मकान का मूल्यांकन किए जाने पर ही यह धारणा बनती है कि एक मकान एक घर से कहीं बढ़कर है।
सत्तर और 80 के दशकों में यह जरूरी नहीं था कि एक मकान को परिसंपत्ति के रूप में देखा जाए। कोई भी व्यक्ति खुद के घर में रहने पर अनुमानित कर अदा करता था।रेंट कंट्रोल के समय में किराए पर देने वाले मकान मालिक के लिए मकान एक इललिक्विड एसेट और कभी कभी देनदारी के रूप में समझा जाता था।
उस वक्त में खुशनसीबों के लिए 3500 वर्ग फीट का मकान 20 साल के लिए 200 रुपये महीने के किराये पर मिल जाया करता था। एक धारणा बनी रही कि जिंदगी तब तक बेहतर नहीं है जब तक संपत्ति को बैंक की मान्यता न मिल जाए।दिमाग से तेज लोग अपने खुद के घर मे ही रहते थे और मकान किराये पर देने से बचते थे। उनको अपनी आय का काफी हिस्सा मकान की देखरेख पर खर्च करना पड़ता था।
निवेश लायक वस्तुओं में उछाल और उससे मिलने वाले लाभ ने जिंदगी को थोड़ा आसान तो बना दिया है लेकिन सावधि जमा और एलआईसी से मिलने वाले फायदे में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आया है। दूसरी ओर अचल संपत्ति की चढ़ती कीमतों में गिरावट आने से मध्य वर्ग को भी झटका लगा है। उसके लिए अचल संपत्ति सहारा रही है।
पिछले साल के बजट में वित्त मंत्री ने रिवर्स मॉर्गेज स्कीम के रूप में वरिष्ठ नागरिकों को रियायत दी। इससे पहले प्रॉपर्टी डीलर या नजदीकी रिश्तेदारों के साथ इस की अनौपचारिक व्यवस्था की जाती थी। लेकिन इसमें हमेशा जोखिम रहता था। रिवर्स मॉर्गेज उस तरह की क्रेडिट व्यवस्था है जिसके अंतर्गत मकान मालिक को संपत्ति को जमानत के तौर पर रखना होता है। इसमें ‘ऋण’ के रूप में किश्तों का भुगतान होता है।
इसके लिए जरूरी अर्हताओं में कर्ज लेने वाले की उम्र के अलावा कई और बातें शामिल होती हैं। यदि आप 60 की उम्र पार कर चुके हैं और आपके मकान की हालत 20 साल तक ठीक रहने वाली है और आपने इससे पहले उस संपत्ति पर पहले से कोई कर्ज नहीं लिया हुआ है तो आप इसके लिए एकदम मुफीद बैठते हैं। मकान का स्वतंत्र मूल्यांकन बाजार की दरों के और ऋण की राशि के हिसाब से होता है। इसके बाद ही ब्याज और किस्तों के बारे में तय किया जाता है।
पेनल्टी के बिना पूर्व भुगतान में पर्याप्त लचीलापन स्वीकार्य है, ऋण के हिसाब-किताब का पहला हक संपत्ति बेचने से होता है। कानूनी उत्तराधिकारियों के पास भी यह विकल्प होता है। संपत्ति को बेचने के बाद जो भी रकम होती है उस पर कर्ज लेने वाले व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारी का हक है।
इसमें कर्ज लेने वाले की ओर से कुछ बाधाएं होती हैं जिसमें टेस्टामेंट्री डिस्पोजिशन पर रोक सबसे प्रमुख है। कर्जदार को कई बातों का ध्यान रखना होता है जिनमें संपत्ति का बीमा, सही हालत और देखभाल समेत सभी तरह के करों को चुकाना तो है ही साथ ही उस पर बिजली और पानी का बकाया भी नहीं होना चाहिए। किराये पर देने सहित धन का फैलाव किसी भी तरह के प्रतिबंध को आमंत्रित कर सकता है। लक्षित ग्राहकों के लिए यह बोनस है।
पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान केवल 100 लोगों ने इसका प्रयोग किया है।बैंकों और लाभार्थियों की चिंता कर है। क्या ऋण की राशि पूंजी रसीद के रूप में है? क्या कर्जदार ने आयकर कानूनों के तहत सिक्योरिटी से पूंजी संपत्ति का स्थानांतरण किया है?
यदि ऐसा है तो कर्ज का कितना भुगतान होगा और कौन उसके लिए जिम्मेदार होगा? क्या व्यय पर कर लगेगा या प्रतिबंध के तहत संपत्ति को बेचा जाएगा? छूट की स्वीकार्य सीमा क्या होगी? इसमें इंडेक्सेशन कब से प्रभावी होगा, ऋण खत्म होने की तिथि से या वास्तविक खरीद की तारीख से?
कर मामले का इसी वित्तीय बिल में जिक्र किया गया है। किसी के लिए आयकर की धारा 47 में नियम तय हो सकते हैं जिसके अंतर्गत मॉर्गेज को ट्रांसफर नहीं माना जाएगा। धारा 10 में संशोधन किया गया है जिसके तहत कैपिटल रिसीट पर क र में रियायत मिलेगी। इसमें डिसबर्समेंट को पूंजी लाभ के रूप में नहीं गिना जाएगा। अभी तक पुनर्अधिकार और प्रतिबंध के तौर तरीके अस्पष्ट हैं।
इसमें केवल मालिक की मृत्यु के पश्चात ही प्रतिबंध की व्यवस्था है। क्या एसएआरएफएईएसआई की धारा 13 के तहत सिक्योरिटी के साथ मनमाना व्यवहार करने का अधिकार हासिल है? क्या बैंक मकान को बतौर सिक्योरिटी देने वालों के साथ वैसा ही बर्ताव करेंगे जैसा वे वाहनों के मामले में कर रहे हैं।
इसके लिए सामान्य नियम पर्याप्त नहीं है और विशेष प्रावधानों की जरूरत है। अब जब जीवन प्रत्याशा 80 वर्ष से अधिक तक हो गई है ऐसे में 60 से अधिक की उम्र रिवर्स मॉर्गेज के लिए सही नहीं है। यह अंतिम उपाय होना चाहिए।