असरदार ई-कारोबार का खुमार | साहिल मक्कड़ / January 12, 2015 | | | | |
करीब 30 साल के असीम भारद्वाज सुबह 5.30 बजे काम से घर वापस आते हैं। इसके बाद वह तीन घंटे अपने पिता सुरिंदर भारद्वाज की मदद गणितीय हिसाब करने में बिताते हैं जो भारतीय स्टेट बैंक के शाखा प्रबंधक पद से सेवानिवृत हुए हैं। वह शेयर बाजार के रुझान का अंदाजा लगाते हैं और उसे शेयर बाजार खुलने से पहले अपनी वेबसाइट पर अपडेट करते हैं। असीम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बाहरी इलाके में मौजूद एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी में सॉफ्टवेयर कंसल्टेंट के तौर पर काम करते हैं और अक्सर वह रात्रि पाली में ही काम करते हैं। उन्होंने कुछ महीने पहले ही निफ्टीकंट्रोल डॉट कॉम की शुरुआत की है जिस चलाने के लिए वह अपने 70 वर्षीय पिता की मदद ले रहे हैं।
वह कहते हैं, 'मेरे पिता की दिलचस्पी शेयर बाजार में है और मैं सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अच्छा काम कर लेता हूं। इसकी वजह से हमने अपनी क्षमता के मुताबिक कुछ बेहतर करने का फैसला किया। मैं पांच साल बाद खुद को नहीं कोसना चाहता हूं कि मेरे पास पैसे कमाने के मौके थे लेकिन मैं चुपचाप बैठा रहा। अब तो मैं वर्चुअल दुनिया में ही खाता, सोता और सांस लेता हूं।'
भारद्वाज एक ऐसी मिसाल हैं जिससे यह अंदाजा मिलता है कि मेट्रो शहरों में कैसे ऑनलाइन का जलवा बढ़ रहा है और सामान्य मध्यम वर्ग के लोगों की महत्वाकांक्षाओं को भी संभावनाएं दिख रही हैं जिसकी वजह से कई लोग नौकरियां छोड़कर या नौकरी के साथ ही इंटरनेट से जुड़ा उद्यम शुरू कर रहे हैं। भारतीय एंजल नेटवर्क की अध्यक्ष पद्मजा रूपारेल का कहना है, 'भारतीय लोगों में उद्यम करने का रुझान बढ़ रहा है। सभी लोग कोई ऑनलाइन कारोबार करने का सोच रहे हैं। अब शहरों में इसकी चर्चा शुरू हो गई है।' भारतीय एंजल नेटवर्क के सदस्य शुरुआती कारोबार में निवेश करते हैं। रेस्तरां, ड्राइंग रूम और यहां तक की व्हाट्स ऐप पर सोशल मीडिया मार्केटिंग, क्लिक्स, विजिटर, डोमेन नेम और सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन जैसे शब्दों की चर्चा हो रही है। पिछले साल तक रूपारेल को नए उद्यमों के लिए रोजाना औसतन दो या तीन प्रस्ताव मिलते थे।
लेकिन उनका कहना है कि इस साल एक दिन में आठ से नौ प्रस्ताव मिलते हैं। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि की वजह से ऐसा हो रहा है। इस नेटवर्क को स्वच्छ ऊर्जा, स्वास्थ्य क्षेत्र, सामाजिक सेवा, होटल कारोबार और ई-कॉमर्स से जुड़े क्षेत्रों के लिए प्रस्ताव मिल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में तीन तरह के लोग डॉटकॉम उद्यम को तरजीह दे रहे हैं। कुछ ऐसे लोग हैं जो ऑफलाइन कारोबार करते थे लेकिन अब उन्हें ऑनलाइन क्षेत्र से चुनौती मिल रही है जिसकी वजह से उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।
दूसरी श्रेणी में ऐसे पेशेवर लोग हैं जिन्होंने अपना ऑनलाइन कारोबार शुरू करने के लिए नौकरी छोड़ दी है। तीसरी श्रेणी में ऐसे लोग हैं जो पूर्णकालिक नौकरी या कारोबार करते हैं और वे पूर्णकालिक या अंशकालिक कारोबार करते हैं। हालांकि ऐसे उद्यम से जुड़ी महत्वकांक्षाएं सिर्फ युवाओं तक ही सीमित नहीं है। करीब 57 साल के दीपक ओबेरॉय जिनके पारिवारिक कारोबार के तहत विदेश में कंपनियों को हीटिंग पाट्र्स का निर्यात किया जाता है। आजकल वह किसी सोशल मीडिया मार्केटिंग में दक्ष व्यक्ति की तलाश में हैं जो उनके एक अलग कारोबार को बढ़ावा दे जिसमें ऑनलाइन कारोबार बेचने पर जोर दिया जाए।
उनका कहना है, 'हमने दिल्ली के सेलेक्ट सिटी मॉल में कई तरह के अचार को पिछले साल पेश किया जो मेरी दादी के अनूठे नुस्खे से बने हैं। हमें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। उसी वक्त हमने ऑनलाइन कारोबार शुरू करने का मन बनाया। आमदनी का दूसरा कोई स्रोत मिल जाए तो किसको बुरा लगेगा?' ओबेरॉय का कहना है कि अब वह अचार बेचकर एक महीने में 30,000-40,000 रुपये कमा लेते हैं। उनकी पत्नी कारोबार पर निगाह रखती हैं। उन्होंने तीन कर्मचारी रखा हुआ है और उनका कहना है कि अगर ऑनलाइन बिक्री बढ़ती है तो वह पूरी तरह से इसकी काम में जुट जाएंगे।
ओबेरॉय और भारद्वाज की तरह ही दूसरे पार्ट टाइम ऑनलाइन उद्यमी भी मेट्रो शहरों में उभर रहे हैं। दीप डोगरा और उनकी पत्नी श्रुति रविवार को पारंपरिक परिधानों के लिए रविवार को स्थानीय बाजारों की छान मारते हैं और वे भारत के बाहर इन उत्पादों की बिक्री के लिए एमेजॉन जैसे मंच का इस्तेमाल करते हैं। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए काम करने वाले डोगरा का कहना है, 'अमेरिका में भारतीय परिधानों की काफी मांग हैं और हम ऑफिस के काम के बाद अपने सामानों की सूची बनाते हैं और उसे ऑनलाइन बेचते हैं। हालांकि इसकी लागत ज्यादा होती है। हमारी वृद्धि तो यकीनन हो रही है लेकिन अब हमारे पास वक्त कम बचता है।'
पिछले साल जुलाई में एक ट्रैवल वेबसाइट की स्थापना करने वाले अनिरुद्ध गुप्ता दुबई में रॉकेट इंटरनेट के साथ काम कर रहे हैं और उन्होंने यह काफी पहले महसूस कर लिया था कि उन्हें इस पर पूरा वक्त देना पड़ेगा। गुप्ता का कहना है, 'सफलता के लिए कोई छोटी सीढ़ी नहीं होती है।' शायद इसी वजह से उन्होंने नौकरी छोड़ दी और वे भारत आकर अपने नए उद्यम से जुड़ गए।
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