वर्ष 2006 की बजाय 2007 में हालांकि एच1-बी वीजा की संख्या में 50 प्रतिशत कमी कर दी गई है।
लेकिन इसके बावजूद अमेरिका के डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड जे डर्बिन और चार्ल्स ई ग्रासली ने भारत की 9 कंपनियों को पत्र भेजा है जिसमें विस्तार से यह जानने की इच्छा व्यक्त की गई है कि इस वीजा प्रोग्राम का इस्तेमाल कैसे किया जा रहा है।
ये पत्र अमेरिकी चुनाव के पहले लिखे गए हैं। इस पत्र का उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या एच-1बी का इस्तेमाल कामगारों की अस्थायी कमी को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। इन सीनेटरों ने पिछली मई में भी इस तरह का एक पत्र लिखा था।
जिन भारतीय कंपनियों को पत्र लिखा गया है उनमें इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज, विप्रो, सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज, कॉग्निजेंट टेक सॉल्यूशन, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, पाटनी कंप्यूटर सर्विसेज, लार्सन एेंड टुर्बो इन्फोटेक, आई-फ्लेक्स सॉल्यूशन और एमफैसिस शामिल हैं। इन कंपनियों को 2007 में उपलब्ध 65,000 एच-1बी वीजाओं में से लगभग 20,000 वीजा दिए गए थे। अन्य कंपनियों में माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, एक्सेंटर, सिस्को, डिलॉयट ऐंड टची, जे पी मॉर्गन चेज और मोटोरोला शामिल हैं।
बहुत सारी भारतीय कंपनियों को जितना वीजा 2006 में दिया जाता था अब उनकी संख्या आधी हो गई है। इन्फोसिस ने 2007 में 4,559 वीजा प्राप्त किए (2006 में 4,908 वीजा) जबकि विप्रो को इस साल 2,567 वीजा (2006 में 4,002 वीजा मिले थे)।
सत्यम को 2007 में 1,396 वीजा मिले जबकि 2006 में उसे 2,880 वीजा मिले थे। टीसीएस को इसी साल मात्र 797 वीजा मिले जबकि 2006 में उसे 3,046 वीजा मिले थे। पाटनी को इस साल 477 वीजा मिले जबकि 2006 में उसे 1,391 वीजा मिले थे। आई-फ्लेक्स जो अब ऑरेकल फाइनैंस सर्विसेज के नाम से जाना जाता है को 2007 में 374 वीजा मिले थे जबकि 2006 में उसे 815 वीजा मिले थे।
2005-06 के आंकड़े के मुताबिक विप्रो और इन्फोसिस सबसे बड़े एच-1बी वीजा मांगने वाले में से हैं जिन्होंने क्रमश: 22,600 और 19,400 आवेदन दिए हैं। अमेरिकी कंपनियों में डिलॉयट ऐंड टची और एक्सेंचर का क्रम वीजा मांगने वाले में सातवें और नौवें क्रम पर है जिन्होंने क्रमश: 8,000 और 7,000 आवेदन किए हैं।
डर्बिन ने कहा कि एच-1बी कार्यक्रम को अमेरिका में किसी भी तरह रोजगार के संकट का कारण नहीं बनने दिया जाना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस वीजा का दुरूपयोग नहीं किया जा रहा है और अमेरिकी नागरिक अपने घर में उच्च कौशल वाले रोजगार से वंचित नहीं हो रहे हैं। ग्रासली ने कहा कि इस वीजा के उपयोग से कुशल अमेरिकी कामगार पीछे छूटते जा रहे हैं।
वे नौकरियां ढूंढ रहे हैं जिन्हें एच-1 वीजा से भरा जा रहा है। को इस रोजगार से बाहर रहना पड रहा है और हम इसी चीज की तलाश करने के लिए इन कंपनियों को पत्र भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि खामियों को दूर किया जाए और सुधार लागू किए जाएं।डर्बिन को दिसंबर 2006 में बतौर डेमाक्रेट उम्मीदवार और उन्हे सहायक बहुसंख्यक नेता के रूप में चुना गया जिसे मेजॉरिटी व्हिप भी कहा जाता है।
नैसकॉम के अध्यक्ष सोम मित्तल ने कहा कि इस तरह की छानबीन पहले भी की गई थी और इस बार भी हम इस पत्र का सही जवाब देंगे। उन्होंने कहा कि इस पत्र के जरिये केवल भारतीय कंपनियों को लक्ष्य नहीं बनाया जा रहा है और इस तरह का पत्र अमेरिकी कंपनियों को भी भेजा गया है।
उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि अमेरिका कंपनियों की मांग और जरूरतों के हिसाब से एच-1बी वीजा का आबंटन करेगा। अमेरिका में वैसे भी तकनीकी कामगारों की कमी है और इसलिए उसे इस वीजा की संख्या बढ़ानी चाहिए।डर्बिन और ग्रासली एच-1बी और एल-1 वीजा के दुरूपयोग की आशंका को लेकर कई बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं। उनका मानना है कि इस वजह से अमेरिका में रोजगार की आउटसोर्सिंग हुई है।
पिछले साल उन्होंने एच-1बी और एल-1 वीजा की धोखाधड़ी को रोकने के लिए एक विधेयक भी पेश किया था जिसके एक प्रावधान के तहत आवेदक कं पनियों को यह भरोसा दिलाना होता कि पहले वे अमेरिकी लोगों को रोजगार के अवसर देंगी ।
वीजा का गणित
1998 : संख्या बढ़ाकर 115000 कर दी गई
2001 : इसकी संख्या बढ़कर 195000 हुई।
2004 : आर्थिक मंदी की वजह से संख्या घटकर 90,000 हुई।
2007 : इसकी वर्तमान संख्या 65,000 है।