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मध्यस्थता के लिए कानून में संशोधन का प्रस्ताव

दिवाला मामलों में देरी कम करने के लिए आईबीबीआई का संशोधित नियम प्रस्तावित, परिचालन ऋणदाताओं के लिए मध्यस्थता अनिवार्य होगी

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- November 05, 2024 | 10:07 PM IST

दिवाला प्रक्रिया में देरी कम करने और न्यायपालिका पर बोझ कम करने की कवायद के तहत भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) ने संशोधित नियमों का प्रस्ताव किया है। इसके तहत परिचालन ऋणदाताओं (ऑपरेशनल क्रेडिटर्स) को किसी कंपनी के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया में जाने के पहले स्वैच्छिक मध्यस्थता का विकल्प मिल सकेगा।

आईबीबीआई ने कहा, ‘मध्यस्थता से समाधान न हो पाने की स्थिति में मध्यस्थ एक गैर-निपटान रिपोर्ट तैयार करेगा। इसे न्याय निर्णायक प्राधिकारी (एए) के समक्ष सीआईआरपी की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन के साथ संलग्न किया जाएगा।’जनवरी 2024 में विशेषज्ञों की एक समिति ने दिवाला आवेदन दाखिल करने के पहले शुरुआती कदम के रूप में पूर्व संस्थागत मध्यस्थता की सिफारिश की थी, उसके बाद आईबीबीआई का प्रस्ताव आया है। इस प्रस्तावित ढांचे पर आईबीबीआई ने 24 नवंबर तक लोगों की राय मांगी है।

दिवाला नियामक ने कहा कि गुणवत्ता को लेकर असहमति, या दी गई वस्तु एवं सेवा के प्रदर्शन, संविदा से जुड़ा विवाद, बकाया राशि के संबंध में विसंगति या कथित कम भुगतान आदि जैसे कुछ मसले हो सकते हैं। आईबीबीआई ने कहा कि परिचालन ऋणदाताओं द्वारा शुरू किए गए ज्यादातर दिवाला मामलों में वे कॉरपोरेट देनदारों को दिवाला प्रक्रिया में ले जाने या इस तरीके से समाधान के बजाय धन के दावों के पुनर्भुगतान में ज्यादा रुचि रखते हैं।

न्याय निर्णयन प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक धारा 9 (परिचालन ऋणदाता द्वारा दिवाला प्रक्रिया की शुरुआत) के तहत 21,466 मामलों को दाखिल किए जाने के पहले ही निपटा दिया गया व 31 अप्रैल 2024 तक 3,818 मामले ही स्वीकार किए गए।

First Published : November 5, 2024 | 10:07 PM IST