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बाजार पर हावी विदेशी बिकवाली, बॉन्ड यील्ड बढ़ने और Fed के बयान से सूचकांकों में गिरावट

फेडरल रिजर्व की गवर्नर मिशेल बोमन ने बीते सोमवार को कहा था कि मुद्रास्फीति को पटरी पर लाने के लिए ब्याज दर में अभी कई दफा इजाफा करने की जरूरत पड़ सकती है।

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सुन्दर सेतुरामन   
Last Updated- October 03, 2023 | 10:42 PM IST

Stock Market: बॉन्ड यील्ड बढ़ने और फेडरल रिजर्व के दो अधिकारियों के बयानों में ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंची बनी रहने की आशंका झलकने से आज निवेशकों का हौसला पस्त हो गया।

इसका असर देसी बाजार पर भी पड़ा और सेंसेक्स 316 अंक गिरकर 65,512 पर बंद हुआ। निफ्टी भी 109 अंक नीचे 19,529 पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान दोनों सूचकांक एक महीने के सबसे निचले आंकड़े पर फिसल गए थे। बाद में नुकसान थोड़ा कम हुआ मगर सूचकांक गिरावट से नहीं उबर पाए।

10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड की यील्ड 4.7 फीसदी पर पहुंच गई, जो 15 अगस्त , 2007 के बाद सबसे अधिक है। बॉन्ड यील्ड में तेजी से इस साल दरों में इजाफे की आशंका भी बढ़ गई है, जिससे शेयरों पर दबाव बढ़ा है।

फेडरल रिजर्व के दो अधिकारियों के सतर्कता भरे बयान से भी दर वृद्धि में मजबूती आने के संकेत मिले हैं। फेडरल रिजर्व ऑफ क्लीवलैंड की अध्यक्ष लॉरेटा मेस्टर ने इस साल दर में एक बार और वृद्धि की जरूरत बताई तथा मुद्रास्फीति 2 फीसदी पर लाने का लक्ष्य हासिल करने तक ब्याज दरें ऊंची बनाए रखने पर जोर दिया। हालांकि मेस्टर ने कहा कि अंतिम निर्णय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करेगा।

फेडरल रिजर्व की गवर्नर मिशेल बोमन ने बीते सोमवार को कहा था कि मुद्रास्फीति को पटरी पर लाने के लिए ब्याज दर में अभी कई दफा इजाफा करने की जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि ईंधन की ऊंची कीमतों से मुद्रास्फीति के मोर्चे पर फेड की चिंता बढ़ा सकती है। इस बीच गोल्डमैन सैक्स ने आगाह किया कि ऊंची ब्याज दरों से शेयरों में आगे और गिरावट आ सकती है।

अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट ने कहा, ‘फेडअधिकारियों के बयान इस बात की स्वीकारोक्ति है कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति काबू में लाने पर ध्यान देगा, जिसके लिए दरें और बढ़ाने की जरूरत हो सकती है।

अल्फानीति फिनटेक के यूआर भट्ट ने कहा कारण है कि बॉन्ड यील्ड बढ़ रही है और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक पिछले एक महीने से उभरते बाजारों से अपना निवेश निकाल रहे हैं। मुद्रास्फीति पर फेड के रुख में कुछ महीने पहले की तुलना में काफी बदलाव आया है और वह दरें बढ़ाना जारी रख सकता है।

कच्चे तेल के चढ़ते दाम मुद्रास्फीति के खिलाफ केंद्रीय बैंकों की लड़ाई को मुश्किल बना रहे हैं। ब्रेंट क्रूड 92 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। कच्चे तेल में तेजी से दूसरे बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार का आकर्षण कम हो सकता है। भट्ट ने कहा, ‘अगर तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जाते हैं तो भारत के लिए भुगतान संतुलन में भी कठिनाई आ सकती है।’

आगे कंपनियों के तिमाही नतीजों से बाजार को दिशा मिलेगी। भट्ट ने कहा, ‘हमें तिमाही नतीजों खास तौर पर आईटी दिग्गजों के नतीजों पर नजर रखनी होगी।

First Published : October 3, 2023 | 10:36 PM IST