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भारतीय सेना: क्षमता विकसित करने में तेजी की दरकार

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 07, 2023 | 12:11 AM IST

दिल्ली में पिछले पखवाड़े भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के सालाना आयोजन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रक्षा उद्योग के शीर्ष लोगों से यह विनती करते नजर आए कि वे भविष्य की तकनीकों पर काम करें ताकि भारत को एक ‘अनुयायी से नेतृत्वकर्ता’ में बदला जा सके। यह पहला अवसर नहीं था जब उन्होंने ऐसा किया।

उन्होंने कहा कि देश की आबादी को ‘संपत्ति की खपत करने वाली आबादी’ से ‘संसाधन तैयार करने वाली’ आबादी में बदलना होगा। बहरहाल हमारे रक्षा उद्योग को रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की बात करें तो केवल ऐसे जुमलों से बात नहीं बनेगी।

इस बीच दुनिया ने हाल में दो युद्ध देखे। 2020 में अजरबैजान ने आर्मीनिया पर हमला किया और रूस 462 दिनों से चल रही लड़ाई के बावजूद यूक्रेन को परास्त नहीं कर सका है। ये दोनों घटनाएं युद्ध की प्रकृति में अहम बदलाव की ओर इशारा करती हैं। इस बात ने कई लोगों को चकित किया है क्योंकि 1861-65 के अमेरिकी गृह युद्ध और 1914-18 के बीच हुए प्रथम विश्वयुद्ध के दौर से ही लड़ाई के तौरतरीके कमोबेश वही रहे हैं जहां स्वचालित हथियारों और लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों की बदौलत युद्ध के मैदान खाली हो गए थे और जवानों को यहां वहां छिपना पड़ा था।

आज युद्ध के मैदान में बचाव के लिए अलग तरह की चुनौतियां हैं: उनका सामना अमेरिकी कंपनी एरो विरोन्मेंट द्वारा डिजाइन किए गए स्विचब्लेड जैसे छोटे ड्रोन जैसे हथियारों से है।

अमेरिकी सेना और अब यूक्रेन द्वारा रूस के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे ये ड्रोन जवानों के बैकपैक में आ जाते हैं और छोड़े जाने पर यह लक्ष्य से टकराकर आत्मघाती ढंग से स्वयं नष्ट हो जाता है। यह कामिकाजे ड्रोन रूसी सेना की अग्रिम पंक्ति को भेदकर प्रमुख रूसी कमांडरों को निशाना बनाते हैं और रूसी सेना को अपने तौर तरीकों में तब्दीली करनी पड़ती है। इससे जमीनी सेना का प्रभाव कम हो जाता है।

कुशल एकीकरण विभिन्न सेंसरों को सटीक हथियारों के साथ जोड़ता है जो आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके तत्काल निर्णय ले सकते हैं। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो के सदस्य देशों पर दबाव है कि उन्हें अपने सकल घरेलू उत्पाद का दो फीसदी रक्षा पर व्यय करने की प्रतिबद्धता निभानी है। यही हथियार यूक्रेन के काम आ रहे हैं।

स्वचालित हथियारों के क्षेत्र में चीन भी अहम खिलाड़ी है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी 2013 से मानव रहित प्रणालियां विकसित कर रही है। चीन भारत की साइबर कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए इनकी तैनाती कर रहा है। माना जा रहा है कि चीन की सेना ने हमारे अहम बुनियादी ढांचे मसलन नैशनल पावर ग्रिड, रेलवे और राजमार्ग नेटवर्क, दूरसंचार नेटवर्क, वित्तीय सेवा और शेयर बाजार आदि में साइबर संबंधी कमियों को चिह्नित किया है।

इन प्रणालियों में हार्डवेयर शामिल होता है जो चीनी कलपुर्जों से बना है। भारत में स्थापित होने के बाद भी उन पर उसका पूर्ण स्वामित्व है। ऐसे में भारत को दो बातों पर विचार करना चाहिए: पहले तो उसे अपना हार्डवेयर तैयार करना होगा और दूसरा गुरिल्ला मानसिकता विकसित करनी होगी ताकि तत्काल निर्णय लिए जा सकें।

पूरी संभावना है कि भविष्य में अगर चीन भारत पर हमला करता है तो वह साइबर हमला होगा जो हमारे नेटवर्क को ध्वस्त करेगा और आपदा राहत कार्यक्रमों को नुकसान पहुंचाएगा। चीन के 5जी नेटवर्क जैसे हार्डवेयर को प्रतिबंधित करने से बात नहीं बनेगी। बड़े सिस्टम और नेटवर्क बड़ा खतरा हैं, उन्हें बदलना जरूरी है।

हमारी वर्तमान उपकरण खरीद प्रक्रिया सैन्य हार्डवेयर खरीदने पर केंद्रित है जबकि जरूरत क्षमता विकसित करने की है। ऐसी सफल और कल्पनाशील खरीद का एक उदाहरण है ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल को सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान पर स्थापित करने की क्षमता। इसने ब्रह्मोस को हवा से प्रक्षेपित करने की क्षमता भारतीय तकनीक के साथ प्रदान कर दी है। ये विमान भारतीय हवाई सीमा का उल्लंघन किए पाकिस्तान में दूर तक मार कर सकते हैं।

वहीं ब्रह्मोस के पोत रोधी संस्करण से लैस सुखोई-30 विमानों को अगर तमिलनाडु के तंजावुर एयरबेस से छोड़ा जाए तो वह अरब सागर, बंगाल की खाड़ी या उत्तरी हिंद महासागर में दुश्मन के पोत नष्ट कर सकता है।

ऐसे नवाचार वित्तीय बचत के साथ क्षमता बढ़ाते हैं। वायु सेना अक्सर 42 लड़ाकू विमानों के बेड़े की जरूरत की बात करती है जिसमें बड़ी तादाद में मिग-21 विमान शामिल हैं जो हवाई रक्षा के लिए उपयुक्त हैं। परंतु ताकत बढ़ाने वाले और ऐसा ही काम कर सकने वाले अन्य प्लेटफॉर्म की अनदेखी की जाती है। उदाहरण के लिए वायु सेना द्वारा एस-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल की पांच रेजिमेंट की खरीद ने हमारी हवाई रक्षा मजबूत की है।

इसी तरह हवा में ईंधन भरने की प्रणाली तथा हवाई चेतावनी तथा नियंत्रण प्रणाली यानी एडब्ल्यूएसीएस ने। इसके बावजूद वायु सेना की घोषित मांग 42 लड़ाकू बेड़ों की है।

नौसेना ने भी 200 युद्धपोतों की जरूरत में बदलाव नहीं किया है हालांकि आज उसकी लड़ाकू क्षमता पहले से बहुत अधिक है। उसके बेड़े में दो विमानवाहक पोत, 16 लड़ाकू पनडुब्बियां और 42 बड़े युद्धपोत हैं। इसके अलावा 12 भारतीय पी-8आई पोसेडियन लंबी दूरी के समुद्री गश्त वाले विमान पश्चिम और पूर्वी एशिया से लेकर उत्तरी हिंद महासागर तक नजर रखते हैं।

जल्दी ही समुद्री गार्डियन ड्रोंस का एक छोटा बेड़ा उनकी मदद के लिए शामिल हो सकता है। नौसेना छह और पारंपरिक पनडुब्बियों की योजना बना रही है जो अरब सागर में तैनात हो सकें। साथ ही उसका इरादा छह परमाणु क्षमता संपन्न पनडुब्बियों का है जो बंगाल की खाड़ी में काम आएंगी। इस बीच सतह पर बेड़ा कम करने की काफी गुंजाइश है।

इस बीच सेना की नीतियों पर बहुत कम चर्चा होती है। इसमें पूर्वी लद्दाख में तीन नई माउंटेन डिवीजन और अरुणाचल प्रदेश में 2007-09 के बीच दो नई माउंटेन डिवीजन की मदद से चीन के विरुद्ध रक्षा मजबूत करना शामिल है। दो नई सैन्य ब्रिगेड को भी चीन के लिए तैयार किया गया है।

बहरहाल उत्तर पर हमारे जोर को लेकर अधिक बहस की आवश्यकता है जहां देश की मैदानी स्ट्राइक कोर को माउंटेन स्ट्राइक कोर में बदला जा रहा है। इसमें दो इन्फैंट्री और एक सशस्त्र डिवीजन को पाकिस्तानी सीमा से स्थानांतरित करके पुन: प्रशिक्षित करके चीन सीमा के लिए तैयार करना शामिल है। इस बदलाव के परिणाम को लेकर चर्चा नहीं हो रही है।

तीनों सेनाओं की कुछ और प्रमुख परियोजनाओं में देरी हो रही है। 2009 से ही फ्यूचर इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल (एफआईसीवी) का काम लटका हुआ है जिसे ‘मेक’ श्रेणी की परियोजना के तहत बनाया जाना था। उसके बाद लाइट टैंक प्रोजेक्ट की ओर ध्यान किया गया जहां एलऐंडटी, महिंद्रा समूह और टाटा समूह प्रतिभागी हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच 155 मिमी, 52 कैलीबर की मझोली तोप चर्चा में आ गईं और एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम उच्च प्राथमिकता बन गई। टैक्टिकल कम्युनिकेशंस सिस्टम की भी अनदेखी की गई। इन सभी हथियारों के लिए सेना को स्ट्राइक प्लेटफॉर्म और हथियार हासिल करने होंगे। भारतीय सेना अब यहां वहां से छिटपुट खरीद के सहारे छोटे और अनुपयोगी साजो सामान के सहारे काम नहीं कर सकती।

First Published : June 7, 2023 | 12:11 AM IST