) पर बिक रही हैं। दिल्ली सरकार ने पेट्रोल में 20% बायो-एथेनॉल मिलाना अनिवार्य कर दिया है ताकि प्रदूषण कम हो और विदेशी तेल पर निर्भरता घटे। इलेक्ट्रिक गाड़ियों का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है, जिससे आने वाले समय में पेट्रोल की मांग और घटेगी। इसके बावजूद सरकार आंध्र प्रदेश में 90 लाख टन सालाना क्षमता वाली एक नई रिफाइनरी बनाने जा रही है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ इसलिए आगे बढ़ रहा है क्योंकि राज्य सरकार बड़े निवेश और नौकरियों के नाम पर भारी सब्सिडी दे रही है। वरना मौजूदा हालात में इसकी जरूरत या मुनाफा तय नहीं दिखता।
इस बीच मुकेश अंबानी अपने एथेन टैंकरों के बेड़े में तीन और जहाज जोड़ने की योजना बना रहे हैं। ऐसे समय में जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क के बीच रिश्ते बिगड़ गए हैं, व्हाइट हाउस को एक नया अरबपति कारोबारी दोस्त मिल सकता है। अगर अंबानी और ट्रंप के रिश्ते करीब आते हैं, तो दोनों को फायदा हो सकता है। अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर भले ही फिलहाल रुका हुआ है, लेकिन अमेरिकी एथेन की सप्लाई अब भी अधर में है। भारत की एथेन की खपत चीन जितनी बड़ी नहीं है, लेकिन भारत अमेरिका के इस बचे हुए एथेन को काफी हद तक खरीद सकता है। ट्रंप इसे अपनी ट्रेड पॉलिसी की जीत बताकर प्रचार कर सकते हैं, और उनके बेटे रिलायंस जियो से टेलीकॉम बिज़नेस के कुछ टिप्स भी ले सकते हैं। दूसरी तरफ, अंबानी के लिए सस्ते कच्चे माल का यह रास्ता उनके मुनाफे पर बने दबाव को कम कर सकता है।
रिलायंस के मालिक भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम और रिटेल कंपनियां चला रहे हैं, लेकिन अब उनका परिवार अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रिटी सर्कल में भी जगह बना रहा है। पिछले साल अंबानी के सबसे छोटे बेटे की पांच महीने तक चलने वाली भव्य शादी ने दुनियाभर का ध्यान खींचा, जिसमें इवांका ट्रंप और जारेड कुश्नर जैसे हाई-प्रोफाइल मेहमान भी शामिल हुए थे। इसके बाद ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने से पहले एक पार्टी में मुकेश और नीता अंबानी से मुलाकात की थी। इस साल नीता अंबानी न्यूयॉर्क के मशहूर लिंकन सेंटर में “स्लाइस ऑफ इंडिया” नाम का एक बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करेंगी।
शायद अमेरिकी एथेन के बड़े खरीदार के रूप में अंबानी की पहचान वैनिटी फेयर जैसी ग्लैमरस मैगज़ीन को न भाए, लेकिन व्हाइट हाउस जरूर इस पर नज़र रखेगा। (ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)