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संपादकीय: मुद्रास्फीति की चुनौती

अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में कहीं अधिक मजबूती दिखाई है जो अधिकांश विश्लेषकों के अनुमान से बेहतर है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 05, 2024 | 10:56 PM IST

मुद्रास्फीति (Inflation) की गति का आकलन करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो चुका है। उदाहरण के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व तथा विकसित और विकासशील देशों के कई अन्य केंद्रीय बैंकों का मानना था कि महामारी के बाद उपभोक्ता कीमतों में इजाफा अस्थायी प्रकृति का था।

बहरहाल, निरंतर ऊंची मुद्रास्फीति दर ने आखिरकार उन्हें समायोजन के लिए विवश किया। इसकी वजह से 2022 में पूरी दुनिया में नीतिगत दरों में तेज और समन्वित इजाफा हुआ और वैश्विक वित्तीय हालात में तंगी की स्थिति बन गई। उच्च ब्याज दर ने असर डाला और दुनिया भर में मुद्रास्फीति में कमी आई। इससे वित्तीय बाजारों में यह आशावाद फैला कि फेडरल रिजर्व जल्दी ही नीतिगत दरों में कमी शुरू करेगा।

फेड के अपने अनुमानों में भी संकेत दिया गया कि वह 2024 में फेडरल फंड दरों में 75 आधार अंकों की कमी करेगा। ये संकेत फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) की बैठक के बाद दिया गया था।

बहरहाल, फरवरी की तुलना में मार्च में मुद्रास्फीति के बढ़कर 3.5 फीसदी हो जाने के बाद एक बार फिर यह सवाल पैदा हो गया कि यह कितनी जल्दी फेडरल रिजर्व के मध्यम अवधि के दो फीसदी के लक्ष्य तक पहुंच सकेगी।

फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल (Fed Chairman Jerome Powell) ने गत सप्ताह एफओएमसी की बैठक के बाद अनुमान जताया था कि नीतिगत ब्याज दर लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती है।

पॉवेल ने यह भी कहा था कि जरूरी नहीं है कि फेड का अगला कदम ब्याज दरों में इजाफे के रूप में सामने आए। अधिकांश बाजार प्रतिभागियों को उम्मीद नहीं है कि फेडरल रिजर्व नीतिगत दरों में इजाफा करेगा।

परंतु अंतिम सिरे तक अपस्फीति मुश्किल हो सकती है और इसके लिए बाजार की अपेक्षाओं में समायोजन की जरूरत पड़ सकती है। 10 वर्ष के अमेरिकी सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल में मार्च के अंत से करीब 30 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। अब लंबे समय के लिए नए सिरे से उच्च आकांक्षा अमेरिका तथा शेष विश्व को प्रभावित करेगी।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में कहीं अधिक मजबूती दिखाई है जो अधिकांश विश्लेषकों के अनुमान से बेहतर है।

उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में चालू वर्ष के लिए वृद्धि अनुमानों को 60 आधार अंकों से संशोधित किया। परंतु लंबे समय तक प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति को जारी रखने से उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इसका असर वैश्विक वृद्धि पर भी पड़ेगा। अमेरिका में अगर लंबे समय तक उच्च ब्याज दर कायम रही तो इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अस्थिरता आएगी।

उदाहरण के लिए जापान के केंद्रीय बैंक ने पिछले सप्ताह कम से कम दो बार हस्तक्षेप किया ताकि येन की मदद कर सके जो 34 वर्षों के निचले स्तर तक गिर गया था। कई मुद्राओं खासकर विकासशील देशों की मुद्राओं पर और अधिक दबाव बनने की आशंका है।

भारत के लिए इसमें क्या संदेश है? अमेरिकी तथा वैश्विक वृद्धि पर दबाव व्यापारिक चैनलों के जरिये भारत में उत्पादन पर असर डालेगा। बहरहाल मुद्रा के मोर्चे पर भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। हाल के दिनों में रुपये की स्थिरता से इसे महसूस किया जा सकता है।

बीते एक वर्ष में डॉलर की तुलना में रुपये में केवल दो फीसदी गिरावट आई है। लंबी अवधि तक ऊंचा रहने से पूंजी के बाहर जाने का जोखिम होता है लेकिन संभव है इससे बड़ी मात्रा में पूंजी बाहर न जाए क्योंकि भारत का वृद्धि परिदृश्य और ब्याज दरें अपेक्षाकृत बेहतर हैं।

अनुमानों में संभावित बदलाव शायद मौद्रिक नीति से संबंधित निर्णयों पर असर न डाले। मौद्रिक नीति समिति का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर औसतन 4.5 फीसदी रहेगी जो चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। अनुमान से बेहतर वृद्धि नतीजों को देखते हुए नीतिगत दरों में जल्दी कटौती का भी कोई दबाव नहीं है।

First Published : May 5, 2024 | 10:56 PM IST