तिरुपुर की गलियों में गूंजती मशीनों की खटखट अब धीमी पड़ती जा रही है। तमिलनाडु के इस निटवेयर हब में हर दिन सूती कपड़े की खुशबू और मशीनों की आवाज़ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन हाल ही में शहर में एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई है। इसका कारण है अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ, जिसने तिरुपुर के निर्यात कारोबार को झकझोर कर रख दिया है।
2024-25 में भारत के कुल ₹65,178 करोड़ के निटवेयर निर्यात में से लगभग ₹44,747 करोड़ केवल तिरुपुर और कोयंबटूर से हुए थे। इनमें से ₹13,000 करोड़ से अधिक का माल अमेरिका गया। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत से आयातित वस्त्रों पर लगाए गए नए टैरिफ से अब यह आंकड़ा आधा हो सकता है।
तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के.एम. सुब्रमणियन ने कहा, “हमने पहले भी कई संकट झेले हैं – डाईंग यूनिट्स का बंद होना, जीएसटी की मार, कोविड की तबाही। लेकिन इस बार स्थिति गंभीर है। अगर अमेरिका का बाजार 50 फीसदी गिरा, तो हमें यूरोप और यूके से सौदे करने होंगे।”
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यह संकट खासतौर पर छोटे और मझोले उद्यमों (MSME) के लिए खतरे की घंटी है। तिरुपुर में 80 फीसदी कंपनियां ऐसी हैं जिनकी सालाना आमदनी ₹100 करोड़ से कम है। तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TEAMA) के अध्यक्ष एम. मुथुरथिनम ने कहा, “हमारे सदस्य जो पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर थे, अब बंद होने की कगार पर हैं। हमें तुरंत सरकारी राहत पैकेज की जरूरत है।”
TEAMA की सदस्य संख्या पहले 1,200 थी, जो अब केवल 700 रह गई है। खुदरा दिग्गज जैसे वॉलमार्ट, टारगेट, अमेज़न और एचएंडएम ने अपने भारतीय सप्लायर्स को ऑर्डर होल्ड पर रखने को कह दिया है।
करीब 7 लाख लोग इस उद्योग में सीधे और 5 लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। इनमें से 3 लाख प्रवासी मजदूर हैं जो ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से आए हैं। ऑर्डर घटने का सीधा असर इन मजदूरों की नौकरियों पर पड़ रहा है।
कुछ उद्यमी नए बाज़ारों की तरफ रुख कर रहे हैं। यूरोप और यूके में संभावनाएं दिख रही हैं, लेकिन ऑर्डर डायवर्ट होने में 6 महीने से 1 साल लग सकता है। अफ्रीकी देशों में व्यापार की संभावना है, लेकिन बैंकिंग सिस्टम की कमजोरियों के चलते वहां व्यापार करना जोखिम भरा है।
कई कंपनियों ने घरेलू बाज़ार पर ध्यान केंद्रित किया है। सथासिवम की कंपनी ‘हॉर्स क्लब’ घरेलू मांग से मुनाफा कमा रही है, लेकिन वहां भी कपास की कीमतें चिंता का विषय हैं। “अगर रॉ मटेरियल्स के दाम पर नियंत्रण नहीं हुआ तो हम टिक नहीं पाएंगे,” वे कहते हैं।
उद्योग जगत का कहना है कि MSME सेक्टर को एक साल की मोहलत, टैक्स में छूट, बैंकिंग नियमों में राहत और नए बाज़ारों की खोज में मदद चाहिए। बिना सरकारी सहायता के यह संकट लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है।
तिरुपुर की मशीनों की गूंज अब धीमी पड़ रही है, लेकिन यहां के बुनकरों का हौसला अभी टूटा नहीं है। “तिरुपुर एक फीनिक्स की तरह है, हम फिर उठ खड़े होंगे,” यह विश्वास आज भी शहर की धड़कनों में सुनाई देता है। लेकिन इस बार, ‘टाइम’ की बजाय एक ‘स्टिच इन पॉलिसी’ की ज़रूरत है — ताकि तिरुपुर की पहचान और रोजगार दोनों बचे रह सकें।