सिन्हा को 2जी जांच से हटने का निर्र्देश | एजेंसियां / नई दिल्ली November 20, 2014 | | | | |
उच्चतम न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की सुनवाई के दौरान केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक रंजीत सिन्हा को आज करारा झटका दिया। सिन्हा के सेवानिवृत्त होने में महज 12 दिन बचे हैं और न्यायालय ने उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच से खुद को अलग रखने का निर्देश दिया है। एक अभूतपूर्व आदेश में न्यायालय ने मामले की जांच की कमान सिन्हा के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी को सौंप दी है। इस आदेश पर सिन्हा ने कहा कि वह न्यायालय के आदेश का पालन करेंगे। मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति ए के सीकरी के खंडपीठ ने इस मामले में विस्तृत आदेश देने से इनकार करते हुए कहा कि इससे सीबीआई की 'प्रतिष्ठा और छवि' खराब होगी।
न्यायालय सिन्हा को जांच से दूर रखेगा यह बात उसी समय स्पष्टï हो गई थी, जब भोजनावकाश के लिए जाते समय न्यायाधीशों ने सिन्हा की ओर से पेश वरिष्ठï अधिवक्ता विकास सिंह से विकल्पों के बारे में पूछा। न्यायाधीशों ने कहा कि वे विस्तृत आदेश पारित नहीं करना चाहते हैं क्योंकि यह जांच एजेंसी के हितों और प्रतिष्ठा के खिलाफ होगा। सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने कहा, 'पहली नजर में अर्जी में लगाए गए आरोप विश्वसनीय लगते हैं और इन्हें स्वीकार करना होगा।' हालांकि सिन्हा के वकील जोर देते रहे कि सीबीआई प्रमुख के खिलाफ 2जी की जांच प्रभावित करने का आरोप 'गलत' है।
मामले की सुनवाई शुरू होते ही विशेष लोक अभियोजक आनंद ग्रोवर ने सिन्हा के आचरण पर गंभीर सवाल उठाए। ग्रोवर ने कहा कि अगर मुकदमे की सुनवाई में सिन्हा के निर्देश माने गए होते तो कुछ अभियुक्तों के खिलाफ पूरा मामला ही खत्म हो जाता। सिन्हा का नजरिया सीबीआई के नजरिये के 'बिल्कुल विपरीत' था। उन्होंने कहा कि सिन्हा ने सुनवाई के अंतिम चरण में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, जब अभियोजन के सबूत पेश करने की कार्यवाही लगभग पूरी हो चुकी थी।
उन्होंने घोटाले में नामजद कंपनियों के प्रति कथित पक्षपात करने संबंधी विधि मंत्रालय की राय पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'मंत्रालय कैसे काम करता है कि बहुत दुखद है। एक अधिकारी ने गवाही में कहा कि ऐसा फाइल पर मंत्री की टिप्पणी के आधार पर किया गया। लेकिन सवाल है कि मंत्री के पीछे कौन व्यक्ति है। यह हैरान करने वाली बात है।'
इसी चरण में कार्यवाही ने नया मोड़ लिया जब वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि सिन्हा ने सीबीआई के वकील के के वेणुगोपाल को इस मामले में बहस नहीं करने का निर्देश दिया था। इस पर न्यायाधीशों ने पूछा कि निर्देश किसने दिया था। तब वहां उपस्थित सीबीआई के संयुक्त निदेशक अशोक तिवारी ने कहा कि अदालत में वेणुगोपाल ही सीबीआई के वकील हैं। तिवारी द्वारा सिन्हा को बचाने के प्रयास पर न्यायालय ने वहां उपस्थित सीबीआई के नौ वरिष्ठ अधिकारियों को लताड़ते हुए कहा, 'आप निदेशक के एजेंट नहीं हैं और आप प्रवक्ता भी नहीं हो सकते। आपको यह जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है। सीबीआई के इतने अधिकारी यहां क्यों हैं। हम 2जी मामले की जांच की सुनवाई नहीं कर रहे हैं। हम निदेशक के खिलाफ अर्जी की सुनवाई कर रहे हैं।' सीबीआई अधिकारियों को बाहर जाने की हिदायत देते हुए पीठ ने कहा, 'न्यायालय की कार्यवाही सुनने के बजाय आपको अपनी ड्यूटी करनी चाहिए।'
भूषण को दस्तावेज मुहैया कराने वाले 'भेदी' के तौर पर सिन्हा द्वारा पुलिस उप महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी संतोष रस्तोगी का नाम लेने पर सीबीआई ने आपत्ति जताई। सीबीआई की ओर से वेणुगोपाल ने अनुरोध किया कि सिन्हा को यह बयान वापस लेने को कहा जाए। उन्होंने कहा, 'अगर सिन्हा के पास इसका सबूत है तो वे पेश करें नहीं तो बयान वापस लें क्योंकि अधिकारी को संरक्षण की जरूरत है।'
भूषण ने भी कहा कि वह कभी इस अधिकारी से नहीं मिले हैं। न्यायालय ने कहा कि किसी भी अधिकारी की छवि खराब करने की छूट नहीं दी जा सकती। रस्तोगी के तबादले की फाइल का अवलोकन करते हुए न्यायाधीशों ने कहा, 'ऐसा लगता है कि आप अपना रास्ता साफ करना चाहते हैं क्योंकि यह अधिकारी आपके कुछ फैसलों के खिलाफ था।' जबकि न्यायालय ने निर्देश दिया था कि उसके आदेश के बिना 2जी जांच दल के किसी भी सदस्य को हटाया नहीं जाएगा। हालांकि सिन्हा ने कहा कि उन्होंने 'भेदिया' के रूप में किसी भी अधिकारी का नाम नहीं लिया।
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