कॉनकॉर के निजीकरण को जल्द हरी झंडी मिल सकती है क्योंकि रेल मंत्रालय अपनी नई भूमि लाइसेंसिंग नीति को मंजूरी देने वाला है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस नीति को 7-10 दिन में मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस नीति से नए खरीदार को लीज दरों के बारे में स्पष्टता मिल सकेगी, जिससे कंपनी के मूल्यांकन को लेकर स्पष्टता लाने में मदद मिलेगी।
सरकार ने नवंबर 2019 में कॉनकोर के रणनीतिक विनिवेश को मंजूरी दी थी, लेकिन सरकार रेलवे द्वारा लाई गई नई बढ़ी हुई भूमि लाइसेंस शुल्क के कारण पैदा हुई अनिश्चितता की वजह से इसकी बिक्री की प्रक्रिया के बारे में पहल नहीं कर सकी, जिससे कि कंपनी की वित्तीय स्थिति पर बहुत प्रभाव पड़ा था।
कॉनकॉर के कंटेनर भारतीय रेलवे से पट्टे पर ली गई जमीन पर बने हैं, जो प्रति कंटेनर लाइसेंस शुल्क के आधार पर है। पिछले साल अप्रैल महीने में यह व्यवस्था बदल गई, जब सरकार ने यह अधिसूचित किया कि औद्योगिक इस्तेमाल की जमीन के प्रति एकड़ बाजार भाव का 6 प्रतिशत भूमि लाइसेंस शुल्क होगा।
इसके पहले तक कॉनकॉर रेलवे को उसकी जमीन के लिए प्रति कंटेनर के आधार पर भुगतान कर रहा था। इसकी वजह से टर्मिनल ऑपरेटर और कैरियर की लागत बढ़ गई और कंपनी के निजीकरण की सरकार की योजना अटक गई।
अपनी आखिरी सालाना रिपोर्ट में कंपनी ने कहा कि बढ़े शुल्क से ‘कंपनी की वित्तीय स्थिति पर उल्लेखनीय असर होगा’ और रेलवे की जमीन पर बढ़े शुल्क का असर कम करने के लिए वह रेलवे की जमीन पर बने 15 टर्मिनल छोड़ेगी।
रेल मंत्रालय ने परामर्श के लिए विभागों को मसौदा नीति भेजी है और इसे जल्द मंजूरी मिलेगी। अधिकारी ने कहा कि इससे कंपनी के निजीकरण की दिशा में कदम बढ़ाने में मदद मिलेगी और खरीदार को स्पष्टता मिल सकेगी कि उसे पट्टा शुल्क के साथ कितना भुगतान करने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा, ‘अब कॉनकोर के संभावित खरीदार को यह स्पष्ट हो सकेगा कि अगले 35 साल के लिए कितना पट्टा शुल्क का भुगतान करना है।’
सरकार की कॉनकॉर में 54.8 प्रतिशत हिस्सदारी है और नवंबर 2019 में उसने कंपनी में अपनी 30.8 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने और रणनीतिक खरीदार के हाथ प्रबंधन सौंपने का फैसला किया था। कंपनी की 30.8 प्रतिसत हिस्सेदारी का मूल्य करीब 8,250 करोड़ रुपये होगा।
