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Editorial: EV के लिए आयात शुल्क में कटौती- एक चुनौती या अवसर?

केंद्र सरकार ने 2021 में वाहन क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना की घोषणा की थी जिसमें ईवी विनिर्माण भी शामिल था औऱ इसके लिए 25,938 करोड़ रुपये रखे गए थे।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- January 04, 2024 | 11:32 PM IST

खबर है कि यूनाइटेड किंगडम के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर के लिए भारत ने बिजली से चलने वाले वाहनों (ईवी) पर आयात शुल्क कम करने का प्रस्ताव रखा है। दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार वार्ता में यह भी एक मुद्दा है और यूनाइटेड किंगडम काफी समय से ईवी पर आयात रियायत की मांग कर रहा है।

हाल में अमेरिकी कंपनी टेस्ला ने भी भारत में एक फैक्ट्री स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था लेकिन उसने भी बदले में कम आयात कर की मांग की थी। रियायती टैरिफ होने से विदेशी ईवी निर्माताओं को भारतीय बाजार में अपनी जगह बनाने में मदद मिलेगी। उम्मीद के मुताबिक ही घरेलू वाहन निर्माता बाजार को खोलने के सरकार के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।

वह नहीं चाहते कि चरणबद्ध तरीके से भी इसे अंजाम दिया जाए। इसके बजाय उन्होंने घरेलू उद्योग और निवेशकों के संरक्षण की मांग की है। डर यह है कि ईवी पर शुल्क कम किए जाने का समूचे घरेलू उद्योग पर नकारात्मक असर होगा और निवेश की स्थिति प्रभावित होगी क्योंकि इसे उभरता हुआ क्षेत्र माना जाता है। भारत का ईवी बाजार निर्णायक मोड़ पर है।

केंद्र सरकार ने 2021 में वाहन क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना की घोषणा की थी जिसमें ईवी विनिर्माण भी शामिल था औऱ इसके लिए 25,938 करोड़ रुपये रखे गए थे। उसने एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए भी 18,100 करोड़ रुपये की घोषणा की थी।

सरकार ने फिर ईवी के लिए फेम योजना भी अधिसूचित की जिसका मकसद परिवहन क्षेत्र में हाइब्रिड और बिजली तकनीक को बढ़ावा देना था। खबर है कि फेम का तीसरा संस्करण भी तैयार हो रहा है। यही वजह है कि 2023 में ईवी की बिक्री में 45 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ।

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इसके बावजूद इसे अपनाने की गति अपेक्षाकृत धीमी रही। इसकी वजह बढ़ी हुई लागत और पर्याप्त चार्जिंग स्टेशनों की कमी रही। सरकार ने सावधानी बरतते हुए आयात पर बहुत अधिक निर्भरता की बजाय ईवी निर्माताओं को स्थानीय उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए कहने पर भी ध्यान केंद्रित किया है।

भारत में ईवी के लिए आयात टैरिफ काफी अधिक है। हमारे यहां 40,000 डॉलर से अधिक मूल्य वाले पूरी तरह से असेंबल ईवी पर 100 फीसदी आयात शुल्क लगता है जबकि 40,000 डॉलर से कम कीमत वाले ईवी पर 70 फीसदी शुल्क लगता है। इसकी तुलना में अमेरिका, फ्रांस, सऊदी अरब और चीन जैसे देशों में ईवी पर कम आयात शुल्क लगता है। हालांकि आयात शुल्क में व्यवस्थित ढंग से कमी लाने से घरेलू निर्माताओं का डर दूर किया जा सकता है।

आखिरकार, भारतीय वाहन उद्योग दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाजार है और यह केवल चीन, अमेरिका और जापान से पीछे है। यह पूरा कारोबार करीब 250 अरब डॉलर का है और माना जा रहा है कि 2022 से 2027 के बीच यह 9 फीसदी से अधिक की समेकित वार्षिक वृद्धि हासिल करेगा। इसमें निर्यात वृद्धि और घरेलू बिक्री की अहम भूमिका होगी।

मारुति सुजूकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने इस अखबार को बताया कि उद्योग यूके या चीन जितना ही प्रतिस्पर्धी है और कई मॉडल की भारतीय लागत कम है। यह क्षेत्र अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है और घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय दोनों कारोबारी इसमें बड़ी बाजार हिस्सेदारी हासिल करना चाहते हैं। इस क्षेत्र की प्रभावशाली वृद्धि ने बढ़ती प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया।

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ऐसे में कम आयात टैरिफ के खतरों को लेकर चिंतित होने के बजाय जरूरत इस बात की है कि अन्य ढांचागत चुनौतियों को पहचाना और दूर किया जाए। ऐसा करके ही देश के ईवी बाजार की प्रगति तथा सस्ते मॉडल्स की बिक्री सुनिश्चित की जा सकेगी। उदाहरण के लिए नीति निर्माता चार्जिंग अधोसंरचना और ग्राहकों को वित्तीय सहायता संबंधी मदद देकर दिक्कतों को दूर कर सकते हैं।

सरकार और उद्योग जगत दोनों द्वारा कंबस्ट इंजन वाले वाहनों की तुलना में इनके मालिकाने की लागत से जुड़े सवालों को भी हल करना चाहिए। महत्त्वपूर्ण शुल्कों में कमी लाने से इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे बेहतर और सस्ते ईवी सामने आएंगे। इससे बाजार का विस्तार होगा और सभी अंशधारकों को मदद पहुंचेगी।

इसके अलावा एक व्यापार समझौते में कुछ क्षेत्रों की चिंताओं के चलते व्यापक लाभ को नहीं गंवाना चाहिए। भारत जिन मुक्त व्यापार समझौतों पर चर्चा कर रहा है उनमें से कुछ अहम हैं क्योंकि हम क्षेत्रीय व्यापार संघों में शामिल नहीं हैं।

First Published : January 4, 2024 | 9:45 PM IST