देश की तीन दिग्गज सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों, टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो के वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च) और वित्त वर्ष 24 के नतीजे कमजोर रहे हैं। तीनों कंपनियों ने सतर्क अनुमान और सलाह भी जारी किए हैं (हालांकि टीसीएस राजस्व का अनुमान जारी नहीं करती)।
तीनों बड़ी कंपनियों के प्रबंधन की यह सोच है कि वैसे तो मांग में कोई स्पष्ट उभार नहीं दिख रहा, लेकिन वित्त वर्ष 24 की दूसरी छमाही (अक्टूबर 24 से मार्च 25) संभवत: इसका सबसे निचला दौर हो, जिसके बाद सुधार दिख सकता है। उनको उम्मीद है कि वैश्विक स्तर पर हालात बेहतर होने से वित्त वर्ष 25 के अंतिम महीनों और वित्त वर्ष 26 में आय की गति में धीरे-धीरे सुधार आ सकता है।
आईटी की इन तीन दिग्गज कंपनियों की मौजूदगी सभी भौगोलिक इलाकों और कार्यक्षेत्रों तक है। मार्च 2024 तक इन कंपनियों में कुल मिलाकर करीब 12 लाख कर्मचारी थे और वित्त वर्ष 24 का उनका कुल राजस्व 4.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक था।
उनके महत्त्वपूर्ण आकार और सभी खंडों और भौगोलिक इलाकों में मौजूदगी को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वित्त वर्ष 25 के लिए उनके अनुमान और रुझानों का आकलन ज्यादातर आईटी सेवा व्यवसायों के लिए अच्छा रहने की संभावना है, विशेष रूप से उन बड़ी कंपनियों के लिए जो छोटे, विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं।
तीनों बड़ी कंपनियों का वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही में राजस्व कम रहा है। इस अवधि में विप्रो का राजस्व तिमाही आधार पर थोड़ा कम रहा, जबकि एक साल पहले की तुलना में 6.5 फीसदी कम रहा। इसी तरह, इन्फोसिस के राजस्व में तिमाही आधार पर 2.2 फीसदी गिरावट आई, जबकि यह सालाना आधार पर यह सपाट रहा। टीसीएस का राजस्व तिमाही आधार पर 1.1 फीसदी बढ़ा, जबकि सालाना आधार पर इसमें 2.2 फीसदी की बढ़त हुई।
तीनों कंपनियों में वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही में कर्मचारियों की संख्या में भी तिमाही आधार पर गिरावट आई है। एक साल पहले के मुकाबले उनके कर्मचारियों की संख्या में 63,000 से ज्यादा की कमी आई है। इसके बावजूद कार्यबल का उपयोग अभी भी ऐतिहासिक स्तर से नीचे है। तीनों कंपनियों में आट्रिशन रेट यानी नौकरी छोड़ने की दर भी घटकर 12 फीसदी के आसपास रह गई है जो कि पिछले वर्षों के मुकाबले आधा है। कर्मचारियों की कम संख्या और कम नौकरी छोड़ने की दर का यह संयोजन पूरे उद्योग में कमजोर मांग का संकेत देता है।
तीनों कंपनियां कमजोर विवेकाधीन खर्च को चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र बताती हैं। हालांकि सभी कंपनियां लगातार सौदे हासिल कर रही हैं, लेकिन अधिकांश कार्यक्षेत्रों के ग्राहकों ने विवेकाधीन खर्चों में कटौती की है या इसे टाल दिया है। ऐसे में मांग का पूरा माहौल कमजोर बना हुआ है। कंपनियों ने कहा है कि जब तक व्यापक आर्थिक वृदि्ध में वैश्विक तेजी नहीं आती है और ग्राहक विवेकाधीन परियोजनाओं को फिर से शुरू नहीं करते हैं, तब तक इसमें बड़े बदलाव की संभावना नहीं है।
ये तीनों कंपनियां जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों, हाइपरस्केलर्स (क्लाउड सेवा प्रदाता) और डेटा सेंटर जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों की तलाश कर रही हैं। कुछ निवेशकों और विश्लेषकों का मानना है कि बाजार का अब सबसे निचला स्तर आ चुका है और वे इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि तीनों कंपनियां मार्जिन बनाए रखने में सक्षम हैं, भले ही राजस्व वृद्धि कमजोर या नगण्य रही हो। आईटी कंसल्टिंग फर्म गार्टनर का मानना है कि 5 लाख करोड़ डॉलर के वैश्विक आईटी बाजार के खर्च में कैलेंडर वर्ष 2024 (वित्त वर्ष 2025 की पहली तीन तिमाहियों) में 8 फीसदी की महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी।
गार्टनर का यह भी मानना है कि आईटी सेवाओं और उत्पादों के लिए 139 अरब डॉलर का भारतीय बाजार 13 फीसदी की बेहतर दर से बढ़ेगा। यदि यह काफी हद तक सही होती है, तो यह मांग बढ़ाने वाला हो सकता है और भारतीय कंपनियों को काफी हद तक इसका लाभ होने की संभावना है। गार्टनर का कहना है कि बढ़ा हुआ खर्च आईटी परामर्श क्षेत्र में केंद्रित हो सकता है। सीआईओ अब एनालिटिक्स और जेनरेटिव एआई में भी निवेश पर विचार कर रहे हैं। भारत में, डिवाइस और उपकरण सॉफ्टवेयर और डेटा सेंटर सिस्टम पर खर्च में तेज वृद्धि देखने की संभावना है।
आंतरिक प्रक्रियाओं और वितरण मॉडल को अनुकूलित करने में भी जेनरेटिव एआई ऐप्लिकेशन ढूंढना शुरू कर सकता है। यह पूर्वानुमान मध्यम अवधि में उम्मीद प्रदान करता है, लेकिन निकट अवधि का नजरिया मंद ही दिखाई दे रहा है।