बीस साल पुराना मामला फिर से खुला | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली August 24, 2014 | | | | |
उच्चतम न्यायालय ने एक विवादित मामले में, जिसमें पिछले दो दशकों से मध्यस्थता की प्रक्रिय शुरू ही नहीं हुई थी, निर्णय दिया है कि करार की शर्तों के बदले एक मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार न्यायालय के पास है। पूर्वोत्तर रेलवे बनाम ट्रिपल इंजीनियरिंग वक्र्स के इस मामले में रेलवे ने वर्ष 1994 में करार को रद्द कर दिया और विवाद पर फैसला करने के लिए 1996 में मध्यस्थों का पैनल नियुक्त किया गया। लेकिन तब से इस मामले में कुछ खास प्रगति नहीं हुई। जब ठेका लेने वाली कंपनी पटना उच्च न्यायालय पहुंची तो अदालत ने सिक्किम उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया। रेलवे ने इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। रेलवे का तर्क था कि करार की सामान्य शर्तों के मुताबिक एक न्यायाधीश मध्यस्थ के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने इस दावे को खारिज कर दिया और मामले के तथ्यों के मद्देनजर उच्च न्यायालय के रुख का समर्थन किया। फैसले में कहा गया, 'पंचाट एवं मध्यस्थता अधिनियम के तहत कार्यवाही एवं प्रक्रियाओं के कमजोर पड़ जाने की स्थिति में पिछले कई फैसलों के मद्देनजर मध्यस्थ की नियुक्ति को लेकर तय की गई शर्तों को खत्म करने के न्यायालय के अधिकार को स्वीकार किया जाना चाहिए।'
गैर-कानूनी नीलामी में की गई बिक्री रद्द
पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय ने ओडिशा फाइनैंशियल कॉरपोरेशन से एक संपत्ति खरीदने वाले खरीदार को धन लौटाने के लिए कहा। यह संपत्ति उसने कॉरपोरेशन द्वारा कराई गई एक गैर कानूनी नीलामी में खरीदा था। साथ ही न्यायालय ने कॉरपोरेशन को अपने उन अधिकारियों से खर्च वसूलने की भी अनुमति दे दी जिन्होंने राज्य वित्तीय निगम अधिनियम में तय किए गए नियमों का उल्लंघन किया। नियमों के मुताबिक अगर उधार लेने वाला भुगतान में चूक करता है तो उधार की रकम गारंटर जैसे तीसरे पक्ष से वसूल नहीं की जा सकती है। शुभ्रांशु शेखर पाधी बनाम गुणमणि स्वेन मामले में एक व्यक्ति ने कॉरपोरेशन से ऋण लेकर एक ट्रक खरीदा लेकिन उसने भुगतान नहीं किया। चूंकि वाहन का पता नहीं चल पा रहा था इसलिए कॉरपोरेशन ने उसके श्वसुर की संपत्ति जब्त कर ली जिसे बतौर जमानत रखा गया था। जब इस संपत्ति की नीलामी की गई तो उस व्यक्ति की पत्नी और उसके बच्चे इस बिक्री के खिलाफ अदालत चले गए। अदालत ने अधिनियम की धारा 29 के तहत इस बिक्री को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि जिस खरीदार ने नीलामी के तहत संपत्ति की खरीदारी करने के लिए अपना पैसा खर्च किया वह कॉरपोरेशन द्वारा अपनाई गई गैर कानूनी प्रक्रिया का शिकार हुआ।
अन्यायपूर्ण तरीके से अमीर बनाने पर रोक
अन्यायपूर्ण तरीके से धन हासिल करने के मामले पर अपना रुख स्पष्टï करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक कंपनी राज्य द्वारा अवैध रूप से वसूले गए करों की वापसी का दावा तब तक नहीं कर सकती जब तक फर्म यह साबित नहीं कर देती कि उसने कर की देनदारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों पर नहीं डाल दी है। यह सिद्घांत डेक्कन सीमेंट्स बनाम सहायक खान निदेशक सहित विभिन्न मामलों में प्रकाश में आया। इस मामले में कंपनी सीमेंट निर्माण और बिक्री के कारोबार में संलग्न थी। कंपनी ने लाइमस्टोन और डोलोमाइट के खनन का पट्टïा हासिल किया। ये खनिज तेलंगाना क्षेत्र अधिनियम और आंध्र प्रदेश खनिज अधिकार अधिनियम जैसे दो कानूनों के तहत निकाले जाने योग्य है। इन कानूनों के खिलाफ कई कंपनियों ने दावा किया और ये मामला दो बार उच्चतम न्यायालय पहुंचा। अंतिम रूप से इस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया और न्यायालय ने इससे जुटाए गए कर को वापस करने का आदेश दे दिया। हालांकि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया कि कंपनियां स्वत: कर वापस लेने की अधिकारी नहीं हो सकती हैं। उन्हें यह स्पष्टï करना होगा कि उन्होंने कर देनदारी उपभोक्ताओं को स्थानांतरित नहीं की थी। इस आदेश के बाद कंपनियों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने सभी दावों को खारिज कर दिया और उनसे प्राधिकारियों के समक्ष यह स्पष्टï करने का आदेश दिया कि उन्होंने उपभोक्ताओं पर कर का कोई बोझ नहीं डाला है।
कीमती नगों का खनन पट्टा किया गया रद्द
उच्चतम न्यायालय ने पिछले हफ्ते विवेक एक्सपोट्र्स की वह अपील खारिज कर दी जिसमें आभूषण रत्नों के खनन का 20 साल का पट्टा दिया गया था, हालांकि इसके पट्टे को कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किया जा चुका था। फैसले में कहा गया कि ऐसे मामले में जहां किसी भी कारणवश पट्टे को अदालत द्वारा रद्द कर दिया गया हो, ऐसी खारिज किए जा चुके पट्टे का नवीकरण करने की अनुमति नहीं है और राज्य सरकार द्वारा नवीकरण करने की राज्य सरकार की शक्ति के प्रति फर्जीवाड़ा तक हो सकता है। पट्टे के मामले को प्रतिद्वंद्वी फर्म द्वारा चुनौती दी गई जब कुछ क्षेत्रों में खनन के इसके आवेदन को कर्नाटक सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया। कई खनन पट्टों को देने के सरकारी आदेश को उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया। हालांकि सरकारी आदेश को चुनौती देने का फैसला कंपनी ने नौ सालों बाद किया गया लेकिन न्यायालय जाने में की गई देरी को इसलिए माफ कर दिया गया क्योंकि अदालत को यह बताया गया कि सरकार की अनुमति के बारे में सूचना के अधिकार के तहत दायर की गई याचिका के जरिये ही जानकारी मिल सकी।
बेल्जियम की चॉकलेट को छोडऩे का आदेश
पिछले हफ्ते दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीमा शुल्क आयुक्त को बेल्जियम से आयातित 4,000 किग्रा प्रसिद्घ गाइलियन चॉकलेट को छोडऩे का निर्देश दिया। यह चॉकलेट इस साल जनवरी से गोदामों में पड़ी हुई थी। इन आयातित चॉकलेटों की 16 किस्मों में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण को दो प्रकार की खामियां मिली थीं। आठ किस्मों के पैकेजों पर विनिर्माण की तारीख, वैधता समाप्त होने की तारीख और उत्पाद से संबंधित अन्य सूचनाएं दर्शाने वाला लेबल नहीं था। दूसरी आपत्ति यह थी कि आठ अन्य किस्मों में फिलिंग के तौर पर खाद्य तेल का इस्तेमाल किया गया था। यूनाईटेड डिस्ट्रिब्यूटर्स इनकॉरपोरेशन बनाम भारत संघ मामले में इन आरोपों के खिलाफ एक आयातक की ओर से रिट याचिका दायर की गई। उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि यह चीज जल्द खराब होने वाली है इसलिए आयुक्त को उन्हें उचित लेबल के साथ जारी कर देना चाहिए। खाद्य तेल को लेकर की गई आपत्ति को उचित नहीं पाया गया। क्योंकि कई अन्य मामलों में इसकी अनुमति दी गई थी।
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