तेल-गैस

अमेरिकी शुल्क के बीच रूस से तेल आयात फिलहाल स्थिर, पर सितंबर में घट सकती है डिलीवरी

भारत ने अगस्त में रूस से स्थिर तेल आयात किया, लेकिन विशेषज्ञों ने चेताया कि सितंबर से अमेरिकी शुल्क और शिपिंग चुनौतियों के कारण सप्लाई पर असर पड़ सकता है।

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सुधीर पाल सिंह सिंह   
Last Updated- August 19, 2025 | 10:05 PM IST

ट्रंप प्रशासन द्वारा जुलाई के आखिर में शुल्क की घोषणा के बावजूद अगस्त के शुरुआती 18 दिन में रूस के कच्चे तेल का भारत में आयात व्यापक तौर पर स्थिर है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि नीतिगत बदलाव के पहले ही अगस्त के अधिकांश कार्गो का अनुबंध जून और जुलाई की शुरुआत में ही हो गया था, जिसकी वजह से आवक स्थिर है।

कारोबार पर इसका असर सितंबर के अंत से नजर आने की संभावना है, चाहे वह शुल्क, भुगतान लॉजिस्टिक्स या शिपिंग चुनौतियों के कारण हो। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में सितंबर माह में डिलिवरी के लिए भेजे जाने वाले रूसी कच्चे तेल के कार्गो की मात्रा जुलाई की तुलना में अगस्त में 45 प्रतिशत कम है। शिप ट्रैकिंग एनालिटिक्स फर्म केप्लर में रिफाइनिंग, सप्लाई और मॉडलिंग के प्रमुख शोध विश्लेषक सुमित रिटोलिया ने कहा, ‘उल्लेखनीय है कि रूसी कच्चे तेल की खरीद को कम करने के लिए भारत सरकार की ओर से कोई औपचारिक निर्देश नहीं दिया गया है। रिफाइनर व्यवसाय के दृष्टिकोण के तहत काम करना जारी रखे हैं। हालांकि भारतीय रिफाइनरों के बीच आपूर्ति में विविधता लाने के लिए रुचि बढ़ रही है, जिसमें अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से तेल की सोर्सिंग में वृद्धि हुई है। यह कदम रूसी कच्चे तेल से दूर जाने के रूप में नहीं, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने और संभावित जोखिमों को कम करने की दिशा में एक विवेकपूर्ण कदम के रूप में उठाया जा रहा है।’

उन्होंने कहा कि भारतीय रिफाइनरियों की रुचि विशुद्ध रूप से मार्जिन-आधारित खरीद से हटकर अधिक संतुलित दृष्टिकोण की ओर रणनीतिक बदलाव को दर्शाती है, जो तार्किक और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं को ध्यान में रखकर है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के रिफाइनर अभी भी रूस से इतर स्रोतों पर 60 से 65 प्रतिशत निर्भर है और मौजूदा विविधीकरण की कवायद लचीलापन बनाने के मकसद है, न कि आपूर्ति की तरजीह में किसी तरह के ढांचागत बदलाव का संकेत है।

रिटोलिया ने कहा, ‘उद्योग जगत की व्यापक धारणा यह है कि रिफाइनरियां घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रही हैं और अमेरिका, पश्चिम अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी बैरल में बढ़ती रुचि दिखा रही हैं। यह प्रतिस्थापन के रूप में नहीं, बल्कि संभावित व्यवधानों से बचाव के रूप में हो रहा है। यह एक सूक्ष्म लेकिन उल्लेखनीय बदलाव का संकेत है।’

जब तक कोई स्पष्ट नीतिगत बदलाव या व्यापारिक व्यवस्था में बदलाव नहीं होता, तब तक रूस से आवक भारत के कच्चे तेल के भंडार का एक प्रमुख हिस्सा बना रहेगा। 18 अगस्त तक के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि अगस्त में भारत में रूसी कच्चे तेल की ढुलाई में महीने-दर-महीने लगभग 45 प्रतिशत की गिरावट आई है, और वर्तमान मात्रा लगभग 900 हजार बैरल प्रति दिन (केबीडी) अनुमानित है।

इस महीने में 2 सप्ताह से कम बचे हुए हैं, ऐसे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है, लेकिन आने वाले दिनों में जहाजों की आवक, खासकर जब जहाज नहर और लाल सागर से गुजरेंगे, तो इससे अंतिम गंतव्य के बारे में अधिक स्पष्टता मिलेगी।

केपीएमजी इंटरनैशनल के ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधन और रसायन (ईएनआरसी) के वैश्विक प्रमुख अनीश डे का कहना है कि रूसी कच्चे तेल के खरीदारों पर, विशेष रूप से चीन और भारत को लक्षित करते हुए, 500 प्रतिशत तक द्वितीयक शुल्क लगाने की धमकी हाल के महीनों में सबसे नाटकीय नीति प्रस्तावों में से एक रही है।

उन्होंने कहा, ‘हालांकि यह प्रस्ताव एक साहसिक भू-राजनीतिक रुख का संकेत देता है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में गंभीर जोखिम होंगे। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार टूटने से बाजार में उथल-पुथल मच सकती है और तेल की कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं।’

First Published : August 19, 2025 | 9:52 PM IST