केमिकल उद्योग सस्ते आयात से परेशान

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 11:07 AM IST

मौजूदा वैश्विक मंदी से भारतीय रसायन उद्योग को एक अनोखी चुनौती मिल रही है। भारतीय कंपनियों को वैश्विक रसायन आपूर्तिकर्ताओं से कड़ी टक्कर मिल रही है ।


जो इस विकासशील भारतीय बाजार में बड़ी मात्रा में मौजूद संभावनाओं को भुना रहे हैं। भारतीय उद्योग को यह शिकायत है कि सस्ते आयात के कारण पॉलिमर, पेट्रोकेमिकल और कृषि से जुड़े हुए मूल रसायनों की कीमतें पिछले दो महीनों में 30 से 70 प्रतिशत तक गिर चुकी हैं।

भारतीय रसायन उद्योग में लगभग 9,500 कंपनियां शामिल हैं और उनका कहना है कि  देश की आर्थिक रीढ़ मे नई जान फूंकने के सरकारी प्रयासों से स्थिति सिर्फ बदतर ही होगी क्योंकि भारत कुछ ही उन बड़े बाजारों में शामिल है, जिनका विकास चरण अब भी बरकरार है।

उद्योग ने सालाना 2,45,000 करोड़ रुपये की सालाना बिक्री और 75,000 करोड़ रुपये का निर्यात राजस्व दर्ज किया है, लेकिन अब उद्योग जल्द ही एंटी-डंपिंग प्रयासों को लागू करने की बात कर रहा है, ताकि घरेलू उद्योग के लिए एक सुरक्षित दायरा तैयार किया जा सके।

भारतीय रसायन परिषद (आईसीसी) के उपाध्यक्ष आर पार्थसारथी का कहना है, ‘बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सिर्फ भारत ही एक उभरता हुआ देश बचा है।

इसके कारण इस क्षेत्र की प्रमुख रसायनपेट्रोकेमिकल अर्थव्यवस्थाएं जैसे चीन दक्षिण कोरिया, ताइवान और पश्चिम एशिया, भारत पर ध्यान दे रही हैं क्योंकि उन्हें भारत ही इकलौता बड़ी खपत वाला देश नजर आ रहा है जहां बिना किसी बड़े बुनियादी फेरबदल की जरूरत नहीं है।’

उनका कहना है, ‘रसायन में जरूरत से अधिक क्षमताओं और कहीं कोई ठोर-ठिकाना न होने की स्थिति में कई बीमार अर्थव्यवस्थाओं के पास कई बाह्य समस्याओं के साथ भारत निश्चय रूप में एक लक्ष्य है।’

आईसीसी के अनुसार इस समस्या के बढ़ने का करण यह है कि आयात शुल्क का रसायन उद्योग का ढांचा, जिसमें 5 से 7.5 प्रतिशत तक शुल्क लगाया जाता है।

पार्थसारथी का कहना है, ‘हमारे देश के मुकाबले पड़ोसी मुल्कों में यह शुल्क काफी अधिक 12 से 30 प्रतिशत तक है। वहां रसायन और पॉलिमर उद्योग काफी मजबूत हैं। विकसित देशों जैसे जापान, अमेरिका और यूरोपीय संघ में भी शुल्क काफी अधिक है।’

निर्माण और खपत में तेजी आएगी पर सिर्फ चीन, पश्चिम एशिया, दक्षिण कोरिया, ताइवान और आसियान को इसका फायदा मिलेगा। जाहिर तौर पर भारत के लिए यह अच्छा कदम नहीं है और उसे इसका खामियाजा भी उठाना पड़ेगा।

First Published : December 25, 2008 | 11:14 PM IST