निर्देश नहीं सुधार | संपादकीय / नई दिल्ली August 14, 2014 | | | | |
एक साहसी और स्वागतयोग्य कदम में कोयला क्षेत्र में दबदबा रखने वाली सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने कोयला मंत्री पीयूष गोयल के निर्देश को धता बता दिया है। मंत्री महोदय ने हाल में संसद में घोषणा की थी कि कोल इंडिया ऑनलाइन नीलामी किए जाने वाले कोयले की मात्रा आधी कर देगी ताकि बिजली संयंत्रों को और अधिक कोयला उपलब्ध कराया जा सके। बिजली कंपनियों को दिए जाने वाले कोयले की कीमत ऑनलाइन नीलामी से मिलने वाली कीमत के मुकाबले काफी कम होती है। कोल इंडिया के बोर्ड ने बीते मंगलवार को फैसला किया कि वह गोयल के निर्देश पर अपनी आपत्ति दर्ज कराएंगे क्योंकि इससे उनका राजस्व कम होगा और अंशधारक भी परेशान होंगे।
बोर्ड का सोचना सही है। गोयल के निर्देश पश्चगामी थे। राज्य सभा में उन्होंने कहा था कि नीलामी के जरिये भारी मात्रा में कोयले की बिक्री जनहित में नहीं है क्योंकि कोल इंडिया का पहला कर्तव्य है बिजली संयंत्रों को कोयला देना। पहली बात तो यह कि कोल इंडिया के कुल उत्पादन का महज 7 फीसदी ई-नीलामी के जरिये बेचा जाता है और उसे किसी भी तरह 'भारी मात्रा' नहीं कहा जा सकता। इससे भी बुरी बात यह है कि यह सरकारी उद्यम की गलत छवि पेश करता है। सरकारी क्षेत्र कोई दुधारू गाय नहीं है। उसे भी बाजार आधारित फैसले करने का हक है बजाय उस मंत्रालय के निर्देशों के जिसके अधीन वह संचालित होता है।
अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निरंतर इस बात पर जोर देते थे कि वह एक मजबूत सरकारी क्षेत्र के हिमायती हैं। लेकिन गोयल के निर्देश सरकारी क्षेत्र को कमजोर बनाने वाले हैं। यह याद करना उचित होगा कि पिछली सरकार के कार्यकाल में भी कोल इंडिया को ऐसे ही निर्देश दिए गए थे। हालांकि कुछ अल्पांशधारकों ने उसका विरोध भी किया था। कम हिस्सेदारी वाले अंशधारकों के अधिकारों की अनदेखी महज इसलिए नहीं की जा सकती है कि बहुलांश हिस्सेदारी सरकार के पास है। गोयल गलत हैं। एक सूचीबद्घ कंपनी के तौर पर कोल इंडिया की पहली जिम्मेदारी बिजली संयंत्रों को आपूर्ति करना नहीं बल्कि निवेशकों को उचित प्रतिफल देना है।
बिजली की आपूर्ति बढ़ाना सरकार के एजेंडे में प्रमुख है लेकिन गोयल को समस्या के लिए कोल इंडिया की ओर नहीं देखना चाहिए। इसके बजाय उनको बिजली उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच के संबंधों को दुरुस्त करना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बाजार आधारित मूल्य व्यवस्था सभी स्तरों पर कायम रहे। बिजली क्षेत्र के साथ यही समस्या है और कोयले की नीलामी का उनके नजरिये में थोड़ा व्यापक स्थान होना चाहिए न कि इतना संक्षिप्त। मंत्री जी की इच्छा के विपरीत ई-नीलामी को कम न करने की एक और वजह है। ऐसा इसलिए कि ई-नीलामी वाले कोयले के दुरुपयोग और उस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की संभावना हमेशा कम रहती है। ऐसा कोई भी निर्णय लेते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए। खासतौर पर इसलिए कि हाल के दिनों में कोयला समेत तमाम प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे हैं।
कुलमिलाकर हालांकि गोयल का इरादा यह था कि बिजली संयंत्रों को पर्याप्त कोयला मुहैया कराया जाए लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनका ध्यान गलत दिशा की ओर केंद्रित है। अंतिम उपभोग के लिए समुचित शुल्क वसूली ही वितरण कंपनियों को मुनाफा कमाने लायक बनाए और यह सुनिश्चित होगा कि वे बिजली संयंत्रों के बकाया का भुगतान करें। ऐसी स्थिति में वे भी बाजार दर पर कोयला खरीदने की स्थिति में रहेंगी। स्पष्ट है कि सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को निर्देश देना आसान है जबकि सुधार को अंजाम देना कठिन।
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