ऑनलाइन फार्मेसी के भविष्य पर विनियामक अनिश्चितताओं के बादल छाने से इस क्षेत्र में सौदे मंदी का संकेत दे रहे हैं। यही हाल निजी-इक्विटी (पीई) फर्मों और उद्यम पूंजीपतियों (वीसी) के ताजा निवेश का भी है।
वेंचर इंटेलिजेंस के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2023 में 13 जून तक पीई-वीसी फंडिंग के साथ एक सौदा हुआ है। वर्ष 2022 में चार सौदे हुए थे, जिनमें 12 सौदों की तुलना में तेज गिरावट आई। इस क्षेत्र ने कुल 152 करोड़ डॉलर का निवेश आकर्षित किया था।
प्रमुख कंपनियों में शुमार फार्मईजी ने वर्ष 2019 और 2021 के दैरान टीपीजी ग्रोथ, कोटक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स, टेमासेक, एट रोड्स वेंचर्स आदि से रकम जुटाने के चार दौर में बहुत-सा निवेश आकर्षित किया था।
ई-फार्मेसी से संबंधित विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) भी धीमा हो गया। वर्ष 2022 में कोई बड़ा अधिग्रहण नहीं हुआ, जबकि वर्ष 2021 में पांच हुए थे।
उद्योग के सूत्रों का कहना है कि अभी इस क्षेत्र में निवेशकों के लिए ज्यादा विकल्प नहीं हैं। एक प्रमुख ऑनलाइन फार्मेसी के वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया ‘इस क्षेत्र में चीजें स्थिर और शांत हैं। केवल फार्मईजी ही बाहरी पूंजी जुटाने पर विचार कर रही है, जबकि शेष के पास रणनीतिक पूंजी है।’
अधिकारी ने कहा कि वीसी की दिलचस्पी सामान्य रूप से कम थी, लाभ पर काफी जोर दिया गया था और सभी क्षेत्रों में ऐसा था। इस महीने की शुरुआत में आई खबरों के अनुसार फार्मईजी करीब 1,000 करोड़ रुपये की इक्विटी जुटाने में नाकाम रही है। इसने पिछले साल गोल्डमैन सैक्स से अधिक लागत वाला कर्ज लिया था। कंपनी ने पहले अपना आरंभिक सार्वजनिक निर्गम स्थगित कर दिया था।
इक्विरस के प्रबंध निदेशक और निवेश बैंकिंग के प्रमुख भावेश शाह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सौदों में नरमी पिछले साल शुरू हुई थी क्योंकि नकदी की कमी थी और ब्याज दरें बढ़ी थीं। उन्होंने कहा कि यह कारक विनियामक चुनौतियों की तुलना में अधिक प्रभावी रहा।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2022 में पीई से फंड घटकर लगभग 60 अरब डॉलर रह गया, जबकि वर्ष 2021 में यह लगभग 70 अरब डॉलर था। जब ई-फार्मेसी की बात आती है, तो केंद्र सरकार सावधानी से चलना चाहती है, क्योंकि इसके व्यापक निहितार्थ हैं। यह बेची गई दवाओं, डेटा-गोपनीयता के मसलों आदि की निगरानी से संबंधित हैं।
सूत्रों ने इस बात का संकेत दिया है कि भारत डेटा की निजता के संबंध में चिंतित है क्योंकि ऑनलाइन फार्मेसी फर्मों के पास रोगियों द्वारा उपयोग की जाने वाली दवा और यहां तक कि जांच के आंकड़े भी हैं। इनके दुरुपयोग की आशंका है। ऑफलाइन खुदरा विक्रेताओं ने इस बात का विरोध किया है कि ऑनलाइन फार्मेसी गैर-प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण करती हैं।
देश में 8,00,000 से अधिक ऑफलाइन फार्मासिस्ट हैं। इस बात की संभावना है कि सरकार दुकानों पर ई-फार्मेसी के असर पर ध्यान देगी।