Editorial: सतर्क ठहराव

एमपीसी ने इस बात पर भी उचित ध्यान दिया कि फिलहाल सतर्क रहने की आवश्यकता है और जरूरत पड़ने पर कदम उठाया जा सकता है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:30 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की गुरुवार को हुई बैठक में सभी जरूरी कदम उठाए गए। जैसी कि व्यापक तौर पर उम्मीद भी थी, छह सदस्यीय समिति ने नीतिगत रीपो दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रहने दिया। ऐसा जुलाई और अगस्त महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर में अनुमानित बढ़ोतरी के बावजूद किया गया।

एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति के अनुमानों को भी संशोधित करके 6.2 फीसदी कर दिया जो तयशुदा दायरे की ऊपरी सीमा से अधिक है। बहरहाल, अनुमानित वृद्धि के बावजूद एमपीसी ने इस पर ध्यान नहीं देने का उचित निर्णय लिया क्योंकि दरों में इजाफा प्राथमिक तौर पर खाद्य कीमतों के कारण है। खासतौर पर सब्जियों की कीमतें बढ़ने के कारण। आने वाले महीनों में इसमें कमी आने की संभावना है।

फिलहाल सतर्क रहने की आवश्यकता

एमपीसी ने इस बात पर भी उचित ध्यान दिया कि फिलहाल सतर्क रहने की आवश्यकता है और जरूरत पड़ने पर कदम उठाया जा सकता है। असमान बारिश और अल नीनो की आशंका के चलते कुछ जोखिम बना हुआ है जो कृषि उत्पादन और कीमतों पर दबाव डाल सकता है।

यद्यपि एमपीसी ने प्रतीक्षा करने का सही निर्णय लिया है क्योंकि आने वाले सप्ताहों में मुद्रास्फीति की स्थिति पर हालात और अधिक स्पष्ट हो जाएंगे लेकिन मुद्रास्फीति के संशोधित अनुमानों को लेकर यह चर्चा तो होनी ही चाहिए कि अब तक उठाए गए मौद्रिक नीति संबंधी कदम पर्याप्त हैं अथवा नहीं।

रीपो दर में लगातार 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी

एमपीसी के संशोधित अनुमान यह संकेत देते हैं कि मुद्रास्फीति की दर के पांच फीसदी से नीचे आने की संभावना नहीं है। कम से कम 2024-25 की पहली तिमाही तक तो नहीं। रीपो दर में लगातार 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई थी और वह अभी भी व्यवस्था में अपना असर दिखा रही है, इस बीच एमपीसी को आगामी बैठकों में इस बात पर चर्चा करनी होगी कि टिकाऊ स्तर पर 4 फीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करना पर्याप्त होगा या नहीं।

इस संदर्भ में एक आश्वस्त करने वाला कारक कोर मुद्रास्फीति (खाद्य एवं ईंधन के अलावा अन्य सेवाओं और वस्तुओं की कीमत में अंतर) की कम दर भी हो सकती है। बहरहाल, निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के सामान्यीकरण की संभावना हमेशा रहती है। हालांकि दरों में आगे और इजाफे की संभावित जरूरत का पता आने वाले महीनों में चलेगा लेकिन फिलहाल यह माना जा सकता है कि अगले वित्त वर्ष के मध्य तक दरों में कटौती की संभावना नहीं है।

रिजर्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र में इस साल 19 मई से 28 जुलाई के बीच शुद्ध मांग और समय देयता में बढ़ोतरी को लेकर वृद्धिकारी नकद आरक्षित अनुपात की जरूरत लागू करके अच्छा किया है। इस अस्थायी उपाय का मकसद 2,000 रुपये के नोट वापस लिए जाने के बाद व्यवस्था में बढ़ी हुई नकदी को खपाना है। व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।

निकट अवधि में मुद्रास्फीतिक परिदृश्य अप्रत्याशित रूप से खराब हुआ है लेकिन वृद्धि पूर्वानुमान को लेकर भी नीतिगत स्तर पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी। वैश्विक वृद्धि के कमजोर रुझान को देखते हुए मौजूदा वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शीर्ष घरेलू उत्पाद वृद्धि की 6.5 फीसदी की दर सम्मानजनक नजर आती है।

बहरहाल, रिजर्व बैंक के तिमाही अनुमान दिखाते हैं कि वृद्धि दर पहली तिमाही के 8 फीसदी के स्तर से कम होकर चौथी तिमाही में 5.7 फीसदी रह जाएगी। हालांकि बैंक और कॉर्पोरेट बैलेंस शीट में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है और निजी क्षेत्र के निवेश में शुरुआती सुधार के संकेत भी नजर आ रहे हैं परंतु कमजोर वैश्विक माहौल मध्यम अवधि में भारत के परिदृश्य को प्रभावित करेगा।

ऐसे में नीतिगत ध्यान वैश्विक मंदी के प्रभाव को कम करने पर केंद्रित होना चाहिए। हालांकि इसके लिए सरकार को हस्तक्षेप करना होगा लेकिन रिजर्व बैंक भी अगर 4 फीसदी मुद्रास्फीति हासिल करने तथा वित्तीय स्थिरता की रक्षा करने की प्रतिबद्धता दोहराए तो अच्छा होगा। ये दोनों बातें दीर्घकालिक आर्थिक विस्तार का समर्थन करेंगी।

First Published : August 10, 2023 | 10:19 PM IST