कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत को दृढ़तापूर्वक सामने रखते हुए उनके आदर्शों और राजनीति को विकृत करने के लिए परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आलोचना की। वह नेहरू की 125वीं जयंती के मौके पर कांग्रेस पार्टी द्वारा सोमवार को आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। गांधी ने कहा, 'जवाहरलाल नेहरू ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि धन का शोर होता है लेकिन ज्ञान के साथ ऐसा नहीं है। हाल के वर्षों में नेहरू के जीवन एवं उनके काम से जुड़ी जानकारी को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है। लेकिन उन्होंने जिन विचारों को बढ़ावा दिया और जिन मूल्यों के लिए वह हमेशा खड़े रहे वे सभी ज्यादा प्रासंगिक हैं।' तीन दिन पहले भाजपा के नेता शाहनवाज हुसैन ने अपनी एक टिप्पणी में कहा था, 'कांग्रेस पार्टी नेहरू की जयंती का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए कर रही है। समाज में एकजुटता लाने और भाईचारा बढ़ाने की उनकी गुहार दरअसल राजनीतिक फायदा उठाने के लिए है लेकिन इससे समाज बंटता ही है।' सोनिया गांधी ने कहा कि नेहरू हमेशा सभी तरह के अन्याय की मुखालफत करते रहे हैं, ऐसे में उन्हें धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए याद रखा जाना चाहिए। आजाद भारत के इतिहास में आपातकाल जैसे संवैधानिक प्रावधानों को पहली बार इस्तेमाल करने वाली पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष ने कहा, 'भारत की आजादी का संघर्ष केवल देश की आजादी के लिए नहीं था बल्कि यह लड़ाई सभी व्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई थी। हम भारत के जिस लोकतंत्र को महत्त्व नहीं देते हैं, वह नेहरू की सबसे बड़ी उपलब्धि और लंबे संघर्ष की विरासत है।' लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव की करारी हार से कांग्रेस उबरने की कोशिश में जुटी है, ऐसे में गांधी ने नेहरू का हवाला देते हुए कहा, 'उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र में हमें जीतना और हार को गरिमा के साथ स्वीकारना आना चाहिए। जो लोग जीतते हैं उन्हें जीत को अपने सिर पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जिनको हार मिली है उन्हें निरुत्साहित महसूस नहीं करना चाहिए। जीतने और हारने का तरीका चुनाव परिणाम से अधिक महत्त्वपूर्ण है। गलत तरीके से जीतने से बेहतर सही तरीके से हारना है।' गांधी ने कहा कि भारत सिर्फ धर्मनिरपेक्ष हो सकता है। उन्होंने कहा, 'नेहरू का यह मत बिल्कुल सही साबित हुआ है कि बहुजातीय, बहुधार्मिक, बहुभाषायी और बहुक्षेत्रीय समाज में सिर्फ संसदीय लोकतंत्र और एक धर्मनिरपेक्ष सरकार ही देश को एकजुट रख सकती है। नेहरू को इस बात का आभास था कि धर्म को राजनीति में लाने के क्या नतीजे हो सकते हैं। उनकी इस धारणा के सच को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में धर्म के नाम पर हो रहे संघर्ष में देखा जा सकता है।' उन्होंने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री के लिए धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति आदर आस्था का सवाल था। सम्मेलन में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रकाश करात और सीताराम येचुरी, जनता दल (सेक्युलर) के नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा, जनता दल (यूनाइटेड) के शरद यादव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के डी पी त्रिपाठी ने हिस्सा लिया। हालांकि इसमें सपा, बसपा, द्रमुक, नैशनल कॉन्फ्रेंस और तेलुगू देशम के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा के किसी अन्य नेता को आमंत्रित नहीं किया गया है। समारोह में अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, घाना के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कुफोर नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल, पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मा जहांगीर, दक्षिण अफ्रीका के वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी और नेल्सन मंडेला के प्रमुख सहयोगी अहमद काथराडा सहित दुनिया भर से 11 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
