कमोडिटी

DBT in Agriculture: डीबीटी और खरीद पर बोनस कितने बेहतर?

किसानों के हित की ज्यादातर घोषणाएं राज्य सरकारों के चुनावी घोषणापत्रों का हिस्सा रही हैं और इन्हें पूरा करने से उनके संसाधनों पर अतिरिक्त भार पड़ना तय है।

Published by
संजीब मुखर्जी   
Last Updated- March 09, 2025 | 10:39 PM IST

पिछले कुछ सप्ताह के दौरान कई राज्य सरकारों ने किसानों के लिए विशेष प्रोत्साहनों का ऐलान किया है। इनमें जहां कई ने केंद्र सरकार की पीएम-किसान की किस्त के साथ अपनी ओर से दी जाने वाली रकम में वृद्धि की है तो कई ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर प्रति हेक्टेयर बोनस या लाभ देकर अन्नदाताओं को सहारा दिया है। किसानों के हित की ज्यादातर घोषणाएं राज्य सरकारों के चुनावी घोषणापत्रों का हिस्सा रही हैं और इन्हें पूरा करने से उनके संसाधनों पर अतिरिक्त भार पड़ना तय है।

मध्य प्रदेश कैबिनेट ने हाल ही में धान के किसानों को प्रति हेक्टेयर 4,000 रुपये प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया है, इससे सरकार की झोली से 480 करोड़ रुपये अतिरिक्त निकलेंगे। राज्य सरकार इसके अलावा भी कई साल से पीएम-किसान आवंटन में अपनी तरफ से 6,000 रुपये प्रति वर्ष और जोड़ कर देती आ रही है। यहां की सरकार ने गेहूं किसानों के लिए भी प्रति क्विंटल 125 रुपये बोनस देने का ऐलान किया था जिससे राज्य में गेहूं का भाव लगभग 2,600 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। यह फैसला सरकारी खरीद बढ़ाने के मकसद से किया गया।

राजस्थान ने हाल ही में पेश बजट में पीएम-किसान आवंटन को केंद्र से मिलने वाले 6,000 रुपये को बढ़ाकर प्रति वर्ष 9,000 रुपये करने का ऐलान किया है। यही नहीं, सरकार ने गेहूं पर 150 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने की बात भी कही है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ की विष्णु देव सरकार ने राज्य में 10,000 करोड़ रुपये की कृषक उन्नति योजना की घोषणा की है। इसके अंतर्गत किसानों को 19,257 रुपये प्रति एकड़ इनपुट सब्सिडी दी जाएगी। इनमें धान खरीद पर बोनस भी शामिल है।

इसी प्रकार ओडिशा की मोहन चरण माझी सरकार ने पीएम-किसान योजना के तहत प्रोत्साहन राशि को समय पर देने और किसानों को इनपुट सहयोग के लिए वर्ष 2025-26 के दौरान 2,020 करोड़ रुपये आवंटित करने का प्रस्ताव पेश किया है। इसके अंतर्गत ग्रामीण और शहरी दोनों जगह के पात्र सीमांत और छोटे किसानों को सीएम-किसान योजना के तहत दो फसली सीजन के लिए प्रति वर्ष 4,000 रुपये देने का प्रावधान है। इसी के साथ केंद्र से मिलने वाली पीएम-किसान योजना की 6,000 रुपये राशि मिलकर यह रकम प्रतिवर्ष 10,000 रुपये हो जाती है। इसके अलावा, सरकार भूमिहीन

कृषक परिवारों को सीएम किसान योजना के तहत वित्तीय सहायता के रूप में 12,500 रुपये साल में तीन किस्तों में देती है। यही नहीं, राज्य सरकार ने समृद्ध किसान योजना की राशि को भी 5,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 6,000 करोड़ रुपये कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने 3,100 रुपये प्रति क्विटंल की दर से धान खरीदने का भी वादा किया है। जो मौजूदा समय में 2,300 रुपये प्रति क्विंटल (सामान्य ग्रेड धान) है।

अन्य राज्य भी अपने स्तर पर किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) राशि देने की इसी तरह की योजनाएं अपनाते रहे हैं। यह अलग बात है कि इनमें कई प्रोत्साहन योजनाएं गेहूं और धान खरीद तक ही सीमित रहती हैं। इससे किसान अधिक मांग वाली दलहन, तिलहन और बागवानी आदि फसलों को उगाने से बचते हैं। करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है सो अलग। काफी समय से अर्थशास्त्री किसानों की आय बढ़ाने और करदाताओं के कंधे पर कम से कम बोझ डालने के तीन तरीकों पर बहस करते रहे हैं। इसमें एमएसपी पर प्रत्यक्ष खरीद से लेकर पीएम-किसान जैसी योजनाओं के जरिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण अथवा एमएसपी से नीचे भाव गिरने पर उसकी भरपाई करने जैसे तरीके शामिल हैं। पहली दो विधि अपनाने में काफी वित्तीय और उपज भंडारण से जुड़ी जटिलताएं हैं।

हाल ही में इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ (आईईजी) में प्रोफेसर एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान केंद्र के पूर्व मानद निदेशक सीएससी शेखर ने स्प्रिंगर पब्लिशर्स सिंगापुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक में लिखे एक लेख में कहा है कि प्रोत्साहन योजनाओं पर प्रति वर्ष 2,65,469 करोड़ रुपये से 3,40,091 करोड़ रुपये के बीच व्यय होता है। यह विश्लेषण 2019-20 मूल्य पर आधारित है। इसमें यह भी कहा गया है कि केवल 30 प्रतिशत फसल ही सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीदी जाती है जबकि शेष के लिए किसानों को बाजार दर से कम भुगतान मिलता है। कम मूल्य भुगतान के लिए दो परिदृश्य शामिल किए हैं। पहला, जब कीमतें एमएसपी से 10 प्रतिशत नीचे रहती हैं और दूसरा, जब वे एमएसपी से 20 प्रतिशत तक नीचे रहती हैं। सार्वजनिक खरीद की लागत की गणना के लिए सबसे पहले प्रति यूनिट फसल-वार स्तर सब्सिडी का आकलन फसल में आई आर्थिक लागत और उसके केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) के बीच के अंतर के रूप में किया गया है। आर्थिक लागत में खरीद मूल्य और खरीद में आकस्मिक व्यय एवं वितरण लागत शामिल होती है।

केंद्रीय निर्गम मूल्य वह होता है जिस पर उपभोक्ता सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत खरीद करता है। चावल और गेहूं के लिए सीआईपी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत तय मूल्य होता है। अन्य फसलों में सीआईपी को एमएसपी या आर्थिक लागत का 50 प्रतिशत मानाजाता है।

दूसरे, कदम के रूप में सब्सिडी लागत निकालने के लिए प्रत्येक फसल के संभावित बाजार अधिशेष को सब्सिडी प्रति इकाई से गुणा किया जाता है। इसके बाद कुल सब्सिडी लागत की गणना सभी फसलों की सब्सिडी लागत को जोड़कर की जाती है। यह तरीका एमएसपी वाली सभी 23 फसलों के लिए अपनाया जाता है। शोध में कहा गया है, ‘ये व्यय वास्तव में बहुत अधिक है और आंकड़ों का अंदाजा लगाने के लिए हम 2018-19 में कृषि में पूंजीगत व्यय निवेश को देखते हैं जो 2011-12 की कीमतों के आधार पर 306,749 करोड़ रुपये था।’

इससे इतर पेपर में तीसरा विकल्प भी बताया गया है, जिसमें प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर लगभग 19,875 रुपये का लाभ दिया जा सकता है। यदि परिवार के श्रम को भी जोड़ा जाए तो यह रकम 25,980 रुपये प्रति वर्ष होती है। वर्ष 2017-20 के बीच एमएसपी वाली 14 फसलों के लिए औसत उत्पादन लागत इस गणना के लिए इस्तेमाल की गई है। जबकि भूमि स्वामित्व पर ताजा उपलब्ध आंकड़े 2015-16 की कृषि जनगणना पर आधारित हैं। पीएम-किसान योजना के लिए केंद्र से वर्तमान वार्षिक स्तर पर होने वाला वितरण इस राशि से काफी कम यानी 6,000 रुपये है। इस दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि यदि राजकोषीय गुंजाइश कम है तो केंद्र सरकार आधी राशि उपलब्ध कराने पर विचार कर सकती है। यदि प्रति खेत 20,000 रुपये प्रति वर्ष भुगतान किया जाए तो यह राशि लगभग 1,44,815 करोड़ रुपये बैठती है और यदि प्रति खेत 25,000 रुपये प्रति वर्ष भुगतान हो तो यह रकम 1,89,297 करोड़ रुपये होगी।

पेपर के अनुसार, ‘कुल मिलाकर कृषि जीडीपी और सकल जीडीपी के प्रतिशत के रूप में प्रत्यक्ष आय हस्तांतरण पर व्यय खरीद और प्रत्यक्ष भुगतान प्रणाली के तहत बहुत कम होता है। यदि गेहूं और चावल के किसानों को छोड़ दें तो यह खर्च और भी कम होगा, क्योंकि उन्हें पहले ही एमएसपी के लाभ मिलते हैं।’ लेकिन शोध यह भी कहता है कि चूंकि इसमें पुरानी संख्या और आंकड़े इस्तेमाल किए गए हैं, इसलिए यह आंकड़ा बदल भी सकता है।
डीबीटी का आंशिक भुगतान राज्यों को अपने कोष से किसानों के लिए पूरक भुगतान करने को प्रोत्साहित करेगा, क्योंकि कृषि राज्य का विषय होता है।

इसमें यह भी कहा गया है कि डीबीटी का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इससे वे किसान भी लाभान्वित होते हैं, जिनके पास बेचने योग्य उपज न हो। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि इससे आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित होने का खतरा उत्पन्न होता है, क्योंकि भुगतान उत्पादन से सीधे जुड़ा नहीं होता।

First Published : March 9, 2025 | 10:39 PM IST