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Delhi firecracker ban: पटाखों को लील गई राजधानी दिल्ली की जहरीली हवा

हवा को बिगड़ने से बचाने के लिए पहले केवल दीवाली के दिन पटाखों पर रोक थी मगर अब दिल्ली में किसी भी तरह के पटाखे कभी नहीं चलाए जा सकते।

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रामवीर सिंह गुर्जर   
Last Updated- October 27, 2024 | 10:51 PM IST

Delhi firecracker ban: बच्चे हों या जवान, दीवाली का मतलब सबके लिए पटाखे चलाना ही होता है। इसीलिए दीवाली पर पटाखा कारोबारियों की बड़ी कमाई भी होती है। मगर दिल्ली का पटाखा कारोबार प्रदूषण की भेंट चढ़ चुका है। हवा को बिगड़ने से बचाने के लिए पहले केवल दीवाली के दिन पटाखों पर रोक थी मगर अब दिल्ली में किसी भी तरह के पटाखे कभी नहीं चलाए जा सकते। इस फरमान से पटाखा कारोबारियों का धंधा ही खत्म हो गया है।

इन कारोबारियों ने मजबूरी में दूसरे धंधे शुरू कर दिए। कोई शादी ब्याह में आतिशबाजी (पटाखा नहीं) बेच रहा है तो कोई सजावटी सामान। किसी ने मूर्तियों की दुकान खोल ली है तो कोई डेंटिस्ट के काम आने वाला सामान ही बेचने लगा है। जिन्हें दूसरा धंधा कारगर नहीं लगा, उन्होंने अपनी दुकान किराये पर चढ़ा दी है। मगर किसी भी धंधे में पटाखों जैसा नफा नहीं है।

दिल्ली में पटाखों का कारोबार जामा मस्जिद और सदर बाजार में होता था, जहां कारोबारी स्थायी और अस्थायी लाइसेंस लेकर बैठते थे। वहीं से पूरे एनसीआर और पड़ोसी राज्यों को पटाखे जाते थे। जामा मस्जिद के पास पटाखों का पुश्तैनी धंधा करने वाले दीपक जैन अब मूर्तियों का कारोबार करते हैं।

वह कहते हैं, ‘2016 में पटाखों पर रोक की शुरुआत होने के बाद ही मैंने इस कारोबार से दूरी बनानी शुरू कर दी थी और अब पूरी तरह मूर्तियां ही बेच रहा हूं। लेकिन इसमें पटाखों जैसी कमाई और मार्जिन नहीं है।’

जैन पूछते हैं कि सरकार ने प्रदूषण के नाम पर पटाखों पर रोक लगाई है मगर प्रदूषण कहां कम हुआ? दीवाली से पहले ही प्रदूषण का स्तर बहुत खराब की श्रेणी में पहुंच गया है।

कभी पटाखों के कारोबार में लगे विकास अब डेंटिस्ट के काम आने वाला सामान बेच रहे हैं। वह बताते हैं कि दिल्ली में भले ही पटाखों पर रोक है मगर दीवाली पर पटाखे तो चलते ही हैं। ये पटाखे बाहर से आते होंगे फिर दिल्ली का पटाखा कारोबार बरबाद क्यों किया गया? स्थायी लाइसेंस लेकर लंबे समय तक पटाखे बेचते रहे पुश्तैनी कारोबारी अमित जैन कहते हैं कि दीवाली और नए साल पर ही पटाखे ज्यादा चलाए जाते हैं मगर दिल्ली सरकार हर साल दीवाली से 1 जनवरी तक इन पर रोक लगाकर कारोबारियों के पेट पर लात मार देती है।

जब पटाखों पर रोक नहीं थी, उस समय सदर बाजार पटाखा कारोबारी संघ के अध्यक्ष रहे नरेंद्र गुप्ता ने बताया कि 2016 तक दिल्ली में हर साल पटाखा कारोबारियों के लिए 1,200 से ज्यादा पटाखा स्थायी और अस्थायी लाइसेंस जारी होते थे। पूरी पाबंदी लगने से पहले 2020 तक भी हर साल 400 से 500 लाइसेंस जारी होते रहे हैं। 150-200 लाइसेंस तो सदर बाजार में ही बनते थे।

वह शिकायती लहजे में कहते हैं, ‘सरकार ने प्रदूषण के नाम पर दिल्ली-एनसीआर का 400-500 करोड़ रुपये सालाना वाला पटाखा कारोबार चौपट कर दिया मगर न तो प्रदूषण में कमी आई और न ही दिल्ली में पटाखे चलने बंद हुए। दूसरे राज्यों से चोरी-छिपे लाकर पटाखे अब भी चलाए जाते हैं।’

पटाखों पर रोक से थोक कारोबारी ही नहीं रेहड़ी-पटरी पर इन्हें बेचने वाले भी त्रस्त हुए हैं। जामा मस्जिद और सदर बाजार के पटाखा बाजार में कारोबारियों से माल खरीदकर कई लोग रेहड़ी व पटरी पर पटाखे बेचते थे। अब वे घर-गृहस्थी का दूसरा सामान बेच रहे हैं। पटाखे छोड़कर ऐसा ही सामान बेच रहे अजय कहते हैं कि पटाखा कारोबार के समय 10-12 दिन में 30,000 से 50,000 रुपये की कमाई आराम से हो जाती थी। अब इस सामान से 15-20 हजार रुपये भी नहीं कमाए जा रहे।

First Published : October 27, 2024 | 10:51 PM IST