मांग में कमी और कीमतों में आ रही तेज गिरावट की वजह से भारतीय आईटी कंपनियों हालत काफी पस्त हो चुकी है। इसी वजह से तो विश्लेषकों का मानना है कि इस साल अमेरिका के मशहूर एच1बी वीजा के लिए ज्यादा आवेदन नहीं करने वाले।
उनका मानना है कि पहले से इतर इस बार वीजा के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया जून तक खींच सकती है। पिछले कई सालों में तो आवेदन का कोटा पहले ही दिन में पूरा हो जाया करता था। अमेरिकी सीनेट के सदस्य सैंडर्स और चार्ल्स ग्रासली इस वीजा का काफी समय से विरोध करते आए हैं।
इस बार उन्होंने एक ऐसा प्रस्ताव पेश किया है, जिसके मंजूर किए जाने के बाद सरकारी मदद हासिल करने वाले बैंकों और कंपनियों के लिए अगले दो सालों तक सिर्फ और सिर्फ अमेरिकी कर्मचारियों को रखना मजबूरी हो जाएगी। इस प्रस्ताव को अमेरिकी सीनेट की मंजूरी मिल चुकी है।
अमेरिकी लॉ फर्म सायरस डी. मेहता एंड एसोसिएट्स के सायरस डी. मेहता का कहना है, ‘इस साल भी पिछले साल जितना उत्साह रहने की उम्मीद कम ही है।
कंपनियां एच1बी वीजा की तैयारी करने के करने के लिए उतनी तेजी से नहीं आ रही हैं, जितनी वे 2008 में आई थीं। इस बार कंपनियों में पिछली बार की तुलना में 50 फीसदी से भी कम उत्साह कम नजर आ रहा है।’
विश्लेषकों का कहना है कि अगर एक से सात अप्रैल के बीच 65 हजार एच1बी वीजा के लिए पूरे आवेदन नहीं आए तो कंपनियां जब तक आवेदन की सीमा पूरी नहीं हो जाती, तब तक वीजा के वास्ते आवेदन कर सकती हैं। 2004 में भी ऐसा ही हुआ था, जब आवेदन की सीमा एक अक्टूबर को पूरी हुई थी।
एक दूसरी अमेरिकी लॉ फर्म लॉक्वेस्ट में वकील पूर्वा चौथानी का कहना है कि, ‘हमारे पास कई कंपनियों ने आकर 50-60 कर्मचारियों की खातिर एच1बी वीसा के लिए तैयारी करवाने के लिए कहा है। हालांकि, पिछले साल की तुलना में इस साल इसे लेकर जोश काफी हद तक कम हो चुका है।
इस वजह से तो जहां वीसा के कोटे से ज्यादा आवेदन पहले ही दिन आ जाया करते थे, इस साल हमें उम्मीद है कि वीसा के आवेदन भरने की प्रक्रिया जून-जुलाई तक चलेगी।’
हालांकि, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अब तक आधी फरवरी ही गुजरी है। इसलिए कंपनियों के पास एक अप्रैल से पहले लॉ फर्मों के पास जाने के लिए पूरा मौका मौजूद है।
कितने एच1बी वीजा दिए जाएंगे, इसके बारे में हर साल अमेरिकी कांग्रेस फैसला करती है। यह कोटा उन लोगों पर लागू नहीं होता, जिनके पास या तो इस वक्त एच1बी वीसा है या पिछले छह सालों में कभी रहा है।
साथ ही, उन लोगों को भी अलग से एच1बी वीजा मिलता है, जो पिछले एक साल के दौरान लगातार अमेरिका में रहे हों। अमेरिकी और भारतीय कंपनियां बार-बार इस कोटे में इजाफा करती आई हैं, जिसे दो साल पहले 1.95 लाख से घटाकर 65 हजार कर दिया गया था।
अमेरिका में मंदी की वजह से वहां मौजूद भारतीय कंपनियों ने अपने काम की ऑउटसोर्सिंग करनी शुरू कर दी है। कुछ मामलों में तो कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वापस भारत लौटने को भी बोल दिया है।
विप्रो के उपाध्यक्ष (मानव संसाधन) प्रतीक कुमार का कहना है कि, ‘पिछले साल की तुलना में हम इस साल काफी कम तादाद में एच1बी वीजा के लिए आवेदन करेंगे। यह एक गलत धारणा है कि अगर एच1बी के लिए सीमा को खत्म कर दिया, तो भारतीय कंपनियां इनके लिए आवेदनों के ढेर लगा देंगी।
हिंदुस्तानी कंपनियां इस बात पर काफी सख्त हैं कि वे अमेरिका भेजने के लिए किसे चुन रही हैं। साथ ही, इसमें काफी खर्च भी होता है। एक वीजा पर कम से कम 3,000 डॉलर (1.5 लाख रुपये) खर्च होते हैं।’ पिछले साल विप्रो को 2500-3000 एच1बी वीसा मिले थे।
इस हिसाब से कंपनी को 48 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। टीसीएस तो अब स्थनीय स्तर पर ही लोगों को रखने लगी है। कंपनी के प्रवक्ता का कहना है कि, ‘हम एच1बी वीसा के बारे में कारोबार की जरूरतों को ध्यान में रखकर फैसला लेते हैं।’