नकद-जमा अनुपात में बिहार फिसला | बीएस संवाददाता / पटना January 14, 2015 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक ने बिहार में नकद-जमा अनुपात (सीडी रेशियो) की बुरी स्थिति के लिए बुनियादी ढांचे की कमी और औद्योगीकरण की सुस्त रफ्तार को जिम्मेदार ठहराया है। आरबीआई के मुताबिक इस बारे में अधिकारियों ने कई बार राज्य सरकार से सुधार का अनुरोध किया, लेकिन अब तक इस बारे में कोई नतीजा नहीं मिला है।
दूसरी तरफ, आरबीआई के अधिकारियों ने चिट फंड कंपनियों और दूसरे फर्जी वित्तीय संस्थानों की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का भी ब्योरा दिया। बैंक के क्षेत्रीय निदेशक (बिहार-झारखंड) मनोज कुमार वर्मा ने बुधवार को बताया, 'हम बैंकों के साथ मिलकर राज्य में सीडी रेशियो को बढ़ाने के लिए पूरी तत्परता से लगे हुए हैं। हालांकि, इस बारे में हमें समझना होगा कि इसके लिए सिर्फ आरबीआई जिम्मेदार नहीं हैं। राज्य में बुनियादी ढांचे की स्थिति बहुत खराब है, जिससे औद्योगिक विकास पर असर हो रहा है। मिसाल के तौर पर बैंक राज्य में सीजीटीआई योजना के तहत व्यवसायिक वाहनों की खरीद के लिए कर्ज देते हैं, लेकिन राज्य में गंगा नदी पर आज की तारीख में किसी भी पुल पर भारी वाहनों का परिचलन नहीं हो रहा है। इससे राज्य दो हिस्सों में बंट गया है और इसका सीधा असर माल ढुलाई पर हो रहा है। इस वजह से राज्य में ट्रकों की खरीद काफी कम हो गई है।'
केंद्रीय बैंक ने राज्य में औद्योगिक विकास की सुस्त रफ्तार के लिए भी राज्य सरकार पर निशाना साधा। वर्मा ने कहा, 'कमजोर बुनियादी ढांचे और बिजली की कमी की वजह से राज्य में निवेश के मौके नहीं पैदा हो पा रहे हैं। इससे राज्य में कर्ज की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। इस वजह से आज भी बिहार का सीडी रेशियो 41 फीसदी के आस-पास है। वहीं, राज्य में संचार के साधनों और सुरक्षा पर भी भारी निवेश की जरूरत है, तभी राज्य में बैंकों की पहुंच ज्यादा से ज्यादा इलाकों में हो पाएगी।'
बिहार सीडी रेशियो के मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। एक तरफ देश का राष्ट्रीय औसत 70 फीसदी से ज्यादा का है, तो वहीं बिहार में बीते पांच साल में औसत सीडी रेशियो 37-38 फीसदी रहा है। राज्य सरकार इसके लिए लगातार बैंकों पर कर्ज देने से कतराने का आरोप लगाती रही है, लेकिन वहीं बैंकों के मुताबिक कारोबारी गतिविधियों में इजाफे से ही कर्ज की रफ्तार बढ़ेगी। वाणिज्यिक बैंकों में बिहार के करीब 19 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा जमा हैं, जबकि उनकी तरफ से बिहार में 78,000 करोड़ रुपये ही कर्ज के रूप में बांटे गए हैं। अधिकारी ने इसके लिए बिहार में गैर-निष्पादित संपत्तियों का स्तर राष्ट्रीय औसत से ऊपर रहने को भी कारण बताया है।
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