राजनीति

संयुक्त विपक्षी मोर्चाः विभाजन की दरारें ठीक करने की दरकार

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आशिष तिवारी
Last Updated- March 31, 2023 | 12:06 AM IST

पिछले एक हफ्ते के दौरान विभिन्न मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाने वाले विपक्ष में व्यापक स्तर पर एकजुटता देखी गई है, चाहे वह अदाणी समूह के मुद्दे पर केंद्र का विरोध करने के लिए काले कपड़े पहन कर विरोध करना हो या राहुल गांधी को लोकसभा सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने को लेकर तीखी आलोचना करने का मुद्दा हो। इसके अलावा 14 गैर-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दलों ने कानून प्रवर्तन विभागों के मनमाने इस्तेमाल को लेकर भी उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है।

हालांकि विपक्षी खेमे में मौजूद दल हमेशा एकता पर जोर देने की बात करते हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इन दिनों दिख रही एकजुटता को दुर्लभ उदाहरणों में से एक मानते हैं। हालांकि वे अगले साल लोकसभा चुनाव तक भाजपा के खिलाफ इसे विपक्ष के एक संयुक्त मोर्चे के रूप में तैयार होने की संभावना से इनकार करते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर के अनुसार, ‘फिलहाल, गैर-भाजपा दलों के एक साथ आने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वे इस बात पर सहमत नहीं हैं कि कौन उनका नेतृत्व करेगा। राज्य स्तर पर, कई राजनीतिक दल कांग्रेस को अपना प्रतिस्पर्द्धी मानते हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से, उन्हें इसके साथ हाथ मिलाने पर आपत्ति होगी।’

कई राजनीतिक दलों की हैसियत देश की पुरानी पार्टी के करीब पहुंच रही है ऐसे में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि कांग्रेस को उन जगहों पर पीछे हो जाना चाहिए जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं। उन्होंने हाल ही में कहा, ‘एक बात स्पष्ट है जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि जहां भी क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, उन्हें मुख्य भूमिका में होना चाहिए और कांग्रेस के लोगों को यह बात समझनी चाहिए।’ समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी कहा कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को आगे रखना चाहिए और फिर चुनाव लड़ना चाहिए क्योंकि उनके मुताबिक तभी भाजपा के खिलाफ लड़ाई जीती जा सकती है।

लेकिन राजनीतिक विश्लेषक सुमंत सी रमन को ऐसी बातों में ज्यादा गहराई नजर नहीं आती है। उन्होंने कहा, ‘विभाजित या एकजुट विपक्ष का मिथक कोई मायने नहीं रखता क्योंकि अगर हम आगामी विधानसभा चुनावों वाले राज्य जैसे कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर गौर करें तो इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मजबूत उपस्थिति नहीं है। कुछ राज्यों में जहां क्षेत्रीय दलों का दबदबा है वहां कांग्रेस से हाथ मिलाने का विचार उपयुक्त नहीं होगा।’

हालांकि पलशिकर मानते हैं कि अगर कांग्रेस का आगामी विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन होता है तब यह विपक्षी दलों के मोर्चे को खड़ा करने में अपना योगदान देगी।

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘विपक्षी दलों का राहुल गांधी के समर्थन में आना यह दिखाता है कि गैर-भाजपा दलों का साथ अच्छा है। ऐसे कई उदाहरण होंगे जब हम (कांग्रेस) थोड़ा पीछे हटेंगे और ऐसे भी हालात होंगे जहां हम एक बड़ा हिस्सा चाहते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि हम एक साथ चुनाव लड़ेंगे।’

विपक्षी एकता पर श्रीनेत की टिप्पणी को दोहराते हुए जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता, राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, ‘मेरा मानना है कि कुछ राजनीतिक दल संयुक्त मोर्चे के गठन में एक बड़ी अड़चन बनेंगे लेकिन भाजपा से लड़ने के लिए एक साथ आना अपरिहार्य है।’

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के एक राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय इस पर कुछ अलग राय रखते हैं।

राय ने कहा, ‘भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस के दोबारा उभार की बातें बेतुकी साबित हुईं, क्योंकि पार्टी त्रिपुरा में बुरी तरह से हार गई जबकि माकपा के साथ गठबंधन भी किया गया था। राज्य स्तर पर, क्षेत्रीय दलों के पास सुरक्षा के लिए अपना क्षेत्र है इसलिए कांग्रेस को बड़े भाई होने की अपनी महत्वाकांक्षाओं से समझौता करना पड़ सकता है।’

सपा, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे प्रमुख क्षेत्रीय दलों ने दोनों राष्ट्रीय दलों से दूरी बनाए रखने पर जोर दिया है और गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी विपक्षी मोर्चे के बारे अपनी प्राथमिकता दिखाते हुए बात की है। इस महीने की शुरुआत में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी घोषणा की कि तृणमूल 2024 के आम चुनावों में अकेले उतरेगी। हालांकि रमन ऐसे प्रयासों को थोड़ा अराजक बताते हुए कहते हैं कि किसी भी गैर-कांग्रेसी मोर्चे के सफल होने की कोई संभावना नहीं है। इसके लिए वह तर्क देते हैं, ‘इसकी वजह यह है कि उनके पास अपने दम पर चुनाव जीतने की ताकत नहीं है।‘

गौर करने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस ने अभी तक खुद को किसी विपक्षी मोर्चे के मुख्य दल के रूप में पेश नहीं किया है लेकिन पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस के बिना कोई विपक्ष संभव नहीं है। रमेश ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘कांग्रेस को इसमें केंद्रीय भूमिका निभानी होगी।’

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी कांग्रेस के बिना गठबंधन के विचार को खारिज कर दिया। अपने 70वें जन्मदिन के मौके पर आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस के बिना गठबंधन को खारिज कर देना चाहिए, क्योंकि यह सफल नहीं होगा। मैं विनम्रतापूर्वक सभी राजनीतिक दलों से भाजपा का विरोध करने का अनुरोध करता हूं ताकि वे इस सरल चुनावी गणित को समझें और एकजुट हों।’

द्रमुक पार्टी के प्रवक्त मनुराज सुंदरम ने कहा, ‘चुनाव से पहले इस तरह के आह्वान सिर्फ मन मिलाने के लिए होता है और कुछ नहीं। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत के विपक्ष में विभाजन है। यह सिर्फ इतना है कि मौका अभी नहीं आया है।’

First Published : March 30, 2023 | 11:43 PM IST