सुलझेगा हस्तांतरण कीमत विवाद | जयश्री उपाध्याय / नई दिल्ली January 23, 2015 | | | | |
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कीमत हस्तांतरण विवाद सुलझाने की खातिर अमेरिका के साथ आपसी समझौते पर हस्ताक्षर करने की तैयारी भारत कर रहा है, इसके बाद इसे उन देशों की कंपनियों के साथ विवाद निपटान में आगे बढ़ाया जाएगा, जो ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों की हैं। भारत और अमेरिका पहले ही विस्तृत ढांचे को मंजूरी दे चुके हैं जो आपसी समझौते की प्रक्रिया के दायरे में आने वाले मामलों का निपटान करेगा। यह समझौता ओबामा की यात्रा से ठीक पहले हो सकता है। ओबामा रविवार को भारत दौरे पर आने वाले हैं।
भारत सरकार अमेरिका के साथ तीन महीने के भीतर अग्रिम कीमत समझौते (एपीए) पर दस्तखत का लक्ष्य लेकर चल रही है, लेकिन यह तभी होगा जब लंबित मामलों के लिए बना ढांचा परिणाम देना शुरू करेगा। कंपनियों व राष्ट्रों की मुख्य चिंता यह तय करने की रही है आखिर मुहैया कराई जाने वाली इस सेवा की अतिरिक्त कीमत और लागत पर बकाया कर कितना होगा। एक कर अधिकारी ने कहा, अतिरिक्त कीमत तय करने के बजाय ढांचे में इसे तय करने की प्रक्रिया शामिल की गई है। यह कंपनी की गतिविधियों पर आधारित होगी, जिससे इस मामले से दो-चार हो रही कंपनियों व कर अधिकारियों के लिए आसानी होगी।
विश्लेषकों ने कहा कि लंबित मामलों के निपटान और दो सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर भारत की तरफ से उठाए जाने वाले पहले कदमों में से एक है। दो सरकारें बातचीत कर रही है, लिहाजा इससे सॉफ्टवेयर विकसित करने वाली व सूचना प्रौद्योगिकी सेवा क्षेत्र की कंपनियों से जुड़े मामलों के निपटान में मदद मिलेगी। पहले चरण में सरकारों को करीब 60 मामलोंं के निपटान की उम्मीद है, जो कर विभाग के पास विभिन्न चरणों में लंबित हैं, यानी मुकदमेबाजी से लेकर कर निर्धारण जैसे चरणों में।
अमेरिका के 250 से ज्यादा मामले लंबित हैं, जो 2004 से हैं। इनमें से कई रॉयल्टी व स्थायी तौर पर स्थापना से जुड़े मामले हैं और इससे सॉफ्टवेयर विकास व आईटी सेवाएं भी जुड़ी हुई हैं। इस प्रगति पर नजर रखने वालों का कहना है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यूरोपीय राष्ट्रों, ब्रिटेन और फ्रांस के लिए भी ऐसे ही ढांचे तैयार करने की योजना बना रहा है। कर विशेषज्ञों ने कहा कि यह अच्छी बात है कि दो सरकारें बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मामले निपटाने के लिए बातचीत कर रही है।
डेलॉयट हस्किंग ऐंड सेल्स के वरिष्ठ निदेशक एस पी सिंह ने कहा, यह सही दिशा में उठाया गया कदम है और कंपनियों की कर व अनुपालन की चिंताएं घटाएगी। अच्छा यह भी है कि दो सरकारें नीति बना रही है और यह भविष्य में कर से जुड़े विवाद उठ खड़े होने के मामले रोकेगा। इस ढांचे में कर विभाग को वोडाफोन से कीमत हस्तांतरण मामले में मिले सबक शामिल होंगे, जहां बंबई उच्च न्यायालय ने कंपनी के हक में फैसला दिया था। न्यायालय ने कहा था कि शेयर बिक्री को आय नहीं माना जा सकता और इस तरह से इस पर कर नहीं लगाया जा सकता।
यह आईबीएम, नोकिया, केयर्न इंडिया जैसी कंपनियों को भी राहत देगा, जो ऐसे ही मामलों के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं। मौजूदा समय में भारत में कारोबार करने के दौरान कानूनी पचड़ों से बचने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां एपीए का मार्ग अपना रही हैं। साल 2012 में 146 आवेदन मिले थे, और दूसरे साल आवेदन की संख्या 232 हो गई। हाल में भारत सरकार ने जापानी कंपनी मित्सुई के साथ पांच साल के लिए द्विपक्षीय एपीए समझौता किया है। द्विपक्षीय एपीए में दोनों तरफ की सरकारें व कंपनियां शामिल होती हैं।
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