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ट्रांसफर प्राइसिंग के बदलाव अगले तीन महीने में होंगे स्पष्ट

ट्रांसफर प्राइसिंग से मतलब एक ही बहुराष्ट्रीय फर्म की दो इकाइयों के बीच लेनदेन में लगाए गए वास्तविक मूल्य से है।

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मोनिका यादव   
देव चटर्जी   
जेडेन मैथ्यू पॉल   
Last Updated- February 04, 2025 | 10:16 PM IST

केंद्रीय बजट 2025-26 में ट्रांसफर प्राइसिंग रेगुलेशन के प्रस्तावित बदलावों के संबंध में सरकार अगले तीन महीने में स्पष्टीकरण दे सकती है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर अनुपालन का बोझ कम करने के लिए बजट में ट्रांसफर प्राइसिंग के लिए ब्लॉक मूल्यांकन तंत्र का प्रस्ताव किया गया है ताकि वैश्विक परिपाटी के मुताबिक तीन साल के लिए कर व्यवस्था में स्थिरता रहे। इस नजरिये के तहत एक जैसे सौदों के लिए अतिरिक्त दो साल तक पूर्वनिर्धारित आर्म लेंथ प्राइस (एएलपी) लागू रहेगी।

ट्रांसफर प्राइसिंग से मतलब एक ही बहुराष्ट्रीय फर्म की दो इकाइयों के बीच लेनदेन में लगाए गए वास्तविक मूल्य से है। चूंकि अलग-अलग देशों में कर दरें अलग-अलग होती हैं, इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ट्रांसफर प्राइस तय करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है ताकि उनके समूह की कुल कर देयता कम से कम हो।

अधिकारी ने कहा, ‘हम तीन महीने के भीतर समान तरह के लेनदेन के निर्धारण पर स्पष्टता जारी करेंगे। हम यह भी स्पष्ट करेंगे कि क्या ऐसे लेनदेन पर विवाद किया जा सकता है।’ वित्त वर्ष 2025 में शामिल यह प्रस्तावित संशोधन संसद से पारित होने के बाद अगले साल 1 अप्रैल, 2026 से प्रभावी हो सकता है।

फिलहाल, आयकर अधिनियम की धारा 92 से 92 एफ के तहत हरेक लेनदेन के लिए एएलपी हर वित्त वर्ष के लिए अलग से निर्धारित की जाती है, जिससे आमतौर पर एक जैसे लेनदेन के लिए बार-बार मूल्यांकन करना पड़ता है। नतीजतन, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अनुपालन लागत बढ़ी हुई है और ट्रांसफर प्राइसिंग अधिकारियों पर काम का बोझ भी बढ़ा रहता है। प्रस्तावित ढांचे के तहत करदाताओं के पास आयकर विभाग द्वारा तय की गई बहु वर्षीय एएलपी निर्धारण प्रक्रिया अपनाने का विकल्प होगा।

First Published : February 4, 2025 | 10:16 PM IST