‘द केरल स्टोरी’ फिल्म के 5 मई को रिलीज होने के केवल एक हफ्ते के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक चुनावी भाषण में इस फिल्म का जिक्र किया। दूसरी तरफ विपक्ष ने इसे दुष्प्रचार वाली फिल्म कहा। पश्चिम बंगाल में प्रतिबंध लगने, तमिलनाडु में स्क्रीनिंग नहीं होने और केरल में विरोध का सामना करने के बावजूद इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर ली है। इसके निर्देशक सुदीप्त सेन ने शाइन जैकब से फिल्म से जुड़े विवादों और बॉक्स ऑफिस पर इसके अब तक के प्रदर्शन के बारे में बात की।
पेश है बातचीत के संपादित अंश:
आपने अपनी पिछली फिल्मों में शांति और अमन कायम जैसे विषयों पर काम किया जैसे कि ‘द लास्ट मॉन्क’। आखिर इस विषय का चयन आपने कैसे किया?
मेरी फिल्में हमेशा से ही वास्तविकता के करीब होती हैं। मेरी पिछली दो फिल्में जो जल्द ही रिलीज होने वाली हैं वे वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं। मैंने कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में की हैं। केरल में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर मैंने जो डॉक्यूमेंट्री बनाई थी उसे लंदन इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला था। इस फीचर फिल्म को उसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म से अपना आधार मिला था। मेरे पास फिल्म करने की दो खास वजहें मिल गईं थीं। इनमें से एक दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन की प्रेस कॉन्फ्रेंस (2010 में हुई इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने केरल को 2020 तक इस्लामिक राज्य बनाने की कथित योजनाओं की बात की थी) और प्रोफेसर टी जे जोसेफ (जिनका हाथ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं ने काट दिया था) के साथ हुए घटनाक्रम थे।
पश्चिम बंगाल ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया, तमिलनाडु में यह फिल्म दिखाई नहीं जा रही है और आपको केरल में भी भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह फिल्म एक विशेष धर्म के खिलाफ है ऐसे आरोपों पर आपकी क्या राय है?
यह फिल्म ISIS के खिलाफ है। फिल्म में, मैंने 11 बार ISIS शब्द का उल्लेख किया है और मैंने कहा कि इस आतंकवादी संगठन द्वारा धर्म का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यदि आप ISIS जैसे आतंकी संगठनों का समर्थन करने में दिलचस्पी दिखाते हैं तभी आप धर्म का मुद्दा उठाएंगे। देश में यह धारणा है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। यह आपकी समस्या है, अगर आप इसे किसी धर्म से जोड़ रहे हैं।
दो मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया था कि यह 32,000 महिलाओं की कहानी है और फिर इसे तीन महिलाओं की कहानी तक सीमित किया गया और इसे ‘केरल स्टोरी’ भी नाम दिया गया है जबकि भारत उन शीर्ष 10 देशों में भी शामिल नहीं है जहां के लोग ISIS में शामिल हुए हैं?
अब यह कोई मुद्दा नहीं है। जिन लोगों ने फिल्म नहीं देखी उन्हें समस्या थी। आलोचना करने या चर्चा करने के लिए किसी को भी फिल्म देखनी ही पड़ेगी। एक वर्ग यह सुनिश्चित करने की जरूर कोशिश कर रहा है कि हमारी फिल्म रिलीज न हो और सुर्खियों में न आए। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इसमें (नाम में) क्या गलत है? ‘मुंबई सागा’ नाम की एक फिल्म मुंबई के अंडरवर्ल्ड की कहानी है। क्या आपको लगता है कि निर्देशक या निर्माता का इरादा शहर को बदनाम करने का था? हमारी कहानी केरल की 4-5 लड़कियों पर आधारित है। इसीलिए यह ‘केरल स्टोरी’ है। मुख्य विचार धर्म परिवर्तन के मुद्दे को उठाना था।
विपक्षी दल इसे दुष्प्रचार वाली फिल्म बता रहे हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री से इस फिल्म को मिल रहे समर्थन को आप कैसे देखते हैं?
फिल्म को अब तक करीब 75 लाख लोग देख चुके हैं। हम वास्तव में इस देश के दर्शकों के आभारी हैं। पूरी योजना एक ऐसी फिल्म बनाने की थी जो तकनीकी रूप से भी अच्छी लगे। जहां तक दुष्प्रचार का सवाल है उसके बारे में एक विशेष राजनीतिक दल ही बात कर रहा है। मैं देश के हर नागरिक की बात कर रहा हूं। मुझे लगता है कि आलोचनाएं वैसे ही लोग कर रहे हैं जिन्होंने फिल्म नहीं देखी है। प्रधानमंत्री द्वारा जिक्र किए जाने से निश्चित रूप से मदद मिली है। यह फिल्म सामाजिक जागरूकता से जुड़ी है। ऐसी फिल्मों में आप हमेशा इस मुद्दे को उठाने के लिए राजनीतिक दलों पर निर्भर रहते हैं। मेरी फिल्म हर जगह अच्छी चल रही है यहां तक कि कांग्रेस शासित राज्यों में भी। यह राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, हर जगह अच्छा प्रदर्शन कर रही है। जब तक मुझे सभी का समर्थन नहीं मिलेगा, तब तक इस तरह की सफलता संभव नहीं है। हर राजनीतिक दल हमारा समर्थन कर रहे हैं।
क्या यह लव जिहाद के खिलाफ है, जांच एजेंसियों ने भी कहा कि केरल में ऐसी बात के कोई सबूत नहीं है?
मैंने अपनी फिल्म में लव जिहाद का जिक्र नहीं किया। मेरी फिल्म में प्यार है, जिहाद है, लेकिन मेरा मानना है कि इन दोनों को एक साथ रखने से यह राजनीतिक हो जाता है और इसीलिए मैंने इसे नजरअंदाज कर दिया। यह फिल्म सबके लिए है। इसे हर किसी को देखना चाहिए, इस पर चर्चा करनी चाहिए और इसका विश्लेषण करना चाहिए। यह फिल्म आतंकवाद के खिलाफ है और केरल की कुछ मासूम लड़कियों की कहानी है। मैंने 2014 के बाद से ही केरल में धर्मांतरण की सभी घटनाओं पर बेहद बारीकी से नजर रखी, जिसमें बलपूर्वक और शोषण के जरिये धर्मांतरण करने जैसे मुद्दे शामिल थे। मैं ऐसे बहुत से लोगों (पीड़ितों) से मिलता रहा ताकि यह जान सकूं कि ये लड़कियां कैसे जाल में फंस रही हैं। जब मुझे अहसास हुआ कि यह कोई सामान्य धर्म परिवर्तन नहीं है और इसका व्यापक असर है और मुझे अंदाजा था कि यह एक ऐसा विषय है जिस पर मुझे फिल्म बनानी चाहिए। यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है और यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, हर जगह की लड़कियों की बड़ी संख्या के साथ इस तरह के मामले दर्ज किए जा रहे हैं। केरल में यह रुझान थोड़ा अलग है और यह मेरा विषय बन गया।