सत्यम मामले में खातों में हेराफेरी का इल्जाम झेल रहे रामलिंग राजू का नाम चाहे लोगों की जुबान पर चढ़ गया हो, लेकिन अभी सैकड़ों कंपनियों में ऑडिटिंग की हेराफेरी करने वाले पकड़ से बाहर हैं।
माल कमाने और कंपनी को चपत लगाने के लिए ये शातिर चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की मुहर और हस्ताक्षर का फर्जी इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचक रहे। ऐसे नटवरलाल न केवल कंपनी प्रबंधन को उल्लू बना रहे हैं, बल्कि सरकारी खजाने को भी इससे करोड़ों रुपये का चूना लग रहा है।
देश में सीए की सर्वोच्च संस्था आईसीएआई के पास अभी ऐसे 220 मामले हैं, जिनमें ऑडिटिंग में हेराफेरी या फर्जी सील या हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया गया है। सूत्रों के मुताबिक इनमें 19 मामले तो सत्यम जैसे ही हैं और उनकी सुनवाई भी अदालत में चल रही है।
इनके अलावा 66 मामले ऐसे हैं, जिनमें सीए के फर्जी हस्ताक्षरों और सील का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है। इस तरह के 65 मामलों में तो आईसीएआई पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करा चुकी है।
सीए के फर्जी हस्ताक्षरों और सील के इस्तेमाल वाले 55 मामलों में पीड़ित पक्षों ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया है और 15 मामलों में आईसीएआई ने अदालत में जाने का सुझाव कंपनियों को दिया है। लेकिन दिक्कत यह है कि प्रशासन इन मामलों को हल्के में ले रहा है।
कई मामले तो सालों से अदालत में अटके हैं और कई में पुलिस हाथ पर हाथ धरी बैठी है। आईसीएआई के अध्यक्ष उत्तम प्रकाश अग्रवाल के मुताबिक किसी भी कंपनी की बैलेंस शीट पर वही सीए हस्ताक्षर कर सकता है, जिसके पास आईसीएआई का सर्टिफिकेट हो।
उसका आईसीएआई का सदस्य होना भी इसके लिए जरूरी है। लेकिन कंपनियां अपनी माली हालत छिपाने के लिए खातों से छेड़छाड़ कर लेती हैं। इसके लिए कहीं तो फर्जी सीए से ही ऑडिट करा लिया जाता है और कहीं सीए के फर्जी हस्ताक्षरों या सील का इस्तेमाल होता है।
कई मामलों में तो फर्जी सीए भी उगाही के लिए इसी काम से जुड़े हुए हैं। आईसीएआई के कानूनी विशेषज्ञ का कहना है कि 1949 के कंपनी अधिनियम की धारा 24 (आईसीएआई का फर्जी सदस्य बताने पर या किसी चाटर्ड एकाउटेंट के पद का फर्जी प्रयोग करने पर),
1959 की धारा 24ए (फर्जी तरीके से संस्थान का नाम या किसी चार्टेड एकाउटेंट की डिग्री का फर्जी प्रयोग करने पर ) और 1949 की धारा 26 के तहत (फर्जी तरीके से सीए की प्रेक्टिस करने पर या हस्ताक्षर करने पर) ऑडिटिंग करने वाले फर्जी सीए पर कार्रवाई करने की व्यवस्था है।
लेकिन यह दंड इतना कम है कि करोड़ों का कारोबार करने वाली कंपनियां फर्जीवाड़ा बेफिक्री के साथ कर लेती हैं। धारा 24 के तहत पहली बार अपराध साबित हो जाने पर केवल 1 हजार रुपये के दंड का प्रावधान है और दूसरी बार में 5 हजार रुपये अथवा छह महीने की जेल या दोनों का ही प्रावधान किया गया है।
धारा 26 के तहत दोषी साबित होने पर पहली बार में 5 हजार रुपये का जुर्माना जबकि दूसरी बार में 1 लाख का जुर्माना अथवा 1 साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है।