दुनिया भर में ऑटो उद्योग की खराब हालत का असर शहर के ऑटो पुर्जे उत्पादकों तक होना शुरू हो गया है। शहर के ऑटो पुर्जा उत्पादकों को काफी घाटा उठाना पड़ रहा है।
एक ओर तो देसी बाजार में भी मांग में कमी आती जा रही है तो दूसरी ओर अमेरिकी बाजार में भी मांग की कमी के चलते निर्यात के लिए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। नतीजतन, कई छोटी इकाइयां तो बंद होने के कगार पर हैं।
शहर में ऑटो पुर्जा बनाने वाली तकरीबन 100 छोटी इकाइयां हैं। ये इकाइयां इन दिनों कई दिक्कतों का सामना एक साथ कर रही हैं। मसलन-इन उत्पादकों को मांग में कमी, ऑर्डर निरस्त होने, भुगतान में देरी के अलावा नकदी के संकट जैसी समस्याओं ने एक साथ आ घेरा है।
ये इकाइयां कुछ दिन पहले तक जगुआर, जनरल मोटर्स, फोर्ड, लैंड रोवर और बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनियों को पुर्जों की आपूर्ति करती थीं।
इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) की कानपुर शाखा के अध्यक्ष सुनील वैश्य कहते हैं, ‘तकरीबन 40 इकाइयां बंदी के कगार पर हैं जिससे 2,000 लोग तक प्रभावित हो सकते हैं। कई इकाइयों ने तो उत्पादन में कमी कर दी है। कुछ शिफ्ट कम रही हैं तो कहीं-कहीं पर काम के दिनों की संख्या कम की जा रही है। अमेरिका में आई समस्या ने यहां भी असर दिखाना शुरू कर दिया है।’
ऑटो पुर्जा उत्पादन संघ (एसीएमए) के उपाध्यक्ष जयंत डावर का कहना है, ‘ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स (ओईएम) अपने बचे हुए स्टॉक को बेचने में भी कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। नकदी की किल्लत तो है ही, भुगतान में हो रही देरी ने समस्या को और बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर बाजार में अभी नकारात्मक माहौल ही है।’
वेंडर को किए जाने वाले भुगतान में देरी हो रही है, क्षमता विस्तार के लिए बैंक कर्ज देने से मनाही कर रहे हैं। बैंक उन कंपनियों को भी कर्ज देने से मना कर रहे हैं जो जनरल मोटर्स और फोर्ड जैसी कंपनियों को पुर्जों को आपूर्ति करती रही हैं।
इसके अलावा बीमा कवर को हटाने से भी निर्यातकों की मुश्किलों में इजाफा ही हुआ है। शहर की सरस्वती इंजीनियरिंग, जनरल मोटर्स को रेडिएटर और फास्टनर्स की आपूर्ति करती है। कंपनी का कहना है कि मौजूदा हालात के चलते अमेरिका से ज्यादा चिंता की बात भारत के लिए है।
सरस्वती इंजीनियरिंग के अध्यक्ष विपुल गुप्ता कहते हैं, ‘पिछला साल कई ऑटो कंपनियों के लिए बेहद बुरा गुजरा। हालात इतने बुरे हो गए कि पिछले साल की दूसरी छमाही में पहली छमाही की तुलना में बिक्री में 50 फीसदी तक की कमी आई।’
इसके अलावा बीमा कवर हटने से भी इन इकाइयों के सामने मुश्किलें आ गई हैं। बीमा कवर से खरीदारों से भुगतान में गड़बड़ी की स्थिति में इन उत्पादकों को राहत मिली रहती है।
निर्यात ऋण गारंटी निगम (ईसीजीसी) ने इन दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के मामले में भारतीय पुर्जा उत्पादकों को नया क्रेडिट रिस्क इंश्योरेंस (सीआरआई) देने को मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
गुप्ता कहते हैं, ‘ऑटो पुर्जा उत्पादकों को घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात के मोर्चे पर भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।’ इसके चलते न केवल कारोबारियों के सामने मुश्किलें आ गई हैं बल्कि इन इकाइयों में काम करने वाले 1,500 से ज्यादा लोगों के सामने रोजी-रोटी का सवाल खड़ा हो गया है।
गुप्ता सहमति जताते हुए कहते हैं, ‘वैसे अभी नौकरियों में कटौतियों के बारे में बहुत ज्यादा सुनने में नहीं आया है लेकिन काफी लोगों को काम छोड़ने के लिए कह दिया गया है। अगर इसी तरह के हालात बने रहते हैं तो फिर आगे भी ऐसा ही हो सकता है।’
कई बैंक छोटी इकाइयों को कर्ज देने से साफ मनाही कर रहे हैं। उनको इस बात का डर लग रहा है कि अगर ये इकाइयां बैठ जाती हैं तो उनका पैसा भी डूब जाएगा।
फिलहाल तो ऑटो पुर्जा उत्पादक इधर-उधर मदद की गुहार लगाते फिर रहे हैं। लेकिन इस माहौल में भी कुछ ऑटो पुर्जा उत्पादक आशावाद का रास्ता भी अपनाए हुए हैं।